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(दृश्यम (Drishyam) फिल्म को लेकर थोड़े स्पॉइलर हो सकते हैं)
पहला पार्ट देख कर लगता है कि इतनी बेहतरीन क्राइम फिल्म बनाने के बाद इसका दूसरा पार्ट कैसे आ सकता है. अगर आपने पहला पार्ट देखा है तो फिल्म एक सही नोट पर खत्म होती है, वह आपको सारे सवालों के जवाब दे देती है और कहीं ऐसा नहीं लगता कि इसका दूसरा पार्ट आएगा. लेकिन निशिकांत कामत की दृश्यम 2 रिलीज हुई, मैंने सोचा कि इसका अगला पार्ट क्यों ही बनाया गया.
लेकिन ऐसा नहीं है, दूसरे पार्ट में भी कहानी है और वो भी आगे की.
दृश्यम 2 की कहानी पहले पार्ट की घटनाओं के कुछ साल बाद से शुरू होती है. ऐसा लगता है कि विजय सलगांवकर (अजय देवगन) और उनका परिवार सैम की मौत और अन्य घटनाओं को पीछे छोड़ कर नया जीवन जीने लगा था. विजय के पास अब अपना खुद का एक थिएटर है और वह अपने जीवन की कहानी पर आधारित एक फिल्म का निर्माण कर रहा है.
लेकिन सब कुछ उतना आसान और शांत नहीं है जितना लगता है, क्योंकि सैम की मां (पूर्व पुलिस महानिरीक्षक) मीरा देशमुख अभी भी अपने बेटे की मौत को लेकर जवाब तलाश रही है. दूसरी ओर को एक बार फिर विजय अपने परिवार की सुरक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार है.
लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म तेजी से भागती है और यह एक मनोरंजक थ्रिलर कहानी का रूप ले लेती है. इस फिल्म में आपको कुछ छोटी-मोटी खामियां जरूर मिल सकती हैं, लेकिन पूरी फिल्म देखने के बाद उन खामियों को नजरअंदाज करना आसान है.
फिल्म में इस बार विजय सीधे अधिकारी तरुण अहलावत (अक्षय खन्ना द्वारा सराहनीय रूप से अभिनीत) का सामना कर रहे हैं, जो विजय के साथ मेल खाते दिखते हैं. दृश्यम 2 प्रभावशाली है और काफी विश्वसनीय भी लगती है और शायद यही मायने रखता है.
हालांकि, एक पहलू जो अजीब है वह है कि कहानी का विलेन ना तो सही है ना ही गलत. अब ये विचार पुराना हो गया है और शायद यह फिल्म की एकमात्र खामियों में से एक है. वहीं पहले पार्ट की तरह ही इसमें भी पुलिस की बर्बरता को दिखाया है. फिर भले ही उसे दिखाने का तरीका अलग हो.
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