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बॉलीवुड में अनुपम खेर का नाम उन गिने-चुने एक्टर्स में शुमार किया जाता है, जिन्होंने लगभग तीन दशक से अपनी दमदार एक्टिंग के बूते दर्शकों के दिल में एक खास जगह बना रखी है. दिलीप कुमार की फिल्म ‘कर्मा’ में एक क्रूर खलनायक का किरदार हो या फिर साल 1984 में आई फिल्म ‘सारांश’ में 28 साल की उम्र में 60 साल के बूढ़े बाप का किरदार, अनुपम खेर ने अपनी एक्टिंग से शुरुआती दिनों में ही साफ कर दिया था कि वह किसी भी तरह के किरदार में फिट होने का हुनर रखते हैं.
अनुपम खेर आज अपना 62वां जन्मदिन मना रहे हैं. खेर का जन्म 07 मार्च 1955 को शिमला में एक कश्मीरी परिवार में हुआ था.
अनुपम खेर का जन्म एक कश्मीरी मूल के परिवार में हुआ था. उनके पिता पुष्कर नाथ खेर वन विभाग में क्लर्क की नौकरी करते थे, जबकि मां दुलारी सामान्य गृहणी थीं. अनुपम 11 सदस्यों के संयुक्त परिवार में रहते थे. उस दौर में उनके पिता को हर महीने 90 रुपये पगार मिला करती थी. चूंकि पिता की कमाई कम थी और परिवार में सदस्य ज्यादा, इसलिए एक ऐसा भी दौर आया जब घर-परिवार चलाने के लिए अनुपम की मां दुलारी को अपने गहने भी बेचने पड़े. बता दें कि उस दौर में अनुपम को हर महीने दस पैसे का जेब खर्च मिला करता था.
खेर ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि उस दौर में उन्हें मिलने वाला जेब खर्च भले ही कम हो लेकिन सपने देखने के लिए उनके पास वक्त बहुत था. इन सपनों को हवा मिली मनोज कुमार की फिल्म ‘उपकार’ और राजकुमार की फिल्म ‘दिल एक मंदिर’ से.
कॉलेज के दिनों से ही अनुपम पर एक्टिंग का शौक हावी हो गया था. उन्हीं दिनों अनुपम ने अखबार में एक विज्ञापन देखा, जिसमें एक्टिंग कोर्स का विज्ञापन निकला था, और इस कोर्स की फीस थी 100 रुपये. अब अनुपम को एक्टिंग के गुर सीखने के लिए 100 रुपयों की जरूरत थी. लेकिन वह अपने पिता से इतने पैसे नहीं मांग सकते थे, क्योंकि उस दौर में 100 रुपये की वैल्यू बहुत हुआ करती थी.
ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुपम खेर ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लिया. साल 1978 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह थिएटर से जुड़ गये.
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकलने के बाद अनुपम ने सोचा कि वो थियेटर करते रहेंगे, लेकिन जिंदगी इतनी आसान नहीं थी. उन दिनों अनुपम दिल्ली के बंगाली मार्केट के धोबी कॉलोनी इलाके में रहा करते थे. कई बार काम नहीं मिलता था, तो उन्हें दोस्तों से उधार मांगकर गुजारा करना पड़ता था. मुफलिसी का दौर दस्तक दे ही रहा था कि अनुपम को लखनऊ के भारतेंदु हरिशचंद्र ड्रामा सेंटर से एक टीचर की नौकरी का ऑफर आया और अनुपम ने वो नौकरी ज्वॉइन कर ली.
एक साल के भीतर ही अनुपम के अंदर छिपा एक्टर जोश दिखाने लगा. नौकरी में उनका मन नहीं लग रहा था, लेकिन दिक्कत ये थी कि बिना पैसे के काम कैसे होगा. ऐसे में अनुपम के एक दोस्त ने सलाह दी कि क्यों ना वो मुंबई में बतौर एक्टिंग टीचर की नौकरी करें और साथ ही फिल्मों में अपनी किस्मत भी आजमाते रहें. इसके बाद 3 जून 1981 को अनुपम ने मुंबई का रुख किया.
