advertisement
स्मिता पाटिल एक ऐसी कलाकार, जिन्हें देखकर कभी लगा ही नहीं कि वो अभिनय कर रही हैं. अपने किरदारों में खो जाना उनकी सबसे बड़ी खासियत थी. अपनी सौम्य मुस्कान और दमकता चेहरा, जब आर्ट फिल्मों से लेकर कमर्शियल फिल्मों तक उनका चेहरा नजर आया, तो हर किसी ने उसे पड़ोस की सांवली सी लड़की के रूप में देखा और सराहा.
महज 31 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहने वाली स्मिता पाटिल को गुजरे हुए कई साल बीत गए, लेकिन आज भी वो लोगों के दिलों में जिंदा हैं.
स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्टूबर, 1956 को पुणे में एक मराठी राजनीतिज्ञ परिवार में हुआ. उनके पिता शिवाजीराव पाटिल महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और मां विद्या ताई पाटिल सामाजिक कार्यकर्ता थीं.
स्मिता का नाम रखे जाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. जन्म के समय उनके चेहरे पर स्मिता (मुस्कान) देखकर मां ने उनका नाम स्मिता रख दिया. यही मुस्कान आगे चलकर भी उनके व्यक्तित्व का सबसे आकर्षक पहलू बनी.
स्मिता पाटिल अपने गंभीर अभिनय के लिए जानी जाती हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि फिल्मी पर्दे पर सहज और गंभीर दिखने वाली स्मिता असल जिंदगी में बहुत शरारती थीं. उनकी शुरुआती पढ़ाई मराठी माध्यम के एक स्कूल से हुई थी. उनका कैमरे से पहला सामना टीवी एंकर के रूप में हुआ था.
फिल्मों में आने से पहले स्मिता पाटिल बंबई दूरदर्शन चैनल पर मराठी में समाचार पढ़ा करती थीं. समाचार पढ़ने से पहले उनके लिए साड़ी पहनना जरूरी होता था, मगर स्मिता को तो जींस पहनना अच्छा लगता था. अक्सर समाचार पढ़ने से पहले वह जींस के ऊपर ही साड़ी लपेट लिया करती थीं.
न्यूज एंकर स्मिता की मुलाकात जाने-माने फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल से हुई. श्याम बेनेगल उन दिनों अपनी फिल्म 'चरण दास चोर' बनाने की तैयारी में थे. बेनेगल की आंखों ने पहचान लिया था कि यह आगे चमकने वाला सितारा है. उन्होंने स्मिता को अपनी फिल्म में एक छोटी-सी भूमिका निभाने का मौका दिया.
स्मिता पाटिल ने अपने छोटे से फिल्मी सफर में ऐसी फिल्में कीं, जो भारतीय फिल्मों के इतिहास में मील का पत्थर बन गईं. उनकी छाप छोड़ने वाली फिल्मों में जहां 'भूमिका', 'मंथन', 'मिर्च मसाला', 'अर्थ', 'मंडी' और 'निशांत' जैसी रचनात्मक फिल्में शामिल हैं, तो दूसरी तरफ अमिताभ बच्चन संग 'नमक हलाल' और अन्य फिल्म 'शक्ति' व्यावसायिक फिल्मों की कतार में शामिल हैं.
स्मिता ने 1974 से 1985 तक अपने करियर में कई उपलब्धियां हासिल कीं. 1985 में भारत सरकार ने सम्मनित नागरिक पुरस्कर पद्मश्री से भी सम्मानित किया .
उन्होंने 1977 में 'भूमिका', 1980 में 'चक्र' में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किया. साथ ही उन्होंने 1978 में 'जैत रे जैत', 1978 में 'भूमिका', 1981 में 'उंबरठा', 1982 में 'चक्र', 1983 में 'बाजार', 1985 में 'आज की आवाज' के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता.
स्मिता पाटिल को अभिनेता राज बब्बर के साथ अपने रिश्ते को लेकर आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा. राज बब्बर पहले से ही विवाहित थे, मगर स्मिता से शादी करने को वह राजी हो गए और अपनी पहली पत्नी नादिरा बब्बर को छोड़ दिया था. राज बब्बर के दो बच्चे भी थे. स्मिता की मां उनके और राज के रिश्ते के खिलाफ थी. इन सबके बावजूद स्मिता और राज बब्बर ने बिना दुनिया की परवाह किए बिना साथ रहने का फैसला किया.
स्मिता पाटिल का फिल्मी सफर सिर्फ 10 साल का रहा है, लेकिन काम ऐसा कि आज लोग याद करते हैं. 13 दिसंबर, 1986 को महज 31 साल की उम्र में ही सबको अलविदा कह दिया. उनका निधन बेटे प्रतीक बब्बर को जन्म देने के दो सप्ताह बाद हुआ.
वहीं उनकी मौत के बाद कई सवाल खड़े हुए. भारत के सबसे बड़े फिल्म निर्देशकों में से एक, मृणाल सेन का कथित तौर पर कहना है स्मिता पाटिल का देहांत इलाज में लापरवाही के कारण हुआ. उनकी अचानक मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)