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नाना पाटेकर पर लगे सेक्सुअल हैरेसमेंट के आरोपों के मामले में मुंबई पुलिस ने अपनी जांच बंद कर दी है. पुलिस ने ये कहते हुए जांच बंद की है कि उन्हें तनुश्री के पाटेकर के खिलाफ लगाए गए सेक्सुअल हैरेसमेंट के आरोपों को साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय सबूत नहीं मिला. पुलिस इस मामले में कोर्ट में बी-समरी रिपोर्ट फाइल कर चुकी है.
नाना पाटेकर को मिली क्लीनचिट की खबरों के बीच क्विंट ने तनुश्री दत्ता से बात की. अमेरिका से बात करते हुए तनुश्री ने हमें बताया कि क्यों उन्हें ऐसा लगता है कि उनके केस की जांच में ढिलाई बरती गई. तनुश्री ने पाटेकर पर 'नाम फाउंडेशन' के नाम पर करोड़ों रुपये लेने का भी आरोप लगाया.
पुलिस ने केस बंद कर दिया है और बी-रिपोर्ट जमा की है. उन्होंने कहा कि आपकी शिकायत ‘दुर्भावनापूर्ण’ और ‘झूठी’ है. इसपर आपका क्या कहना है?
वो ए रिपोर्ट या सी रिपोर्ट भी फाइल कर सकते थे. एक्टिविटी का नेचर और उनकी कमेंट्री के साथ बी रिपोर्ट फाइल करना ही गलत है. मेरे लिए, उन्होंने जो किया वो दूर्भावनापूर्ण था. उन्होंने लिखा है कि ये दूर्भवानापूर्ण और झूठी और बदला लेने वाली है. पहली बात, बदला... किस बात का बदला. एक व्यक्ति, जो पिछले 10 सालों से बार-बार एक ही बात कह रहा है, उसे क्या मिल जाएगा आखिर? मैं अपने बयान पर अड़ी हूं और जो मैंने कहा उसमें कोई दो-बात नहीं है. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने एक और झूठी बात ये कही कि CINTAA (सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन) में सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत दर्ज नहीं कराई गई थी. ये साफ झूठ है. वो अपने ही झूठ में फंस रहे हैं, क्योंकि अब ये पब्लिक डोमेन में है. CINTAA को लिखा मेरा लेटर, जिसे मैंने 2008 में लिखा था... प्रेस के पास भी इसकी कॉपी है. तो वो लेटर उन सभी बातों को कंफर्म करता है, जो मैंने 2018 में दर्ज एफआईआर में कही हैं. लेकिन, जो बातें उन्होंने कही हैं, उसमें अंतर है.
दूसरी बात, CINTAA ने पिछले साल माफी मांगी थी कि उन्होंने मेरी शिकायत पर एक्शन नहीं लिया और जांच नहीं की. तो, ये रिपोर्ट पूरी तरह झूठी है. इसका मतलब है कि पुलिस ने कोई जांच नहीं की और वो फैक्ट्स को तोड़-मरोड़ रहे हैं और सफेद झूठ बोल रहे हैं.
पुलिस ने कहा कि उन्होंने 13 गवाहों से सवाल-जवाब किए और किसी ने भी सेक्सुअल हैरेसमेंट की बात को स्वीकार नहीं किया.
गवाहों के बयान... मैंने देखी थी गवाहों की लिस्ट. उसमें से 99 फीसदी सेट पर मौजूद भी नहीं थे. उन्होंने डेजी शाह का बयान लिया है, जो गणेश आचार्य की लंबे वक्त तकअसिस्टेंट रही हैं और उनकी करीबी है. उनका बयान वैध कैसे है? डेजी शाह उस दिन सेट पर मौजूद थीं और उन्होंने दावा किया कि उन्हें कुछ याद नहीं है. उन्होंने ये नहीं कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि उन्हें याद नहीं. वो गणेश आचार्य की लंबे समय से राजगार हैं, मैंने उन्हें उनकी (गणेश आचार्य की) गोदी में बैठे देखा है. और ये सब वीडियो पर है.