अनुपम मुंबई तो पहुंच गए, लेकिन वहां रहने के लिए छत नहीं थी. तब अनुपम ने एक चॉल में रहने का फैसला किया. अनुपम के चॉल का पता था अनुपम खेर 2/15 खेरवाड़ी, खेरनगर, खेर रोड ये महज इत्तेफाक था, लेकिन उनको अहसास हो गया था कि उनके सपने इसी मायानगरी में पूरे होंगे.
सपनों को पूरा करने के लिए पैसे की भी जरूरत होती है, लेकिन अनुपम के पास ना तो काम था और ना पैसा इस हालात में उन्हें अपने छोटे भाई की याद आई जो शिमला की एक फैक्ट्री में काम करते थे. छोटे भाई राजू से उन्हें आर्थिक मदद मिली. संघर्ष के उस दौर में उनकी मुलाकात अचानक महेश भट्ट से हुई. महेश को पता था कि अनुपम एक बहुत अच्छे स्टेज एक्टर हैं. इसलिए उनकी तारीफ करते हुए उन्होंने कहा, ‘हां, अनुपम मैंने तुम्हारे बारे में सुना है, तुम वाकई अच्छे हो.’ इस पर अनुपम ने जवाब दिया, ‘आपने गलत सुना है मैं अच्छा नहीं सबसे बेहतर हूं.’ इस जवाब के बाद महेश भट्ट ने अनुपम को फिल्म ‘सारांश’ के लिए साइन कर लिया.
अस्सी के दशक में एक्टर बनने का सपना लिये हुये अनुपम ने मुंबई में कदम रखा. बतौर एक्टर उन्हें साल 1982 में आई फिल्म ‘आगमन’ में काम करने का मौका मिला, लेकिन फिल्म के असफल हो जाने के बाद वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो सके.
अनुपम ने हर तरह के किरदार निभाकर अपनी छाप छोड़ी. साल 1986 में खेर को सुभाष घई की फिल्म ‘कर्मा’ में बतौर खलनायक काम करने का मौका मिला. इस फिल्म में उनके सामने ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार थे लेकिन अनुपम खेर ने अपनी दमदार एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत लिया. फिल्म हिट रही और वह बतौर खलनायक अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे.
एक ही तरह के किरदार निभाकर एक ही छवि में बंध रहे अनुपम खेर ने अपनी भूमिकाओं में बदलाव किया. इसके बाद साल 1989 में आई सुभाष घई की सुपरहिट फिल्म ‘राम लखन’ में उन्होंने फिल्म एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित के पिता की भूमिका निभायी. फिल्म में उनकी दमदार एक्टिंग के लिये सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी एक्टर के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
साल 1989 में अनुपम खेर के सिने करियर की एक और अहम फिल्म ‘डैडी’ आई. इस फिल्म में अपने भावुक किरदार को अनुपम खेर ने सधे हुये अंदाज में निभाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. अपनी दमदार एक्टिंग के लिये वह फिल्म फेयर समीक्षक पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार के स्पेशल ज्यूरी पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये.
साल 2003 में आई फिल्म ‘ओम जय जगदीश’ के जरिये अनुपम खेर ने फिल्म डायरेक्शन के क्षेत्र में भी कदम रखा. हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप हुयी. साल 2005 में अनुपम खेर ने फिल्म ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ बनाई. इस फिल्म में उनकी दमदार एक्टिंग के लिये उन्हें कराची इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अनुपम खेर ने कई हॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी एक्टिंग का जौहर दिखाया है.
अनुपम खेर को अपने सिने करियर में आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.
साल 1985: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ एक्टर- सारांश
साल 1996: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी एक्टर- 'दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे'
साल 1993: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी एक्टर- खेल
साल 1994: फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी एक्टर- डर
साल 1999: बेस्ट कॉमेडियन- हसीना मान जाएगी
साल 1999: बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर- सलाखें
साल 2000: दशक के सबसे अच्छे एक्टर
साल 2005: बेस्ट एक्टर अवॉर्ड( कराची फिल्म फेस्टिवल)- मैंने गांधी को नहीं मारा
साल 2007: बेस्ट कॉमेडियन खोसला का घोसला
फिल्म क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये अनुपम खेर को पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है.
बता दें कि अनुपम खेर ने अपने तीन दशक लंबे सिने करियर में करीब 500 फिल्मों में काम किया है. अनुपम खेर आज भी पूरे जोश के साथ फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं.
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