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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
आप मुझसे हर रोज नागरिकता कानून, दिल्ली चुनाव या कुछ सियासी और क्राइम की बात सुनते होंगे. लेकिन आज जरा फ्लेवर चेंज करते हैं. बात करते हैं बिग बॉस की पॉलिटिक्स और पॉलिटिक्स के बिग बॉस की. रियलिटी शो बिग बॉस अगर आप नहीं भी देखते हैं, तो वीडियो छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस कहानी में आप पर और हम पर असर डालने वाली सियासत की खूब बाते हैं.
शुरुआत में बात रियलिटी शो बिग बॉस की.बिग बॉस का ये 13वां सीजन है और सबसे कामयाब सीजन है.अब सिर्फ 5-7 कंटेस्टेंट बच गए हैं.15 फरवरी को तय हो जाएगा कि कौन विनर बनेगा. यहां भी किसी राजनीतिक चुनाव की तरह घर से बाहर निकालने का फैसला दर्शकों के वोटों के आधार पर किया जाता है.
ऐसे में 24 घंटे मौजूद रहने वाले कैमरे, घर के सदस्यों की हर बातचीत, विवाद और शो को जीतने की स्ट्रैटेजी दिखाते हैं. इसे देखकर लोग तय करते हैं कि कौन सा सदस्य अच्छा-बुरा या एंटरटेनर है.
कभी बिग बॉस के कंटेस्टेंट आसिम रियाज के नाम से ट्रेंड चलते हैं तो कभी.सिद्धार्थ शुक्ला तो रश्मि देसाई तो कभी सिडनाज.मतलब दिन दुनिया से विरक्त बिग बॉस के ट्विटरिया फ्रेंड इसमें शिद्दत से लगे रहते हैं. जहां तक रहे इस शो के फॉर्मेट की बात तो सारे कंटेस्टेंट एक घर में ही रहते हैं, उन्हीं बाहर की खबरों मतलब देश में चुनाव चल रहा है कि नागरिकता कानून पर प्रदर्शन चल रहा है इसका कुछ पता नहीं होता. घर में बंद रहते हैं और एक बिग बॉस नाम की आवाज उन्हें बताती रहती है कि उन्हें कौन सा टास्क करना है?
यहीं आती है पॉलिटिक्स की बात.दरअसल, जैसे आपने दिल्ली चुनाव में देखा होगा कि कैसी-कैसी बयानबाजी, गोली मारो, गाली , बिरयानी खिलाता है. टाइप के बयान सामने आए.अब उसका असर हुआ जिन नेताजी ने ये बयान दिया वो दिनभर सुर्खियों में छाए रहे. कईयों की आलोचना हुई,लेकिन बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा.
ऐसा ही बिग बॉस में होता है. जब टीवी पर दिखने या कहें फुटेज खाने की बात आती है, तो कुछ लोग जान-बूझकर विवादित बयान देते हैं. सिद्धार्थ शुक्ला हैं कंटेस्टेंट जो आसिम रियाज के पापा और फैमिली पर कमेंट और कभी कभी गालियां भी निकाल देते हैं. आसिम भी पीछे नहीं है, वो भी गालियां निकाल देते हैं.
लेकिन हिंसा ऐसा वर्ड है जो बिग बॉस खुद ही तय नहीं पाए कि हिंसा आखिर है क्या. क्या धक्का देना हिंसा नहीं है, शहनाज हैं वो कई बार खुद को ही थप्पड़ वप्पड़ मार लेती हैं, रश्मि हैं जो अपने रिलेशनशिप के बारे में कोई खुलासा कर देती हैं, तो कई बार खुद बिग बॉस के अपने भाई यानी सलमान खान खुद ही कुछ ऐसा खुलासा कर देते हैं जो सुर्खियां बन जाती हैं.
अब दूसरी क्वालिटी की बात यानी दलबदल.सियासी दलबदल तो आप जानते ही होंगे, महाराष्ट्र चुनाव, झारखंड चुनाव, कर्नाटक चुनाव, आपने देखा कि नेता अपनी पार्टी छोड़ दूसरी पार्टी में भाग जाते हैं. कई बार चुने हुए विधायक भी जनता को गोली देकर दूसरे दल में चले जाते हैं. इस बिग बॉस में भी ठीक वैसा ही है.
आसिम और सिद्धार्थ की जोड़ी को राम लक्ष्मण की जोड़ी बता दिया गया था, उस वक्त उनके ग्रुप में कई लोग थे. शो के बीच तक आते आते सिद्धार्थ और आसिम ने अपनी अलग अलग टीम यानी पार्टी बना ली. अब सिद्धार्थ के साथ दिखती हैं शहनाज, आरती, पारस छाबड़ा और माहिरा शर्मा. आसिम की टीम में दिखती हैं रश्मि देसाई. जब तक विशाल थे तो वो भी आसिम की टीम में ही नजर आते थे.
ये जो पारस छाबड़ा और माहिरा हैं ये कभी अपनी अलग ही टीम में थे. कुल मिलाकर मतलब ये है कि बिग बॉस के घर में भी पॉलिटिक्स की तरह नेता इधर-उधर जाते नजर आते हैं.
बात ये है कि यूं तो बिग बॉस एक 'खेल' है. लेकिन कहने वाले तो राजनीति को भी खेल कहते हैं. बिग बॉस के घर को करीब से देखेंगे, तो आपको इसमें देश की सियासत की परछाई, घरवालों के बीच घूमती नजर आ जाएगी.
अब बात बिग बॉस की. बिग बॉस जिनकी एक आवाज पर पूरा घर नाचता है. कुछ लोग उन्हें पसंद भी नहीं करते होंगे, लेकिन बिग बॉस तो बिग बॉस हैं. उनके उलजुलूल नियम, कानून के चक्कर में किसी सदस्य को दर्द पहुंचता है, तो कोई परेशान होता है, बिग बॉस को इससे फर्क नहीं पड़ता. उन्हें हर रोज नया टास्क देने की आदत है. पुराना टास्क खत्म हुआ तो नया टास्क लो.
ज्यादातर टास्क ऐसे होते हैं, जिनसे घर में दो गुटों के बीच संघर्ष हो जाता है, लड़ाई-झगड़े तक बात पहुंच जाती है. लेकिन बिग बॉस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें एंटरटेनमेंट चाहिए और टीआरपी यानी लोकप्रियता. सियासत में कहें तो वोट.
फाइनल जीत किसी भी सदस्य की हो. अंत में, होती बिग बॉस की ही है,फायदा बिग बॉस को ही होता है.
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