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‘मनमर्जियां’ विवाद पर कनिका ढिल्लन- मेरा पंजाब इतना कमजोर नहीं 

मैं पंजाब की एक गौरवशाली बेटी बनना चाहती हूं. मैं अपने मूल को सेलिब्रेट करना चाहती हूं- उड़ना और खिलना चाहती हूं. 

कनिका ढिल्लन
सिनेमा
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(Photo: <b>The Quint</b>)
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(Photo: The Quint)

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मेरी फिल्म मनमर्जियां को लेकर हाल के दिनों में कुछ समूहों की ओर से जारी हंगामे पर मैं अपने एहसास को साझा करना चाहती हूं.

मैं निश्चित तौर पर बहुत अजीब महसूस करती हूं. मैं कुछ ऐसा महसूस कर रही हूं, जैसे कि साल 2018 में मैं एक ऐसे ऑफिसर से मिली, जो 443 ईसा पूर्व में रोम में रहता था. कुछ ऐसा जैसे कि ये ऑफिसर जनमत संग्रह कर रहा हो और नागरिकों के नैतिक मूल्यों और उनके व्यवहार को नियंत्रित कर रहा हो और अब वही एक गोल्डन हंटर के साथ लौट आया हो.

मैं विश्वास करना चाहती हूं कि ये वही ऑफिसर है, जिसने मनमर्जियां में मेरे सीन का विरोध किया, जिसमें कि एक महिला अपने प्रेमी को याद करती है! रोम का यह आदमी इस बात का विरोध करता है क्योंकि वह अभी भी 443 ईसा पूर्व में जीता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि मैं ज्यादा श्रेय अपने उस पंजाबी साथी को देना चाहती हूं, जो सिर्फ इस वजह से नाराज नहीं होता, क्योंकि ये एक महिला की भावना है.

लेकिन खतरनाक और निराश करने वाला सच ये है कि रोम का कोई भी ऑफिसर हमारे नैतिक मूल्यों की जांच नहीं कर रहा है. ये हम ही हैं, जो ऐसा कर रहे हैं. ये एक अंधेरे कमरे में छुपे हुए डरावने सांस्कृतिक फासीवाद की तरफ इशारे कर रहा है. या फिर शायद हमारी राजनीतिक धारा गलत हो गई है.

दुनिया का ऐसा कौन-सा हिस्सा है, जिसमें कि एक शादीशुदा औरत अपने प्रेमी के बारे में सोचती है, तो एक धार्मिक समूह की भावनाओं को चोट पहुंचती है? मेरा पंजाब कब इतना कमजोर हो गया कि एक महिला की सोच और सपने खासकर तब, जब वो भावनात्मक दौर से गुजरती है, तो इस स्थिति को एक समुदाय की नैतिकता के लिए खतरा मान लिया जाता है?

(Photo courtesy: Twitter)

पंजाब की एक बेटी के तौर पर मैं उस धरती पर पली और बढ़ी, जहां से पाश जैसे क्रांतिकारी आते हैं. पाश से ही मुझे इस बात की शिक्षा मिली कि कविता क्रांतिकारी हो सकती है- ‘सब तो खतरनाक हूंदा है साडे सपनेयांन दा मरजाना!’ ये धरती है साहिर लुधियानवी, वारिश शाह और अमृता प्रीतम की, जिन्होंने हमेशा पुरुषवादी सोच को चुनौती दी, लैंगिक समानता को नई परिभाषा दी- ये सभी के सभी बेहद प्रिय और सम्मानित हुए. और यही वो पंजाब है जिसे मैं जानती हूं और जहां की होना चाहती हूं. मैं एक ऐसे पंजाब और ऐसे समुदाय से आती हूं, जिसने मुझे सिखाया है कि कला एक चुनौती और सोच-विचार को झकझोरने वाली चीज है.

इसलिए मैंने ये कहानी मनमर्जियां लिखने की सोची और इसे पंजाब में ही पूरा करने की भी, जिससे कि इसके रंग और घी की महक, प्यार और इसकी आत्मा को सेलिब्रेट किया जा सके. ये मेरा पंजाब है और रूमी के रूप में मेरा किरदार एकदम खुला हुआ और बेमिसाल है. और मैं इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि मेरा पंजाब उसे नीचा नहीं देखने देगा और तब तक उस पर अपना कोई निर्णय नहीं देगा, जब तक कि कोई गंदी विशाल शख्सियत उसके और मेरे सिर को काटने के लिए न उठ खड़ा हो! मैंने देखा कि एक आदमी टीवी पर विरोध कर रहा है, चिल्ला रहा है कि मेरे चरित्र से समाज को नुकसान पहुंचता है.

एक खास दृश्य स्वीकारयोग्य नहीं है और उसे हटाना होगा, जिसमें कि एक महिला अपने प्रेमी के बारे में सोचती है.