वो मेरी कहानी को क्यों सही ठहराएंगी, जब उनका (गणेश आचार्य का) नाम भी एफआईआर में है? उन्होंने रजत जैन और दो अन्य लोगों के बयान लिए. वो प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के सदस्य हैं. वो गवाह कैसे हो सकते हैं? क्योंकि 2008 में, जब मैंने CINTAA को शिकायत दी थी, तब उन्होंने मुझे मीटिंग के लिए बुलाया था. प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के और CINTAA के सदस्य वहां बैठे हुए थे, और मेरी मदद करने की बजाय, वो मुझ ही पर आरोप लगा रहे थे, मुझे ही पैसे जमा करने के लिए धमकी दे रहे थे, क्योंकि उस वक्त प्रोड्यूसर्स को डर था कि मैं उनपर केस न कर दूं. वो ऐसे लोगों को गवाह क्यों बना रहे हैं जो खुद इस मामले पर पर्दा डालने वाले लोग है?
मैंने लिस्ट देखी और सोचने लग गई कि इनमें से कोई भी उस दिन सेट पर मौजूद नहीं था. डेजी के अलावा, मैं और किसी को नहीं पहचान पाई जो तब सेट पर था. जैनिस (जैनिस सिकेरिया, जर्नलिस्ट) का स्टेटमेंट मेरी कहानी को सपोर्ट कर रहा था, तो वो काफी होना चाहिए. शाइनी शेट्टी (असिस्टेंट डायरेक्टर, हॉर्न ओके प्लीज) भी. शाइनी के साथ, उन्होंने केवल आधा बयान दर्ज किया और पूरा स्टेटमेंट दर्ज करने की जहमत नहीं उठाई. उनका बयान मेरी बात को कंफर्म कर रहा था और उन्होंने बस आधा बयान दर्ज किया और कहा कि हमें कहीं जाना है. फिर शाइनी को घर जाना पड़ा.
हमने पुलिस से पूरा बयान दर्ज करने की कई बार गुजारिश की, लेकिन उन्होंने नहीं किया. तो आधा स्टेटमेंट तो नहीं जा सकता, तो उन्होंने शाइनी के बयान को ही हटा दिया. जैनिस ने पूरा बयान दिया था. सेक्सुअल हैरेसमेंट के केस में, दो गवाह काफी होते हैं.
तीसरे गवाह, वसीम को पुलिस स्टेशन जाने से रोकने के लिए धमकी दी जा रही है. हम महीनों से वसीम से बात की कोशिश कर रहे हैं. वो कहता है कि आएगा, पर नहीं आता. मेरे वकील के साथ बात में उसने कबूल किया कि उसे नाना और उसकी टीम से फोन आते हैं. हमारे पास और भी लोग थे, जिन्हें हम गवाह बनाना चाहते थे, जो सेट पर मौजूद थे और जो साफ-साफ बता सकते थे, लेकिन उन्हें हमारे एफआईआर दर्ज करने से पहले ही फोन कॉल आ गई और उनसे अपना मुंह बंद रखने के लिए कहा गया.
लेकिन हमें 15-16 गवाहों की जरूरत नहीं है. हमें केवल दो गवाह चाहिए. एक उत्पीड़न मामले में, तुम्हें कितने गवाह चाहिए? तो फिर रेप के मामलों का क्या, जिसमें गवाह होते ही नहीं?
तो आप कह रही हैं कि पुलिस ने केस बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की?
नहीं, उन्होंने नहीं की. जब हैरेसमेंट केस को इतने सबूतों के बावजूद बंद किया जा रहा है, तो रेप के मामलों के लिए क्या उम्मीद बचती है कि उन्हें कानून के सामने इंसाफ मिलेगा? ये एक साफ ब्लैक एंड व्हाइट केस था. जैनिस, वसीम, शाइनी- वो मेरी बात को कंफर्म कर रहे थे.
आपने कहा कि नाना पाटेकर ने क्लीन चिट को खरीद लिया है, और आपके वकील ने कहा कि आप इस रिपोर्ट को चैलेंज करेंगी. क्या आप वाकई रिट पिटीशन डालेंगी?
