भोजपुरी फिल्मों के लिए ‘मक्का’ बन गया है बनारस का आनंद मंदिर
आनन्द मंदिर में फिल्म लगाने के लिए क्यों आती है नेताओं की सिफारिश
विक्रांत दुबे
भोजपुरी
Updated:
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(फोटोः Altered By Quint)
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वाराणसी का ‘आनन्द मंदिर’ सिनेमा हॉल भोजपुरी फिल्मों का ‘मक्का’ कहलाता है. ‘आनन्द मंदिर ’ में भोजपुरी फिल्म का मतलब सुपरहिट की गारंटी. ये सिंगल स्क्रीन सिनेमा हाॅल 1965 में खुला था. शुरुआत में यहां बाॅलीवुड और हाॅलीवुड की फिल्में चली और उन्होंने हाॅल को कमाई भी खूब दी. लेकिन साल 2004 के बाद यहां सिर्फ भोजपुरी फिल्में लगनी शुरू हुईं. और तब से यहां भोजपुरी फिल्मों का जलवा बरकरार है.
फिल्म एग्जीक्यूटर आलोक दुबे बताते हैं कि बनारस में ‘आनन्द मंदिर’ के मशहूर होने की वजह ये है कि इसने समय-समय पर खुद को बदला और नई तकनीक को भी अपनाया.
भोजपुरी पिक्चरों का बिजनेस यहां पर एक अलग ढंग से ही होता है. साधारण फिल्में भी यहां बहुत अच्छा व्यवसाय करती हैं, इसलिए लोगों को यहां विश्वास हो गया है कि पिक्चर की शुरुआत ‘आनन्द मंदिर’ से हो तो उसको अच्छा स्टार्ट मिलेगा. ये उनका विश्वास है. यहां हमने 52 हफ्ते शोले चलाई है, लगभग 8 पिक्चरें हम लोग हिंदी की सिल्वर जुबली कर चुके हैं. हम समय समय पर अपने आपको परिवर्तित करते चले गए हैं. 2004 में भोजपुरी पिक्चर आई- ‘ससुरा बड़ा पईसावाला’, उसको लगाया गया और वो फिल्म हमारे यहां 32 हफ्ते चली. तब हम लोगों को लगा कि यहां भोजपुरी पिक्चर का पोटेंशियल काफी है.
आलोक दुबे, फिल्म एग्जीक्यूटर
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फिल्म लगाने के लिए आती है नेताओं की सिफारिश
विधायक और सांसद जैसे लोग इन्वॉल्व हो जाते हैं और फोन करके दबाव बनाते हैं कि हमारे जानने वाले कि फिल्म चला दीजिए. ऐसी- ऐसी पिक्चरें आई, जिनका व्यवसाय सर्किट में ना के बराबर था. मगर जब वो आनन्द मंदिर में लगी तो उसने अच्छा व्यवसाय किया.
ललित अग्रवाल, आनन्द मंदिर सिनेमा के मालिक
मल्टीप्लेक्स के दौर में सिगंल स्क्रीन सिनेमा का बुरा हाल है. सिंगल स्क्रीन सिनेमा से फिल्म और दर्शक दोनों गायब रहते हैं लेकिन आनन्द मंदिर के फिल्मों का दर्शकों को इंतजार रहता है.
भोजपुरियों के लिए बनारस मतलब आनन्द मंदिर और आनन्द मंदिर मतलब बनारस. दर्शक विश्वास करते हैं कि आनंद मंदिर में कोई पिक्चर आएगी तो वो अच्छी होगी तभी लगेगी.
राजकुमार पांडेय, भोजपुरी फिल्म डायरेक्टर
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि फिल्म कहीं भी बने, जितने भी बड़े बैनर की हो अगर उसका प्रीमियर बनारस के आनंद मंदिर सिनेमा में नहीं हुआ तो बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कम ही रहती है. कई प्रोडक्शन कम्पनियां फिल्म शुरू करने के साथ ही सिनेमा हॉल बुक कर लेते हैं. 53 साल से मनोरंजन का 'आनन्द' अब भोजपुरी फिल्मों के साथ जारी है.