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हिंदी सिनेमा के दिग्गज कवि और गीतकार इकबाल हुसैन, यानी हसरत जयपुरी एक ऐसे शख्स थे जिन्हें चमत्कार में यकीन था. उनकी जिंदगी भी किसी चमत्कार से कम नहीं रही. उनका हमेशा से यही मानना था कि शायरी और गानों का काम दिल को छूना है.
उनके जन्मदिन के मौके पर, एक नजर उनकी जिंदगी और शानदार काम पर....
"तू झरोखे से जो झांके तो मैं इतना पूछूं,
मेरे महबूब तुझे प्यार करूं या ना करूं"
हसरत, राधा नाम की एक लड़की से प्यार करते थे, जो लखनऊ में उनके घर के पास ही रहती थी. उनका मानना था कि प्यार, धर्म और जाति जैसी चीजें नहीं देखता. इन लाइनों को उन्होंने अपने पहले प्यार, राधा के लिए ही लिखा था. उनका प्यार तो परवान नहीं चढ़ा, लेकिन शायरी को लेकर उनकी मोहब्बत जरूर बढ़ गई.
काम की तलाश में हसरत 1940 में मुंबई आ गए. उन्होंने बस कंडक्टर के तौर पर काम शुरू किया. हसरत को ये काम पसंद था. वो लोगों के चेहरे पढ़कर उसके पीछे की कहानियां ढूंढते थे. उन्होंने बतौर कंडक्टर BEST के साथ 8 साल काम किया.
इस दौरान वो ट्रैफिक सिग्नल पर क्ले से बने खिलौने भी बेचते थे. जिंदगी में मुश्किलें ऐसी थीं कि वो बॉम्बे के ओपेरा हाउस के बाहर फुटपाथ पर सोने को मजबूर थे. बगल में सोने वाले एक मजदूर की मौत से वो इतने टूट गए कि उन्होंने इस दर्द को कविता के जरिए शब्दों में पिरो दिया. उनकी कविता 'मजदूर की लाश' उन्होंने इसी घटना के बाद लिखी थी.
एक मुशायरे में उनके ये कठोर शब्द पृथ्वीराज कपूर के दिल को छू गए. वो उनके शब्दों से इतने खुश हुए कि उन्होंने राज कपूर से बरसात (1949) में बतौर गीतकार जयपुरी को लेने के लिए कहा.
कंटेपररी गाने उन्हें ज्यादा पसंद नहीं आए. उनका कहना था कि इनमें पुराने हिंदी गानों जैसा जादू नहीं है, वो जादू जो आपके दिल को छू लेते हैं.
हसरत जयपुरी सभी लम्हों को इतनी खूबसूरती से बयां करते थे, जैसे कभी उन्हें शब्दों की कमी पड़ी ही न हो. अपने बेटे को जब उन्होंने पहली बार देखा, तो उन्होंने कहा था,
तेरी प्यारी प्यारी सूरत को, किसी की नजर ना लगे
चश्मे बद्दूर..
(ये स्टोरी क्विंट के अर्काइव से है, जो सबसे पहले 15 अप्रैल, 2016 को शेयर हुई थी. हसरत जयपुरी की पुण्यतिथि पर, हम इसे दोबारा पब्लिश कर रहे हैं.
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