अभी चीजें थोड़ी साफ नहीं हैं. उन्हें क्लीन चिट मिली है या पुलिस ने क्लीन चिट मांगते हुए कोर्ट में रिपोर्ट जमा की है. इसमें अभी कुछ साफ नहीं है, क्योंकि पुलिस जमा किया हुआ पूरा डॉक्यूमेंटेशन हमें नहीं दे रही है. इसलिए पूरी संभावना है कि ये सब फर्जी हो, कि उन्हें (नाना पाटेकर) को क्लीन चिट नहीं मिली है और उन्होंने क्लीन चिट पाने के लिए केवल अपनी रिपोर्ट जमा की हो. और ये कि क्लीन चिट वास्तव में अभी तक आई ही नहीं है. और समय से पहले ही इन लोगों ने इसे प्रेस में जारी कर दिया कि उसे (नाना पाटेकर को) क्लीन चिट मिल गई है.
पुलिस ने पब्लिक के दबाव में आकर एफआईआर दर्ज की. 2008 में भी यही हुआ था और अब फिर से वो आरोपी के साथ हैं. ऐसा भी हो सकता है कि पूरी न्यूज ही झूठी हो, क्योंकि पुलिस क्लीन चिट नहीं दे सकती. वो अपनी रिपोर्ट जमा करते हैं और कोर्ट क्लीन चिट देता है. इस मामले में, मैं यही कह रही हूं कि पुलिस भ्रष्ट है.
बात बस यही है कि किसे कितने पैसे खिलाए गए. हमारे देश में मजिस्ट्रेट, पुलिस अफसर और सभी लोगों को पैसे खिलाना कोई नई बात नहीं है. इन लोगों के पास करोड़ों रुपये है.
प्लीज जारी रखिए
ये टॉपिक से अलग है, लेकिन जरूरी है कि ये कैसे हर किसी को पैसे खिला सकते हैं. नाना पाटेकर का नाम फाउंडेशन एक भ्रष्ट संगठन है जो बड़ी संख्या में पैसे कलेक्ट करता है और ये सब पब्लिक डोमेन में है. ये सबकुछ ऑनलाइन है. ये डोनेशन के नाम पर देशभर से पैसे लेता है. ये सरकार की सीएसआरएस योजना के नाम पर पैसे लेता है. कॉरपोरेट कंपनियों के लिए ये कानून है कि प्रॉफिट का 3 प्रतिशत सोशल फंडिंग में डालना है. ये पैसा या तो उन्हें सरकार को देना होता है, या उनका अपना एनजीओ है, तो वो उसे अपने एनजीओ में डाल सकते हैं.
अब, वो पैसे (सरकार को देने वाले) करोड़ों में होते हैं. फिर सरकार उस फंड को एनजीओ को देती है. हमारे देश में लाइसेंस प्राप्त कोई भी एनजीओ सरकार से इस फंडिंग के लिए मांग कर सकता है.
फंडिंग का दूसरा सोर्स बैंक हैं. बैंक और फाइनेंनशियल इंस्टीट्यूशन, ये बड़ी संख्या में पैसे सामाजिक कामों के लिए देते हैं. तीसरा सोर्स, दुनियाभर में दूसरी चैरिटी. नाम फाउंडेशन खुद को एक एनजीओ के तौर पर प्रमोट करता है जो सूखाग्रस्त और गरीब किसानों की बेहतरी के लिए काम करता है.
आपको क्या लगता है कि अब आपको क्या करना चाहिए? क्या आप अभी भी इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं? अगर वास्तव में उन्हें क्लीन चिट दे दी है तो अब अपका अगला कदम क्या होगा?
