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Kashmir Files को लैपिड अश्लील बता रहे, इजरायली सिनेमा का चाल-चरित्र क्या है?

आबादी सिर्फ 90 लाख के आसपास और साल भर में सिर्फ 30 फिल्में. लेकिन फिल्मों को मिलती है इंटरनेशनल स्तर पर पहचान.

सर्वजीत सिंह चौहान
एंटरटेनमेंट
Published:
<div class="paragraphs"><p>नदव लैपिड के द कश्मीर फाइल्स को लेकर बयान के बाद समझिए इजरायली सिनेमा को</p></div>
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नदव लैपिड के द कश्मीर फाइल्स को लेकर बयान के बाद समझिए इजरायली सिनेमा को

(फोटो: Altered by The Quint)

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हम मानकर चलते हैं कि 'नदव लैपिड-द कश्मीर फाइल्स कनेक्शन' आपको पता ही होगा. ये वही नदव लैपिड (Nadav Lapid) हैं जिन्होंने 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) को वल्गर मतलब अश्लील फिल्म बताया था. लैपिड इजराइल से हैं. यहां गोवा में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टविल ऑफ इंडिया में इंटरनेशनल जूरी के हेड के बतौर उन्होंने ये बात कही. ऐसे में हमने जानने की कोशिश की आखिर इजरायल की फिल्म इंडस्ट्री कैसी है? वहां कैसी फिल्में बनती हैं? इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को वहां की फिल्में कैसे परदे पर उतारती हैं?

हमारी आबादी सिर्फ 90 लाख के आसपास है और हम साल भर में सिर्फ 30 फिल्में ही बनाते हैं. लेकिन हमारी फिल्मों को इंटरनेशनल स्तर पर पहचान मिलती है. आपके यहां लगभग 1000 फिल्में बनती हैं, कितनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती है? जबकि आपकी आबादी 130 करोड़ के आसपास है.
डैन वॉलमैन, इजरायली फिल्म मेकर

ऊपर जो कुछ भी डैन वॉलमैन के हवाले से लिखा गया है वो बेहद सभ्य तरीके से दिया गया जवाब था. वो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को इजरायली सिनेमा से कंपेयर 'नेगेटिव वे' में तो बिल्कुल भी नहीं कर रहे थे.

गिडियन कूट्स जो एक फिल्म क्रिटिक होने के साथ-साथ रिसर्चर और राइटर भी हैं. उन्होंने इजरायली सिनेमा के बारे में कुछ-कुछ ABCD समझाई. है तो ABCD ही लेकिन गजब की है. जो आपको भी इंट्रेस्टिंग लगेगी.

इजरायली सिनेमा की शुरुआत तब ही हो गई थी जब इजरायल बना यानी साल 1948 में. सरकारी फंडिंग से 50वें दशक में इजरायल का पहला फिल्म स्टूडियो बनाया गया. यहीं से शुरू हुआ राष्ट्रवादी भावना और यहूदी प्रोपेगेंडा के प्रमोशन का दौर.
गिडियन कूट्स, फिल्म क्रिटिक

लेकिन, दौर बदलता रहा: दौर और चीजें बदलीं तो नजरिया भी बदला. जो सिनेमा 70 के दशक तक राष्ट्रवादी विषयों के महिमामंडन का जरिया बना रहा, वो अब बदलने लगा था. इसे बदलने के एक नहीं, कई वजहें थीं, जैसे कि:

  • इजरायली सरकार ने फिल्म इंडस्ट्री को दी जाने वाली फंडिंग बंद कर दी.

  • 1973 का किपूर युद्ध और उसके बाद स्टैब्लिशमेंट की बातें की जाने लगीं और आर्मी और यहूदीवाद को लेकर आलोचनात्मक रवैया अपनाया जाने लगा.

  • राष्ट्रवाद और वर्गवाद से उठकर अमेरिकी व्यक्तिवाद (यानी व्यक्ति विशेष की बात करना) पर बात होने लगी.

