Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Entertainment Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019'Animal' फिल्म में 'मुस्लिम विलेन' की जरूरत क्यों पड़ी?

'Animal' फिल्म में 'मुस्लिम विलेन' की जरूरत क्यों पड़ी?

Ranbir Kapoor की फिल्म 'एनिमल' फिल्मी पर्दे पर दक्षिणपंथी ट्रोल्स के सबसे हसीन सपने का प्रतिनिधित्व करती है.

आदित्य मेनन
एंटरटेनमेंट
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'एनिमल': फिल्म में 'मुस्लिम विलेन' की जरूरत क्यों पड़ी?

(फोटो साभारः यूट्यूब)

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(चेतावनी: इसमें फिल्म के स्पॉइलर और हिंसा के डिटेल्स शामिल हैं.)

डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा की 'एनिमल' (Animal Movie) में ऐसी कई चीजें हैं जिनकी जरुरत नहीं थी- जैसे की फिल्म की लेंथ, उसके वीमेन कैरेक्टर और बॉबी देओल (इसकी जगह 'बहुत बुरा, डरावना दिखने वाला आदमी' का इनपुट डालकर AI की मदद से बना हुआ करैक्टर पर्याप्त होता).

और फिर मिसोजिनी यानी औरतों के हर रूप से नफरत. हालांकि, इस आर्टिकल में हम फिल्म के दो अन्य पहलुओं पर नजर डालेंगे:

सबसे पहले एक ऐसा पहलू जो गैर-जरुरी लगता है लेकिन हकीकत में फिल्म पूरे प्लॉट का केंद्र है - विलेन्स (अंटागोनिस्ट) का मुस्लिम बैकग्राउंड.

दूसरा एक वो पहलू जो फिल्म का केंद्र लगता है लेकिन वास्तव में गैर-जरुरी है - नायकों (प्रोटागोनिस्ट) का सिख बैकग्राउंड

इसे समझने के लिए, आइए सबसे पहले यह कल्पना करें कि कि मिसोजिनी या मुस्लिम-विरोधी नैरेटिव के बिना 'एनिमल' फिल्म कैसी हो सकती थी.

एनिमल कैसी फिल्म हो सकती थी ?

मिसोजिनी, इस्लामोफोबिया और इंटिमेंट सीन के बिना, 'एनिमल' मूल रूप से एक बदले की कहानी है जो चचेरे भाइयों के बीच झगड़े पर केंद्रित है.

प्रकाश झा की 'राजनीति' (2010) से लेकर नवनीत सिंह के डायरेक्शन और जिमी शेरगिल के लीड से सजी पंजाबी फिल्म 'शरीक' (2015) तक, चचेरे भाइयों के बीच की लड़ाई भारतीय फिल्मों में एक आकर्षक विषय रही हैं.

लेकिन जिस फिल्म का 'एनिमल' पर सबसे गहरा प्रभाव दिखता है, वह तमिल फिल्म 'थेवर मगन' (1992) है, जिसका हिंदी में रीमेक 'विरासत' (1997) है. ध्यान रहे प्रभाव दिखता है, प्रेरणा नहीं. हम थोड़ी देर में उस पर आएंगे.

'एनिमल' की तरह, 'थेवर मगन/विरासत' में चचेरे भाइयों के बीच प्रतिद्वंद्विता को दर्शाया गया था और फिल्मों में एक मजबूत पिता-पुत्र ट्रैक भी था.

दिलचस्प बात यह है कि 'विरासत' में 'बेटे' का किरदार निभाने वाले अनिल कपूर 'एनिमल' में पिता हैं.

लेकिन वंगा की 'एनिमल' में 'थेवर मगन/विरासत' की नैतिकता को पूरी तरह से उलट देती है.

'विरासत' में मिलिंद गुनाजी द्वारा निभाया गया नायक बल्ली ठाकुर अनिल कपूर को ताना मारता रहता है, "अंदर का जानवर मर गया क्या? जबकि एनिमल में अनिल कपूर अपने बेटे के अंदर के जानवर को न जगाने का आग्रह करता है.

'विरासत' के क्लाइमेक्स सीन में भी बल्ली अनिल कपूर के किरदार को 'गंडासा' उठाने के लिए ताना मारता रहता है, लेकिन अनिल कपूर का किरदार फिल्म के आखिरी पलों तक ऐसा नहीं करता है, जब 'जानवर' जाग जाता है और अनिल कपूर का किरदार कुल्हाड़ी उठा लेता है और गुस्से में बल्ली ठाकुर का सिर धड़ से अलग कर देता है, लेकिन कुछ पल बाद ही वह अफसोस में रोने लगता है.

