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श्याम बेनेगल ने कहा- हर सीन में सेंसर बोर्ड की दखल जायज नहीं

मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार विवादों में 

खालिद मोहम्मद
एंटरटेनमेंट
Published:
मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल
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मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल
फोटो: The Quint

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“अगर किसी को किसी की फिल्म पर कैंची चलानी है, तो वो बिना उस फिल्म के डायरेक्टर और निर्माता की सहमति से नहीं होना चाहिए. कोई भी अपने हिसाब से यह नहीं कह सकता कि किस सीन को काटना है या किसको रखना है.” ये कहना है श्याम बेनेगल का, जिन्होंने पिछले साल फिल्मों की सेंसरशिप के खिलाफ एक विवादास्पद रिपोर्ट तैयार की थी.

जहां तक मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार की बात है, जो कि 1975-77 की इमरजेंसी पर बनी है, सेंसर बोर्ड ने उसमें 147 कट लगाने को कहा है. द क्विंट के साथ एक्‍सक्लूसिव इंटरव्यू में श्याम ने कहा कि इन्‍फॉर्मेशन ऑफ ब्रॉडकॉस्टिंग मिनिस्ट्री, कमेटी के दिए गए सुझावों को अनदेखा कर रही है.

नील नितिन मुकेश और सुप्रिया विनोद संजय गांधी और इंदिरा गांधी के किरदार मेंफोटो: Twitter
मैंने मधुर भंडारकर की फिल्म को नहीं देखा, तो मैं उस पर कोई कमेंट नहीं करूंगा. जहां तक सेंसर बोर्ड का सवाल है, तो उनका काम फिल्मों में दखल देना नहीं है. अगर किसी भी फिल्म में असली नाम लिए गए हैं, तो ये परिवार वालों का काम है कि वो फिल्म बनाने वालों को कोर्ट तक लेकर जाएं, न कि सेंसर बोर्ड फिल्म से सीन हटाए. 
श्याम बेनेगल

किन-किन सीन को हटाने को कहा:

  • उन सीन को हटाया जाए, जिनमें अखबारों की वो कटिंग है, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई और एलके आडवानी का नाम है.
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, इंटेलिजेंस ब्यूरो, प्रधानमंत्री, अकाली और कम्यूनिस्ट जैसे शब्दों के प्रयोग पर भी बोर्ड को ऐतराज था.
  • वो लाइन, जिसमें महात्मा गांधी के नाम का प्रयोग किया गया है उसे भी हटाने को कहा गया है.
  • फिल्म में एक सीन है, जिसमें एक आदमी बोल रहा है कि मैं 70 साल का हूं. मुझे नसबंदी कराने को क्यों कहा गया है? इस सीन को भी डिलीट करने का आदेश दिया गया है.
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हाल ही में ‘एन इनसिगनिफिकेंट मैन’ अरविंद केजरीवाल पर खुशबू रानका, विनय शुक्ला की बनाई डाक्यूमेंट्री और महिलाओं पर बनी ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ को सेंसर बोर्ड की कैंची से होकर गुजरना पड़ा था.

बेनेगल ने ये बात भी बताई कि पॉलिटिकली मोटिवेटिड फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ जो कि कांग्रेस के दौर में बनाई गई थी, उसे दोबारा शूट करना पड़ा.

दिक्कत ये है कि हमारे देश में फिल्मों को बनाने की कोई भी पॉलिसी नहीं है. सब कुछ बदलता है लेकिन बदलाव नहीं आता. 
श्याम बेनेगल

परेशानी सेंसर बोर्ड की मनमानी से है, जो पहलाज निहलानी की अध्यक्षता में रोज किसी न किसी कंट्रोवर्सी को खड़ा कर देता है.

मधुर भंडारकर की फिल्म से एक स्टिलफोटो: YOUTUBE/BHANDARKAR FILMS

82 साल के श्याम बेनेगल कई बार सुधार कमेटियों का हिस्सा बने हैं.

फिल्म सेंसरशिप समिति ने दो रिपोर्ट पेश की, एक अप्रैल में और फिर पिछले साल अक्टूबर में. I&B के मंत्री वेंकैया नायडू ने फिल्म निर्माताओं के एक समूह से मुलाकात की और कहा कि ज्यादा से ज्यादा रिपोर्ट के ज्यादातर सुझाव स्वीकार कर लिए गए हैं. लेकिन आज तक कुछ भी लागू नहीं किया गया है. यूए प्रमाण पत्र की दो अलग श्रेणियों का सुझाव दिया गया था, 15 वर्ष से अधिक उम्र के युवा दर्शकों के लिए अलग. सेंसर बोर्ड को ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए. उन्हें एक फिल्म को रेट कर छोड़ देना चाहिए. 
फिल्मकार श्याम बेनेगल

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