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जब बॉलीवुड में बात महिलाओं के किरदार की होती है, तो बॉलीवुड अपनी अलग ही लय में बहता है. कभी जबरदस्त कहानियों के सहारे औरतों के मुद्दे को एक कदम आगे बढ़ता है, तो कभी कमजोर स्क्रिप्ट से दो कदम पीछे. महिलाओं के मुद्दे को आगे बढ़ाने वाली कहानियों में ही शुमार हो गई है ‘अनारकली ऑफ आरा’. अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘पिंक’ की तरह ही यह फिल्म भी हमें 'असहमति' और 'ना' जैसे शब्दों का मतलब सोचने पर मजबूर करती है, लेकिन साथ ही इस फिल्म में कुछ कमियां भी हैं.
औरतों का कपड़ा, प्रोफेशन, परिस्थिति चाहे जैसा भी हों, लेकिन उसके ‘ना’ का मतलब हमेशा ना होता है. फिल्म का आईडिया बहुत शानदार है, जो इसे एक महत्वपूर्ण फिल्म बनाता है, लेकिन उस आईडिया के एग्जिक्यूशन में थोड़ी कमी होने के वजह से फिल्म कई जगहों पर कमजोर पड़ती दिखती है.
आरा के छोटे से शहर में, अनारकली अपने चमकीले लहंगे में घूमती नजर आती हैं. वह कोई मासूम सी दिखने वाली लड़की नहीं है. एक शक्तिशाली, उत्साही और तड़कती भड़कती कलाकार, जिसके नाच और गाने के लोग दीवाने हैं. लेकिन कहानी तब मोड़ लेती है, जब एक स्टेज शो के दौरान नशे में धुत, राजनीतिक गलियारों में पकड़ रखने वाला वीसी (संजय मिश्र) अनारकाली से बदतमीजी करता है और उसे अपने बाहों में लेना चाहता है. और तब अनारकाली यह फैसला करती है कि वह अब सहेगी नहीं बल्कि लड़ेगी.
अनारकली खुद को कहती है "हम कोई दूध के धुले नहीं हैं", लेकिन साथ ही उसे कोई उसके बिना मर्जी के छुए उसे यह भी पसंद नहीं था. अनारकाली के रूप में स्वरा भास्कर की जबरदस्त एक्टिंग है. साथ ही जब वह फोक गाने से लेकर स्टेज पर ठुमका लगाती है और तो और जब वह खुद को बचाने के लिए अपनी लड़ाई लड़ती है वह भी अपने आप में काबिल ए तारीफ है.
स्वरा की एक्टिंग देखने के बाद आप के मुंह से अरे वाह जरुर निकलेगा. साथ ही संजय मिश्र और त्रिपाठी की मंझी हुई एक्टिंग फिल्म में और जान डाल देती है. संजय मिश्र की एक्टिंग हमेशा की तरह दमदार है.
लोकेशन, गाने और परफॉरमेंस के जरिये छोटे शहर के माहौल को बखूबी दिखाया गया है.
डेब्यू कर रहे डायरेक्टर अविनाश दास फिल्म इंडस्ट्री में एक नई आवाज के रूप में सामने आये हैं, जिन्होंने औरतों और सेक्सुअलिटी जैसे मुद्दों पर अपनी पहली फिल्म बना कर बहुत बहादुरी का काम किया है. लेकिन, स्क्रीनप्ले उन्हें जरूरी मदद देने में असफल रहा. ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म के शुरुआती 30 मिनट में कुछ भी रोमांचक नहीं होता है.
ठीक उसी तरह इंटरवल के बाद भी कमजोर स्क्रीनप्ले देखने को मिलता है. फिल्म में कई पहलु बहुत ढीले हैं, जो इसे और कमजोर बनाती हैं. जैसे कि अनारकली और एक नौजवान अनवर की दोस्ती, साथ ही फिल्म में उसके नाचने और गाने का विरोध होना. अनारकली ऑफ आरा एक बेहतर फिल्म हो सकती थी, लेकिन फिर भी यह एक बार जरूर देखे जाने वाली फिल्मों में से है.
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