थोड़ा-बहुत तो अंदाजा आप लगा ही पा रहे होंगे कि इजरायली सिनेमा कैसे बदला. अभी इसके बदलाव के और भी कई स्टेप हैं, कारण हैं और कारक भी. क्योंकि बदलाव स्वत: हो, ऐसा जरूरी नहीं है. ज्यादातर बार हम दूसरों से सीखते हैं.

जैसे इजरायली सिनेमा ने फ्रेंच 'न्यू वेव' से सीखा. फ्रेंच 'न्यू वेव' क्या है?

ये वो आंदोलन है जो फिल्मों में नयापन लाने से जुड़ा हुआ है. 50 के उत्तरार्ध में आते-आते फ्रांस में इस आंदोलन के जरिए फिल्म निर्माताओं को अपने काम पर उनका पूरा क्रिएटिव कंट्रोल देने का बिगुल बजा. उन्हें फिल्मों में 'आर्ट' का समावेश करने के मौके मिले. ताकि वो, वो बात उसी तरीके से कह सकें जैसी कि वो है, न कि उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करें.

इसका असर भी इजरायली सिनेमा पर पड़ा. जहां एक ओर 70 के दशक में वर्ग विशेष को टारगेट करके कॉमेडी फिल्में बन रही थीं, वहीं इस 'न्यू वेव' के आ जाने से फिल्म निर्माता कंटेंट ओरिएंटेड फिल्में बनाने लगे.

कुछ इंट्रेस्टिंग बातें आगे भी हैं, लेकिन साथ-साथ कुछ उदाहरण भी देखते चलते हैं, ताकि कहानी के साथ-साथ तस्वीरें भी आपको दिखती रहें.

कुछ डायरेक्टर्स हैं मेरे जेहन में और कुछ फिल्में भी. कुछ गिडियन ने बताए तो कुछ डैन वॉलमैन ने. इन सबका काम भी जानते चलते हैं और असर भी.

एरी फोलमैन- एनिमेशन फिल्मों का नाम आते ही, हम क्या सोचते हैं. कोई फेयरी टेल या फैंटेसी. लेकिन सोचिए जरा कि अगर असल जिंदगी की त्रासदी को एनीमेशन के जरिए दिखाया जाए? नो डाउट ये अलग एक्सपीरियंस होगा दर्शकों के लिए. साथ ही, कल्पनाओं को विजुअली दिखाने के लिए ज्यादा खुली छूट मिलेगी. एरी फोलमैन ने एक ऐसी ही फिल्म बनाई.

एरी फोलमैन की ऑटोबायोग्राफी. फिल्म का नाम 'वॉल्ट्ज विद बशीर'. 2008 में रिलीज हुई इस फिल्म के लिए एरी फोलमैन को गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड के साथ-साथ और भी कई अवॉर्ड मिले थे.

Waltz with Bashir का पोस्टर

(फोटो:Waltz with Bashir/ Altered by The Quint)

क्यों खास है 'वॉल्ट्ज विद बशीर'? : दरअसल एरी जब 19 साल के थे तो वो इजरायली सेना का हिस्सा थे. उन्होंने 1982 में बेरुत में रह रहे साढ़े 3 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी शरणार्थियों का वो कत्लेआम बहुत नजदीक से देखा था, जो इजरायली सेना ने किया था. इसी मुद्दे पर फिल्म है. उनका कहना था कि घटना को लेकर उनकी यादें धूमिल हो गईं थी, इसलिए उन्होंने फिल्म बनाने के लिए जो रिसर्च की उसमें उन सैनिकों, पत्रकार और बाकी लोगों का एक्सपीरियंस भी शामिल किया जिन्होंने ये त्रासदी देखी थी.

इसके अलावा, फोलमैन ने कई और भी फिल्में जैसे 'द कांग्रेस' और 'व्हेयर इज एनी फ्रैंक' जैसी और भी कई फिल्मों का निर्माण किया है.