'विरासत' में नायक जिस 'जानवर' को रोकने की कोशिश करता रहता है, वह वांगा की कहानी में इतना अनियंत्रित हो जाता है कि उन्होंने इसे फिल्म का टाइटल ही बना दिया. इस फिल्म में जानवर ही हीरो है.

विरासत में अनिल कपूर और तब्बू

(फोटो सौजन्य: फेसबुक)

गंडासा, जिसे अनिल कपूर और कमल हासन के कैरेक्टर ने पूरी तरह से मजबूर होने तक इस्तेमाल करने से बचने की कोशिश की थी, इसे 'एनिमल' में अर्जन वैली गाने में बढ़ावा दिया गया है जो कुल्हाड़ी चलाने वाले लड़ाई के सीन के दौरान बैकग्राउंड में बजता है.

यहां पिता-पुत्र के रिश्ते का स्वरूप भी उलटा है.

थेवर मगन/विरासत कुछ हद तक 'द गॉडफादर' से प्रेरित है. उसमें बेटे की शुरुआत में अलग आकांक्षाएं होती हैं लेकिन आखिरकर वह अपने पिता का स्थान लेता है और पिता की तरह एक सम्मानित गांव का मुखिया बन जाता है. बेटा अपने पिता का सम्मान रखने के लिए अपने प्रेम जीवन से समझौता करता है और शादी करता है.

'एनिमल' में नायक शादी के मुद्दे पर अपने पिता से विद्रोह करता है. और बाद में पिता को फॉलो करने और उसकी जिम्मेदारियां लेने के बजाय, वह घायल पिता को अपनी इच्छा के अधीन कर देता है.

यह नैतिक अंतर हमें कुछ हद तक यह समझने में मदद कर सकता है कि 'एनिमल' का प्लॉट किस मिजाज का है.

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ANIMAL दक्षिणपंथी ट्रोल्स की कल्पना है

एनिमल फिल्म का मनोवैज्ञानिक ब्रह्मांड वही है जो सोशल मीडिया पर अनैच्छिक ब्रह्मचर्य (इंसल) को अपनाए कई दक्षिणपंथी ट्रोल्स में बसा हुआ है.

यह फिल्म उन सभी के खिलाफ बदला है जो इन पुरुष शासकों की असुरक्षित मर्दानगी को खतरे में डालते हैं- यानि सुरक्षित और कार्यात्मक पुरुष, महिलाएं जो गलत को गलत और सही को सही कहती हैं, वे लोग जो नाजी को नाजी कहते हैं और अंतिम लेकिन निश्चित रूप से मुस्लिम.

दक्षिणपंथी इंसल के लिए, फिल्मे गहरे, आंतरिक स्तर पर जुड़ती हैं. यह लगभग वैसा ही है जैसे उनके पसंदीदा मीम्स और कल्पनाओं को बड़े पर्दे पर उतार दिया गया हो.

उदाहरण के लिए, उस सीन पर विचार करें जिसमें रणबीर कपूर का किरदार रणविजय, तृप्ति डिमरी की किरदार जोया को उसके प्रति अपना प्यार साबित करने के लिए अपने जूते चाटने का आदेश देता है.

यह सीन - एक मुस्लिम महिला का 'हिंदू अल्फा मेल' के सामने गुलाम की तरह समर्पण करने का - हिंदुत्व समर्थकों द्वारा इंस्टाग्राम पर चलाए जा रहे अर्ध-अश्लील पेजों की 'जालिम हिंदू', 'जालिम पंडित' जॉनर में एक बहुत ही आम मीम है.

बुल्ली बाई और सुल्ली डील - जिसमें मुस्लिम महिला पत्रकारों और एक्टिविस्टों को नकली नीलामी के लिए रखा गया था - उसी इकोसिस्टम की कल्पनाओं के प्रोडक्ट थे. संयोग से, बुल्ली बाई मामले में पुलिस का कहना है कि अपराधियों ने अपनी पहचान छिपाने के लिए सिख नामों और प्रतीकों का इस्तेमाल किया.

अगले सेक्शन में एनिमल फिल्म में सिखों के साथ के व्यवहार के बारे में बात करेंगे.