अब मुझे नहीं पता आगे क्या करना है लेकिन हमारा अगला कदम रिपोर्ट को चैलेंज करना है. क्योंकि पूरे मामले का सबसे दुर्भावनापूर्ण और बुरा हिस्सा बी रिपोर्ट है जिसमें वो दावा कर रहे हैं कि मेरी शिकायत झूठी है. तो मैं यकीनन इस रिपोर्ट का जवाब दूंगी. मैं इन अपराधियों का समर्थन करने वाले पूरे सिस्टम को बेनकाब करना चाहती हूं. क्योंकि ये बात बिलकुल साफ है कि हमारे देश में सिस्टम को खरीदा जा सकता है. ये स्वर्ग नहीं है. ये सब जानते हैं. लोग पुलिस के पास नहीं जाना चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कुछ नहीं होगा. मैं फिर नाम फाउंडेशन लाना चाहता हूं क्योंकि मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि नाना जैसे लोग दिखावा करते हैं और बताते हैं कि वह बहुत गरीब जीवन बिता रहे हैं. ये सही नहीं है. उनके पास कई कारें, घर और विदेशी बैंक अकाउंट है. ये वो पैसा है जो किसानों के पास होना चाहिए.
विंता नंदा...20 साल पहले उनके साथ ये सब हुआ, वो ये सब कैसे साबित करेंगी? उनका केस भी झूठा और गलत साबित कर दिया गया. जबकि आलोक नाथ के खिलाफ एक नहीं बल्कि कई महिलाएं सामने आईं थी. लेकिन उन्हें क्लीन चिट मिल गई. तो क्या इससे सच बदल जाएगा? लेकिन दुख की बात ये है कि बॉलीवुड सब कुछ जानते हुए भी उन्हें सम्मान दे रहा है.
#MeToo के खिलाफ अवाज उठाने और इसे सबसे सामने लाने के बाद क्या अपने सभी केस को फॉलो किया?
मैंने विंता नंदा का केस फॉलो किया है. एक और निराशा. आलोक नाथ को एक फिल्म के लिए साइन कर लिया गया है. मैंने विकास बहल का केस भी फॉलो किया था. उसमें भी मुझे निराशा मिली. उन्हें क्लिन चिट मिलना बेगुनाही का पैमाना नहीं है. क्योंकि विकास बहल के केस में महिला ने कोई चार्ज ही नहीं लगाए थे. (अब सब समझ सकते हैं कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया था. वो इसे कैसे साबित करती?) वो जानती थी अगर वो एफआईआर और कोर्ट केस में फसती है तो वो और उसका परिवार और भी कई प्रतारणाओं का सामना करेंगे.
एफआईआर साधारण नहीं होती है. आपको कई सवाल- जवाब और काउंटर पूछताछ से गुजरना होता है जो कि आसान नहीं होता. खास तौर पर तब जब पीड़िता से सालों बाद पूछताछ की जाए. आपके पास क्या सबूत है. डीएनए का भी कोई सबूत नहीं बचता. वो इसे सहमति ही कहेंगे. इसलिए स्पष्ट रूप से उसने यह कहकर खुद को परेशानी से बचाया. वह अपने बयानों पर कायम है, लेकिन वह कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती. मेरे पास सभी सबूत थे, लेकिन उन्होंने मेरा केस बंद कर दिया. ये निराशाजनक है...विकास बहल को क्लीन चिट मिल जाती है और कुछ साबित नहीं हो पाता.
सब सच जानते हैं. मुझे कुछ साबित करने की जरुरत नहीं है. जब 2008 में केस फाइल करने गई थी. उन्होंने मेरी एफआईआर भी दर्ज नहीं की थी और पूरा केस पलट दिया था. इस बार मुझे ऐसा नहीं करना है. मुझे वो लोग मानहानि के केस की धमकी दे रहे हैं. तो मुझे इन लोगों से मजबूती से लड़ना होगा. मेरा कहना है कि अब बदलने का वक्त आ गया है. मैं चाहती हूं कि मेरा ममले को लोग ऐतिहासिक तौर पर जाने और महिलाएं न्याय की उम्मीद कर सकें. ऐसे ही हमारे समाज को न्याय मिल सकता है. हमारे समाज को एक जीत की जरूरत है.
नोट: हमने जोन 9 के डीसीपी परमजीत सिंह दहिया ( जो कि ओशिवारा पुलिस स्टेशन में अंतर्गत आता है) से तनुश्री दत्ता के मामले में जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने इस मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया. उन्होंने ''ये कहा मामला अभी कोर्ट में है''.
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