‘पानीपत’ के लिए अर्जुन और कृति ने कैसे की तैयारी?

फिल्म ‘पानीपत’, 1761 में हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई पर बनी है.

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कृति सैनन और अर्जुन कपूर के साथ ‘पानीपत’ डायरेक्टर आशुतोष गोवरिकर. 
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कृति सैनन और अर्जुन कपूर के साथ ‘पानीपत’ डायरेक्टर आशुतोष गोवरिकर. 
(फोटो: योगेन शाह) 

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आशुतोष गोवरिकर ‘पानीपत’ की लड़ाई की कहानी पर्दे पर लेकर आ रहे हैं. फिल्म में संजय दत्त, अर्जुन कपूर और कृति सैनन लीड रोल में नजर आएंगें. ये फिल्म 1761 में हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई पर बेस्ड है. ये जंग मराठा साम्राज्य और अफगानिस्तान के राजा अहमद शाह अब्दाली की सेना के बीच हुई थी.

आशुतोष गोवरिकर, अर्जुन और कृति ने अपनी फिल्म से जुड़ी चुनौतियों और ‘पानीपत’ का संजय लीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' से तुलना करने पर भी अपनी बात रखी.

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कैसे शुरू हुई ‘पानीपत‘?

आशुतोष: ‘पानीपत’ की बात करें, एक तो शहर का नाम और उसके साथ जुड़ी हुई तीन लड़ाइयां जिसमें पहली दो लड़ाइयां हमें सिर्फ ऊपर- ऊपर से पता है. दूसरी लड़ाई तो मैंने ‘जोधा अकबर’ में दिखाई थी. तीसरी लड़ाई के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और हम कभी भी उसमें दिलचस्पी नहीं दिखाते थे, क्योंकि वो एक हारी हुई लड़ाई है. मेरे मन में भी ये ही था, लेकिन पिछले 5-6 सालों से मैंने इसके बारे में पढ़ना शुरू किया, तो मुझे ये एहसास हुआ कि ये शौर्य की प्रेरणा से भरपूर कहानी है और किस तरह से सदाशिवराव पेशवा, जिन्होंने मराठा सेना का नेतृत्व किया एक आक्रमण को रोकने के लिए जो अहमद शाह अब्दाली ने किया था.

आशुतोष के साथ काम करके कैसा लगा?

अर्जुन: मुझे लगता है ये बहुत अच्छा है कि वो इतनी छोटी-छोटी डीटेल हमें देते हैं. एक एक्टर के तौर पर ऐतिहासिक ड्रामा या सच्ची कहानी में आप ज्यादातर रिसर्च पर ही निर्भर रहते हैं. अगर मैं भी रिसर्च करने लगूं, तो मेरी और उनकी रिसर्च क्लैश करना शुरू हो जाएगी, क्योंकि मुझे उनकी रिसर्च के साथ अलाइन करना पड़ेगा. एक कहानी कई तरीकों से बोली जाती है,  जिस तरह वो समझाते हैं एकदम धैर्य के साथ वो लॉजिक देते हैं, बहुत लॉजिकल आदमी हैं. वो आपको लॉजिक देंगे कि कैरेक्टर ऐसा क्यों था या कैरेक्टर का रिएक्शन उस समय पर ऐसा होना चाहिए. वो आपको सोचने के लिए काफी कंटेंट देते हैं. ऐसा नहीं है कि आ जाएं और बोलें कि ऐसा रिएक्शन दो उनका विजन वही है कि इस समय सदाशिवराव भाऊ पर ये बीती थी अब तुम अपने तरीके से, लेकिन उस कैरेक्टर में रह कर इसे बयां करो.

कृति: हर एक छोटी सी छोटी डीटेल पर बहुत गौर करते हैं जैसे ‘मर्द मराठा’ एक ऐसा गाना है जिसमें बहुत सारे लोग हैं और बहुत सारी चीजें एक साथ हो रही हैं, लेकिन वो उसमें ये भी ध्यान दे देंगे कि पीछे एक झंडा है जो सही तरह से हिल नहीं रहा है. बहुत ही गजब की बात है कि ये काबिलियत हो और उनके जो ब्रीफ होते हैं, वो भी ज्यादातर सटीक होते हैं. इतने सटीक कि. गलत जाना मुश्किल होता है. ‘मर्द मराठा’ गाने में ही एक लाइन है, जो मैं सदाशिव को बोल रही हूं. तो ये आए और बोलने लगे कि इस लाइन पर एक ऐसी स्माइल दो, जिससे लगे कि तुम इसे काफी समय से जानती हो. और वो इतना सुंदर डिस्क्रिप्शन था कि मेरे लिए काम आसान हो गया था.

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