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बिग बी इसी बात से दुखी हैं कि उनके पिता डॉ हरिवंश राय बच्चन की रचनाओं पर कुछ समय बाद पूरी दुनिया का हक होगा. जिसे चाहे वह उनका कारोबारी इस्तेमाल कर सकता है. अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि कॉपीराइट कानून “बकवास” है. यह एक तरह से साहित्यकारों, रचनाकारों के वंशजों के प्रति अन्याय है और वह अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे. वह इस कानून का पुरजोर विरोध करेंगे.
बिग बी के गुस्से को समझा जा सकता है. उन्हें अपने पिता की कृतियों से मोहब्बत होनी भी चाहिए. मैं उनकी इस मोहब्बत को समझते हुए भी उनसे कुछ पूछना चाहता हूं. बिग बी अपने घर में जो बिजली इस्तेमाल करते हैं, जिस गाड़ी में सफर करते हैं, जिस स्टोव पर उनके घर में खाना बनता है, जो कपड़ा वो पहनते हैं क्या उन सभी चीजों का इस्तेमाल करने वक्त कभी उन्होंने उन लोगों के बारे में सोचा जिन्होंने ये सब चीजें विकसित की या उनका अविष्कार किया, उन्हें बनाया?
क्या बिग बी बीमार पड़ते वक्त यह सोचते हैं कि जो दवाएं उन्हें दी जाती हैं या जिन उपकरणों के जरिए उनका इलाज किया जाता है, उन्हें अतीत में किसी न किसी वैज्ञानिक ने बनाया होगा और हो सकता है कि आज उसके वारिसों को कोई रॉयल्टी नहीं मिलती हो? क्या उनके जेहन में कभी इन तमाम वैज्ञानिकों के वंशजों का कर्ज उतारने का ख्याल आया?
डॉ बच्चन ने भी तो ये शब्द इसी समाज से लिए थे. फिर वो शब्द उनके अपने हो गए और उन शब्दों के जरिए जो शिल्प रचा था वह उनका अपना हो गया. उस शिल्प में जो विचार थे वह विचार भी पूरी तरह मौलिक नहीं कहे जा सकते. क्योंकि कोई विचार पूरी तरह मौलिक नहीं होता. महात्मा गांधी के विचार भी बुद्ध और कृष्ण के विचारों से प्रभावित थे. कार्ल मार्क्स के कम्युनिज्म से पहले प्लूटो, जीन जक्कुएस रुसो और जॉर्ज विल्हेम हेगेल के सिद्धांत मौजूद थे. कोई भी नया विचार यूं ही अचानक आसमान में उठ खड़ा नहीं होता, वह अतीत के विचारों का विस्तार होता है. इसलिए मैं अमिताभ बच्चन से यह भी पूछना चाहता हूं कि जब वह अपने बाबूजी की मधुशाला की पंक्तियों को पढ़ते हैं तो उनके जेहन में कभी यह ख्याल आता है कि उन पंक्तियों में छिपे संदेश अतीत की कई अन्य रचनाओं में भी मौजूद हैं?
“मदिरालय जाने को, घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?, असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूं -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला”
—
मुसलमान और हिंदू दो हैं, एक मगर उनका प्याला
एक मगर उनका मदिरालय, एक मगर उनकी हाला
दोनों रहते एक न जब तक मंदिर-मस्जिद को जाता
बैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला
—
मैं मदिरालय के अंदर हूं मेरे हाथों में प्याला
प्याले में मदिरालय बिंबित करने वाली हाला
इस उधेड़बुन ही में मेरा सारा जीवन बीत गया
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला
डॉ हरिवंश राय बच्चन ने अपने जीवन में अपनी कृतियों के जरिए जो भी आमदनी कमाई उससे उन्होंने अपने जीवन का थोड़ा सा सफर, थोड़े से सपने पूरे किये. उनके जाने के बाद 60 साल तक उनकी रचनाएं उनके वंशजों के जीवन में आर्थिक तौर पर जितना हो सके उतना योगदान करेंगी.
इतनी जिम्मेदारी पूरी करने के बाद उन रचनाओं को भी मुक्त होने का हक है. तब वो रचनाएं पूरी तरह उसी समाज की होंगी जिस समाज से उनका जन्म हुआ है. भविष्य के रचनाकारों को उनके साथ प्रयोग करने के लिए किसी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं होगी. जब समाज से डॉ बच्चन ने इतना कुछ लिया तो फिर समाज को देने में हर्ज क्या?
बुद्ध और सुकरात को गुजरे हजारों साल बीत गए हैं. कबीर और तुलसी दास को गए भी सदियां बीत गई हैं. गालिब और टैगोर को गए भी जमाना बीत गया है. लेकिन वो सभी जिंदा हैं, इसलिए क्योंकि उनके शब्द जिंदा हैं. उनके शब्दों की संरचना में छिपे विचार जिंदा हैं. उनमें से किसी को भी उनके वंशजों ने जिंदा नहीं रखा है. बहुतों के वंश का भी पता नहीं. उन्हें उनके समाज ने, उनके चाहनेवालों ने जिंदा रखा है.