'एनिमल' में नायक का अपने सख्त पिता के साथ खराब रिश्ता तभी ठीक होता है जब वह 'मुस्लिम विलेन' का गला काटकर घर लौटता है. विलेन- अबरार हक का किरदार बॉबी देओल ने निभाया है. वह भी सभी सामान्य घिसी-पिटी बातों से बना है - उसकी तीन पत्नियां और कई बच्चे हैं, वह केक भी ऐसे खाता है जैसे वह मांस का एक टुकड़ा खा रहा हो, मैरिटल-रेप आदि को अंजाम देता है. वास्तव में, फिल्म में यह उल्लेख किया गया है कि अबरार हक के परिवार के मर्दों ने केवल इसलिए इस्लाम अपनाया ताकि वे कई पत्नियां रख सकें.

'एनिमल' में मुसलमान किरदारों का गला काटना, महिलाओं का अपमान करना, अल्फा मेल अवधारणा के प्रति जुनून, बार बार किसी के लिंग की बात करना.. आपको यही थीम दक्षिणपंथी ट्रोल्स की बातों में भी मिलेगा.

क्या 'एनिमल' सचमुच सिख समर्थक है?

एक तरफ तो फिल्म में मिसोजिनी और इस्लामोफोबिया बहुत स्पष्ट है, वहीं साथ ही सिखों पर सेट किया नैरेटिव ज्यादा घातक है.

एक तरफ तो सतही तौर पर 'एनिमल' खुद को एक सिख समर्थक फिल्म के रूप में प्रस्तुत करती है - नायक को सिख पृष्ठभूमि से दिखाया गया है और उसके पीछे स्पष्ट रूप से सिख बॉडीगार्ड हैं. अंत में कारा और कृपाण की मदद से विलेन को मारा जाता है.

लेकिन एक बार जब आप सतह को खंगालेंगे तो यह साफ हो जाएगा कि फिल्म वास्तव में सिख धर्म की प्रथा के खिलाफ है. हीरो, उसके पिता और दादा को हिंदू रूप में दिखाया गया है - उन्होंने केश कत्ल किया है (अपने बाल काटे हैं), वे हिंदू अनुष्ठान करते हैं, और नायक को गौमूत्र पीते हुए भी दिखाया गया है.

नायक को चेन स्मोकर के रूप में दिखाया गया है, जबकि सिखों के लिए स्मोकिंग सख्त वर्जित है.

अंत में एक पॉइंट पर ऐसा लगता है कि हीरो जवान हो गया है और अपने बाल और दाढ़ी बढ़ा रहा है. लेकिन आखिरी सीन में वह एक बार फिर क्लीन शेव और तिलक लगाए वापस आते हैं.

इतने सारे सिख पात्रों के बावजूद, उन्हें एक बार भी जयकारा गाते या गुरुद्वारे में जाते नहीं दिखाया गया है.

सिखी के बिना, सिख पात्र महज सहारा मात्र हैं.

इस फिल्म में सिखों के लिए अंतर्निहित संदेश यह है कि उनका महिमामंडन तभी किया जाएगा जब वे हिंदू बन जाएंगे, कुछ प्रमुख सिख सिद्धांतों को त्याग देंगे और मुस्लिम खलनायक के खिलाफ "बड़ी लड़ाई" में शामिल होंगे.

पंजाब में सेट होने की वजह से, फिल्म के रिवेंज ड्रामा होने की बहुत संभावना थी जो इस क्षेत्र की लोककथाओं का अभिन्न अंग है. लेकिन, 1982 की फिल्म 'पुत्त जट्टां दे' के गाने अर्जन वैली के हैट-टिप को छोड़कर, इसका पंजाब के संदर्भ में कोई जुड़ाव नहीं था.

फिल्म को एमी विर्क अभिनीत पंजाबी फिल्म 'मौरह' (2023) से सीखना चाहिए, यह देखने के लिए कि कैसे एक मुस्लिम प्रतिद्वंद्वी से जुड़ा एक रिवेंज ड्रामा भी बिना इस्लामोफोबिया के बनाया जा सकता है, बस ईमानदारी से फिल्म को पंजाब के संदर्भ में रखकर बनाया जाए तो.

'एनिमल' एक गलत इरादे वाली और घटिया फिल्म है, लेकिन यह 'केरल स्टोरी' और 'कश्मीर फाइल्स' की तरह एक मील का पत्थर है. अगर वे दो फिल्में बड़े पर्दे पर व्हाट्सएप फॉरवर्ड वाले कंटेंट का प्रतिनिधित्व करती हैं, तो 'एनिमल' फिल्मी पर्दे पर किसी दक्षिणपंथी ट्रोल के वेट ड्रीम का.

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