उग्रराष्ट्रवाद के खिलाफ एरी फोलमैन: उन्होंने शॉमरॉन फिल्म फंड नाम के एक फंड का विरोध किया था. उनका कहना था कि इससे इजरायली फिल्ममेकर्स से उनके व्यवसाय को सफेद करने के लिए पुरस्कार और फाइनेंशियल सपोर्ट ही मिलेगा. लेकिन इस फंड के लिए वेस्टबैंक में रहने वाले 25 लाख फिलिस्तीनी अप्लाई नहीं कर पाएंगे. कुल मिलाकर उन्होंने इस फंड के खिलाफ लिखे गए लेटर में उन 250 लोगों के साथ साइन किया था जिन्होंने फिलिस्तीनी लोगों के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई थी.

ईरन रिकलिस- ईरन सोशियो पॉलिटिकल बैकग्राउंड को फिल्मों से जोड़ने के लिए जाने जाते हैं. ईरन की फिल्मों में खासकर मिडिल ईस्ट से जुड़ी कहानियां होती हैं. इन कहानियों का हिस्सा पॉलिटिकल वजहों से बनी स्थितियां होती हैं. उनकी फिल्मों में किरदार की जिंदगी राजनीतिक जगत से प्रभावित होती है. वो उन आम लोगों की कहानियों को दिखाना पसंद करते हैं जिनके सामने राजनीतिक संघर्षों की वजह से चुनौतियां खड़ी होती हैं.

ईरन रिकलिस क्यों रखते हैं अपनी फिल्मों में अलहदा नजरिया?: ईरन ने अलग-अलग देशों में अपनी जिंदगी के कई साल बिताए. इसलिए उन्होंने पॉलिटिकल वजहों से एक आम आदमी की जिंदगी में क्या-क्या चुनौतियां आती हैं, ये सब बहुत नजदीक से देखा है.

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उन्होंने खुद कहा था कि ब्राजील में एक स्कूल में जब वो पढ़ रहे थे तो किसी दूसरे देश में बाहरी होना क्या होता है ये सब खुद से महसूस किया. इसलिए उनकी फिल्मों में वो इस राजनीतिक संघर्ष को अपने खुद के नजरिए से दिखाते हैं. उनकी फिल्मों जैसे कि "द सीरियन ब्राइड", कप फाइनल (इजरायल-लेबनान वॉर पर बनी फिल्म) और "लेमन ट्री" जैसी फिल्मों में ऐसी कई चीजें देखी जा सकती हैं.

उदाहरण के लिए सीरियन ब्राइड में एक ऐसी लड़की की कहानी बताई गई है जो अगर सीरियाई लड़के से शादी करती है, वो कभी अपने देश में वापस नहीं आ पाएगी. कहानी आम जिंदगी में देश की राजनीतिक दखल को दिखाती है.

"लेमन ट्री" के जरिए खास मैसेज देने में कामयाब रहे ईरन: "लेमन ट्री" को ही लेते हैं. जैसा कि सबको पता है कि अरब और इजरायल के बीच रिश्ते सही नहीं हैं. फिल्म में उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की है कि रूढ़िवादिता और पॉलिटिकल संघर्ष कभी भी नफरत का कारण नहीं बनने चाहिए.

फिल्म में अलग-अलग धार्मिक समूहों के लोगों के मन में चल रही दुविधाओं और रियल लाइफ के बारे में दिखाया गया है. दोनों ही दुनिया अलग-अलग होने के बावजूद एक ही जैसी हैं. जहां करियर और सामाजिक स्थिति अहम भूमिका में रहती हैं. और दोनों ही जगहों में महिलाएं खुद के लिए खुशी की तलाश कर रही हैं.

ओरेन पेली- आपको वो फिल्म तो याद ही होगी, रागिनी एमएमएस. नॉर्मल कैमरे पर शूट की गई ये फिल्म असल में एक अमेरिकन फिल्म 'पैरानॉर्मल एक्टिविटी' से प्रभावित थी. ये फिल्म भले ही अमेरिकन थी, लेकिन इसे बनाया एक इजरायली डायरेक्टर ओरेन पेली ने था.