दरअसल, कॉपीराइट कानून लेखकों और रचनाकारों के हितों की रक्षा के लिए ही बना था. सोचिए यह कानून नहीं होता तो फिर रचनाकारों के हितों की रक्षा कैसे होती? उनका जीवन-यापन कैसे होता? ठीक उसी तरह वैज्ञानिकों के हितों की रक्षा के लिए या फिर शोध पर खर्च करने वाली कंपनियों के हितों की रक्षा के लिए पेटेंट बनाया गया. उसमें 20 साल तक अधिकार सुरक्षित रखा गया.
उदाहरण के तौर पर किसी वैज्ञानिक ने अगर कोई नई दवा बनाई तो उससे होने वाली आमदनी के एक हिस्से पर उसका अधिकार 20 साल तक सुरक्षित रहेगा. थॉमस एडिसन ने बिजली बनाई. टेस्ला ने उनसे एक कदम आगे जाकर डायरेक्ट करंट (डीसी) को अल्टरनेटिंग करंट (एसी) में तब्दील कर दिया. यही बिजली हमारे घरों में सप्लाई होती है. जोनास सॉल्क ने पोलियो वैक्सीन का अविष्कार किया, जिसे अल्बर्ट साबिन ने विकसित किया. उनके अविष्कार ने दुनिया को पोलियो जैसी खतरनाक बीमारी से आजाद किया.
दुनिया को एच1एन1 वायरस से लेकर तमाम खतरनाक बैक्टिरिया और वायरस से मुक्त कराने में क्रम में अनेकों वैज्ञानिकों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया. उन सभी वैज्ञानिकों को भी बस एक समय सीमा तक ही उनके अविष्कार का प्रीमियम मिलता है. फिर उनका अविष्कार मानव जीवन कल्याण के लिए समर्पित कर दिया जाता है.
इसी प्रकार रचनाकारों की कृतियां भी समय सीमा के बाद आर्थिक और कानूनी अधिकारों से आजाद हो जाती हैं. लेकिन यहां समय सीमा ज्यादा है. दुनिया के अलग-अलग देशों में इस कानून के तहत रचनाकार की मृत्यु के बाद 50 से 100 साल तक उनकी कृतियों पर उनके वंशजों का अधिकार सुरक्षित रहता है.
भारत के कॉपीराइट कानून में पहले यह अधिकार 50 साल तक ही सीमित था. रविंद्रनाथ टैगोर के साहित्य और संगीत पर से कॉपीराइट खत्म हो रहा था, तो पश्चिम बंगाल में आंदोलन चला. समर्थन के सुर कई अन्य जगह से उठे. जिसके बाद कॉपीराइट कानून में संशोधन किया गया. 50 साल की अधिकार सीमा बढ़ाकर 60 साल की गई. इतने समय में किसी भी रचनाकार की दो पीढ़ियां आराम से उसकी रचनाओं का आर्थिक लाभ उठा सकती हैं.
किसी रचनाकार की कृति पर इससे अधिक वंशजों का बोझ डालना कहां तक उचित है? रही बात इस आशंका की कि कोई उनकी रचनाओं से छेड़छाड़ करेगा, तो यह जिम्मेदारी समाज पर छोड़ दीजिए. रचनाकार समाज का होता है. अगर कोई व्यक्ति किसी रचनाकार की कृति का गलत इस्तेमाल करेगा, तो उसके साथ इंसाफ यह समाज करेगा.
अगर समाज इंसाफ नहीं कर सकेगा तो भी यह सत्य है कि शब्द और विचार मरते नहीं हैं. शब्द और विचार जिंदा रहते हैं. सुकरात को उस दौर के समाज ने जहर का प्याला पिला दिया था, लेकिन सुकरात आज भी जिंदा हैं. बुद्ध, लिंकन, गांधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर इन सभी की हत्या की गई, लेकिन ये सभी आज भी जिंदा हैं. इसलिए कि उनके शब्द और उनके विचार जिंदा हैं.
शब्दों और विचारों में असीम ताकत होती है. उस ताकत की कल्पना हम और आप नहीं कर सकते. तभी तो शब्द और विचार वक्त की कैद से भी मुक्त होते हैं. इसलिए अमिताभ बच्चन से बस इतना ही कहना है कि वह निश्चिंत रहें, उनके पिता डॉ हरिवंश राय बच्चन की कृतियों में इतनी क्षमता है कि वो अपनी रक्षा कर सकें और खुद को और अपने रचयिता को जिंदा रख सकें. सहेज सकें. खुद डॉ बच्चन ने भी यही कहा है…
बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,
बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला,
पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही
और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।
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