परिभाषा में जाएं तो सेंसरशिप का मतलब है ऐसी चीजों पर रोक, जो कि नुकसानदेह या किसी को असुविधा पहुंचा सकने वाला हो. ऐसा कब हो गया कि एक जवान औरत के लिए प्यार में दुविधा में पड़ जाना किसी के लिए खतरनाक या उसे मुश्किल स्थिति में डालने वाला हो गया ?
मेरी टीम को धमकाया गया, कहा गया कि हम इस सीन को फिल्म से हटा दें नहीं तो इसे देशभर में किसी भी सिनेमाघर में चलने नहीं दिया जाएगा.

यहां मैं कहना चाहती हूं कि : सिर्फ क्योंकि मेरा चरित्र रूमी अपने प्यार को दांव पर लगा रही है, जब वह किसी दूसरे आदमी के साथ दिल दहला देने वाली दुविधा में है, उसका मन किसी धार्मिक समूह की भावनाओं को कैसे ठेस पहुंचा सकता है? सिर्फ इस वजह से क्योंकि वह एक धार्मिक स्थल पर है और शादी करने जा रही है? अपने जीवन की इस महत्वपूर्ण परिस्थिति में अपने प्रेमी के बारे में सोचने पर उसकी निंदा कैसे की जा सकती है?

(Photo Courtesy: Eros International)

पंजाब और सिख समुदाय से मेरा सवाल है कि : यहां कौन ट्रायल पर है? क्या फिल्म से एक सीन हटा देने से आप एक औरत के दिल के सपने या फिर उसके दिमाग से वह यादें मिटा सकते हैं? उसकी जिंदगी की उलझनें खत्म कर सकते हैं? या फिर आप सिर्फ इस बात से डरे हुए हैं कि जो औरत सपने देखती है वह आपके समाज की व्यवस्था को खराब कर देगी?

सिर्फ इसलिए क्योंकि वह आपको चुनौती देती है, वह कोई खतरा नहीं है, वह गलत है...वह इंसान है! मेरी फिल्म को ठेंगे पर रखकर आप एक पूरी पीढ़ी को ठेंगे पर रख रहे हैं। ये वह पीढ़ी है, जो गलतियां करना चाहती है लेकिन अपने फैसले खुद लेना चाहती है!

मैं पंजाब की एक गौरवशाली बेटी बनना चाहती हूं. मैं अपने मूल को सेलिब्रेट करना चाहती हूं- उड़ना और खिलना चाहती हूं. कहानियां लिखना चाहती हूं. मुझे और मेरी आवाज को ठेंगे पर मत रखिए. मुझे रोकिए मत, अपना काम करने दीजिए. मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं उसी मिट्टी से आती हूं, जिसने उन अमृता प्रीतम को जन्म दिया, जो कि अपनी नारीवादी रचनाओं और सेक्सुअलिटी पर खुली बहस की पैरोकार के रूप में जानी गईं.

अपनी मुक्ति और खुद को खोजने की उनकी तलाश एक महिला के रूप में उनकी पहचान से जुड़ी है. वो समाज में स्वीकारी गईं और एक हस्ती रहीं. जब उन्होंने प्यार और पीड़ा, महिलाओं और पुरुषों के बीच इच्छाओं के संघर्ष, स्त्रित्व और मासूमियत के साथ सपनों और पहचान की व्यक्तिगत परिभाषाओं के बारे में लिखना शुरू किया तब वह अनजान-सी थीं.

मैं पंजाब की उस बेटी से प्रभावित हूं. वह बेटी जिससे वही समुदाय प्यार करता है, जो उसके चरित्र रूमी का विरोध कर रही है. इसलिए डरिए मत, एक औरत अगर अपने निर्णय पर टिकी है या अपने चयन को लेकर भ्रमित है, तो इसमें कुछ भी खतरे जैसी बात नहीं है. मेरा उद्देश्य कभी भी किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था. मैं सिर्फ एक औरत के दिल की तलाश कर रही थी.

एक दिन स्कूटर पर बैठे होने के दौरान अमृता की उंगलियां इमरोज की पीठ पर साहिर लिखती है. उसकी प्रतिज्ञा लेने के दौरान मेरी रूमी ने अमृता प्रीतम के शब्दों में अपने प्रेमी को विदाई दे दी... ‘मैं तैनू फेर मिलैंगी’ आप मुझसे उस सीन को हटा देने के लिए कह सकते हो, उसे बुरी तरह से सेंसर कर सकते हो, लेकिन आप इमरोज की पीठ पर लिखे साहिर शब्द को कैसे सेंसर करोगे?

क्योंकि ये बस एक सीन भर नहीं है, जिसे कि क्रूरता के साथ आप हटा सकते हैं, ये एक अहसास है, एक इमोशन है, एक चाहत है एक पाना है. ये एक औरत का दिल है और आप इस दुनिया में औरत के दिल को कैसे सेंसर कर सकते हो?

(कनिका ढिल्लन मनमर्जियां में स्क्रीन राइटर और क्रिएटिव प्रोड्यूसर हैं)

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