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विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड कांग्रेस में बड़ा भूचाल आ सकता है. राज्य में पार्टी के सबसे बड़े चेहरे और मुख्यमंत्री पद के दावेदार हरीश रावत ने खुलकर अपनी नाराजगी जताई है और राजनीति से संन्यास लेने के संकेत दे दिए हैं. हरीश रावत ने ट्विटर पर कहा कि, "अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिए, अब विश्राम का समय है". इस पर जब हमने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से बातचीत की तो वो भी संगठन को लेकर नाराज नजर आए और दिल्ली में बैठक की बात कही.
अब चुनाव से पहले हरीश रावत जैसे कद्दावर नेता का बैकफुट पर जाना कांग्रेस के लिए कितना घातक साबित हो सकता है, ये समझते हैं. साथ ही ये भी जानते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जिससे कांग्रेस के चहेते हरीश रावत इतने परेशान हो गए.
उत्तराखंड में अलगे कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. क्योंकि हर बार उत्तराखंड की जनता सत्ता बदलती है, इसीलिए कांग्रेस इस बार भी झोली फैलाकर इस इंतजार में है कि उनके हिस्से सत्ता आएगी. चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस पिक्चर में भी नजर आने लगी है और सर्वे भी कांटे की टक्कर दिखा रहे हैं.
लेकिन इसमें कोई भी दोराय नहीं है कि ये सब कुछ हरीश रावत के चेहरे के चलते है. क्योंकि पार्टी में ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है, जो राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहचान और पहुंच रखता हो. हाल ही में हुए एबीपी-सी वोटर सर्वे की बात करें तो हरीश रावत को लोगों ने सबसे चहेता मुख्यमंत्री उम्मीदवार बताया था. सत्ता में बैठी बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उनसे इस मामले में पीछे थे.
उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने इस पूरे घमासान पर क्विंट हिंदी से खास बातचीत में बताया कि, मैं पार्टी के दायरे में रहकर ये बता सकता हूं कि हरीश रावत जी की कुछ चिंताएं हैं, जिन्हें हम पार्टी आलाकमान के सामने रख रहे हैं. उन्होंने बताया कि, जल्द से जल्द हम हरीश रावत की तमाम चिंताओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए अगले कुछ दिन में दिल्ली में बैठक भी होने जा रही है. जब हमने पूछा कि क्या हरीश रावत राजनीति से संन्यास लेने जा रहे हैं? इस सवार पर उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि, ऐसा बिल्कुल नहीं होगा. संगठन को लेकर कुछ गंभीर चिंताएं हैं. जिन्हें लेकर हम बात कर रहे हैं.
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि सीधे केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच वाले हरीश रावत आखिर कैसे इस तरह ट्वीट करने पर मजबूर हो गए? इसके कई कारण हैं, जिन्हें लेकर राजनीतिक जानकार लगातार चर्चा कर रहे हैं. उत्तराखंड की राजनीति को करीब से जानने वाले लोगों का मानना है कि ये हरीश रावत की दबाव बनाने वाली रणनीति हो सकती है. प्रदेश कांग्रेस गुटबाजी के लिए जाना जाता है, प्रीतम सिंह धड़े को हरीश रावत विरोधी माना जाता रहा है. ऐसे में चुनाव से पहले टिकट बंटवारे को लेकर वो पूरी ताकत अपने हाथों में रखना चाहते हैं, इसीलिए उन्होंने हाथ खड़े करने की रणनीति अपनाई है.
वहीं दूसरा कारण उन्हें संगठन से दूर रखने की कोशिश को बताया जा रहा है. हरीश रावत को जब पंजाब का प्रभारी बनाया गया था तो वो इससे ज्यादा खुश नहीं नजर आए. पंजाब में चल रहे घमासान के बीच हरीश रावत ने खुद को राज्य से मुक्त करने की भी बात कह डाली थी, जिसके बाद उन्हें उस पद से मुक्त किया गया.
अगर पिछले 5 या 6 सालों में देखें तो उत्तराखंड में कांग्रेस हरीश रावत के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है. ये वही हरीश रावत हैं, जिनके लिए पार्टी ने पिछले चुनाव से पहले अपने कई कद्दावर नेताओं को बीजेपी में जाने दिया. पार्टी के तमाम बड़े चेहरों ने एक साथ कांग्रेस छोड़ दी थी, लेकिन पार्टी हरीश रावत के पीछे खड़ी रही. वहीं जब उत्तराखंड कांग्रेस में 2022 चुनाव से पहले हरीश रावत को लेकर विरोधी सुर उठने लगे तो पार्टी आलाकमान ने उनके विरोधी प्रीतम सिंह को हटाकर उनके करीबी माने जाने वाले गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंप दी.
अब जिस शख्स के लिए कांग्रेस अलाकमान पिछले लंबे समय से सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है. चुनाव से ठीक पहले उसके ऐसे तेवर देख पार्टी कहीं न कहीं परेशान होगी. क्योंकि अगर इस वक्त कुछ भी इधर से उधर होता है तो जो मुकाबला फिलहाल कांटे का नजर आ रहा है, वो एकतरफा माना जाएगा. हरीश रावत की नाराजगी के साथ या फिर उनके बगैर अगर पार्टी चुनाव में उतरी तो जीत लगभग नामुमकिन है.
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