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नेटफ्लिक्स इंडिया की वेब सीरीज 'सेक्रेड गेम्स 2' 15 अगस्त रिलीज हो रही है. क्विंट हिंदी से खास बातचीत में नवाज ने बताया कि उनके कैरेक्टर 'गायतोंडे' को लेकर उनकी फीमेल फैन किस तरह से रियेक्ट कर रहीं हैं, वहीं विक्रम ने सीरीज के शो रनर के तौर पर अपने नए रोल को समझाया.
नवाज, पहले ये पूछना चाहूंगा कि आपका जो रोल है, गायतोंडे का, इतना पॉपुलर हो गया है, इतनी तारीफ मिली है. आपके दिमाग में सबसे यादगार रिएक्शन या फीडबैक कोई है? इंडस्ट्री से हो, दोस्तों से हो.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी: बहुत सारी चीजें ऐसी होग यीं हैं जो मैं बता नहीं सकता. लेकिन हां, जो रिएक्शन अभी आता है खास तौर पर फीमेल फैन का, वो थोड़ा सा अलग होता है. तो वो देखकर कभी-कभी महसूस होता है कि पहले ऐसे रिएक्शन नहीं आते थे.
विक्रम, आपने सीजन 1 में एक ट्रैक डायरेक्ट किया और अब आप सीरीज के शो रनर हैं. तो क्या आप लोगों को बता सकते हैं कि एक शो रनर का क्या काम होता है?
विक्रमादित्य मोटवानी: नेटफ्लिक्स की भाषा मेंशो रनर जो है, वो शो की क्रिएटिव आवाज होता है. जो लुक्स, कास्टिंग, कपड़े, आर्ट-डायरेक्शन जैसी सारी चीजों की जिम्मेदारी लेता है. इसके साथ-साथ वो राइटर के साथ मिलकर स्क्रिप्ट पर भी काम करता है और नजर रखता है कि कहानी क्या मोड़ ले रही है.
नवाज, जैसे आपने ‘गायतोंडे’ का रोल किया जो कि एक फिक्शनल कैरेक्टर है, उस ही तरह आपने ‘मंटो’ और ‘ठाकरे’ जैसे रियल लाइफ कैरेक्टरके रोल भी किये हैं. तो एक एक्टर के तौर पर, कौन सा ज्यादा मुश्किल रहा?रियल लाइफ कैरेक्टर में आपकी एक सीमा होती है. आपको पता होता है कि ये इनकी पर्सनालिटी है और आप इसके बाहर नहीं जा सकते. जबकि एक फिक्शनल कैरैक्टर है तो आप उसको कहीं पर भी ले जा सकते हो. तो एक एक्टर के तौर पर, कौन सा ज्यादा मुश्किल है?
नवाजुद्दीनसिद्दीकी: लेकिन एक चीज हर कैरेक्टर में सामान्य होती है और वो होता है उस एक्टर का कोर. फिर चाहे वो फिक्शनल कैरेक्टर हो क्यूंकि फिक्शनल कैरेक्टर को करने के पीछे भी अगर आप वजह सोचेंगे, तो उसमें भी वही चीजें लागू होंगी जो रियल लाइफ कैरेक्टर में होतीं हैं. तो ऐसा नहीं है कि ये फिक्शनल कैरेक्टर है तो इसको हम… हां, कहीं से कहीं तक ले जा सकते हैं, लेकिन जो एक्टर कर रहा है और जो परिस्थिति है या खुद से भी तो एक वजह होती है ना, खुद से भी तो पूछा जाता है कि मैं ये रोल क्यों कर रहा हूं? वो वास्तविक रूप से उचित है या नहीं है. तो मतलब वो फिक्शनल है, लेकिन फैंटेसी नहीं है. फिक्शनल है, लेकिन वास्तविकता के प्रभाव के साथ है. तो सारी वजहें लागू होतीं हैं, उसमें जो रियल लाइफ के कैरेक्टर में होती हैं.
एक आखिरी सवाल आप दोनों से. पिछले साल, ‘सेक्रेड गेम्स’ को लेकर कुछ विवाद हो गया था और उसके बाद बात हुई कि सरकार अब ऐसे कंटेंट पर ध्यान देगी पर हाल ही में, नेटफ्लिक्स ने कोड ऑफ सेल्फ-रेगुलेशन साइन किया है. तो ऑनलाइन कंटेंट में सेंसरशिप को लेकर आपकी क्या राय है?
विक्रमादित्य मोटवानी: सच बताऊं तो मुझे ये पता भी नहीं है कि सेल्फ-रेग्युलेशन होता क्या है. मुझे तो ऐसा लगता है कि सेल्फ-रेग्युलेशन ऑडियंस के लिए होना चाहिए, मेकर्स के लिए नहीं. हां, मेकर्स को ये समझना चाहिए कि उनको सर्टिफिकेशन की जरूरत है,सेंसरशिप की नहीं. ये तो हम लोग काफी समय से कहते आ रहे हैं. हमें अपनी ऑडियंस को थोड़ी सी तो इज्जत देनी चाहिए.हमें ये मान लेना चाहिए कि वो लोग भी जिम्मेदार और समझदार नागरिक हैं. बोर्ड को ये कहना चाहिए कि ठीक है कोई भी इसे देख सकता है,लेकिन अगर एडल्ट हैं, तो फिर सिर्फ एडल्ट ही इसे देखें. तो आप सेंसर नहीं कर सकते उसे एडल्ट के लिए.
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