फिल्म मेकिंग में नया आयाम जोड़ने वाले डायरेक्टर: ओरेन पेली एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. उन्होंने इसे अपने घर में ही कैमरा सेट करके बना लिया था. फिल्म में बजट नाम की कोई चीज ही नहीं थी, क्योंकि फिल्म माइक्रो बजट पर बनी थी. कायदे से देखा जाए तो ओरेन ने फिल्म मेकिंग में एक नए तरीके को ईजाद किया था. इस फिल्म ने 2006 में कई बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड बनाए थे. ओरेन पेली द रिवर और चर्नोबिल जैसी टीवी सीरीज और फिल्मों से भी जुड़े हुए हैं.

कुछ और भी डायरेक्टर्स और फिल्में हैं: शैमुअल माओज जिन्हें 'लेबनान' जैसी फिल्म के लिए इंटरनैशनली पहचान मिली. दूसरे हैं नदव लैपिड. बर्लिनेल और कान में अवॉर्ड जीतने वाले डायरेक्टर हैं. इन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी और उग्रवाद के खतरों के बारे में कई बार बोला है. देश की सेना और राजनीति की आलोचना भी करते हैं.

तीसरे हैं अवी नेशेर जिन्होंने हाल में ही एपिक फिल्म ''द इमेज ऑफ विक्ट्री'' बनाई है. इस फिल्म के जरिए उन्होंने इजरायल की आजादी की लड़ाई को एक इजिप्शियन फिल्ममेकर की नजरों से दिखाया है.

डैन वॉलमैन कहते हैं:- ''मेरे लिए यह कहना मुश्किल है कि कौन सी बात भाईचारे की बात करती है - ये उतना आसान नहीं है. फिल्में इंसानों के बारे में बताती हैं और हर कहानी में ऐसे अलग-अलग एलीमेंट्स होते हैं जो अलग-अलग चीजों को सामने लाते हैं.''

वॉलमैन ने कुछ और भी फिल्मों के नाम गिनाए जो उनके हिसाब से इजरायल फिलिस्तीन वॉर पर बनी और बढ़िया फिल्में हैं.

  • डेनियल वॉचमैन की फिल्म हामसिन (Hamsin)

  • उरी बाराबाश की फिल्म 'बियॉन्ड द वॉल्स

  • अमोस गिटाई की योम किपूर (Yom Kippur)

फिल्मों के अर्थशास्त्र ने भी बदला है इजरायली सिनेमा को: इजरायल में वेस्टर्न अश्केनाजी बनाम ओरिएंटल सेफर्डिस, यहूदी बनाम अरब, और धर्म से जुड़े मुद्दों पर जो फिल्में बनाई गईं. वो हिब्रू में थीं. यानी इन्हें समझने वाला दर्शक वर्ग छोटा था. तो बाजार भी छोटा था.

हाल-फिलहाल में इजरायली-अरब भाषा में बनाई जाने वाली फिल्में, जिन्हें इजरायली-अरब डायरेक्टर्स ने बनाई है, उन्हें इजरायल के अलावा दूसरे देशों में भी काफी पसंद किया गया. फिल्मों के इंग्लिश में होने से भी इनका बाजार बढ़ता गया. एक वजह ये भी है कि इजरायल सिनेमा को बदलना पड़ा.

कंटेंट ओरिएंटेड फिल्मों और मसाला फिल्मों, दोनों में किसे तरजीह देता है इजरायली सिनेमा?: इसके जवाब में डैन वॉलमैन कहते हैं हर जगह हर तरह की फिल्में बनती हैं. हमारे यहां भी बनती हैं. लेकिन, तरजीह हम कंटेंट ओरिएंटेड फिल्मों को देते हैं.

क्या आज भी सत्ता के पक्ष में बनती हैं फिल्में?:

  • गिडियन की मानें तो सत्ता पक्ष के जोर-दबाव में बनने वाली फिल्मों का अंत 70 के दशक में ही हो गया था.

  • वहीं वॉलमैन का कहना है कि राइट और लेफ्ट दोनों विचारधाराओं वाले डायरेक्टर्स हैं. दोनों तरह की फिल्में भी बनती हैं. एक जो स्टैब्लिशमेंट की बात करती हैं, दूसरी जो सत्ता का महिमामंडन करती हैं.

लेकिन, डैन एक बात और जोड़ते हैं कि उनके देश में राइटविंग सरकारें हुई हैं. आज जो सरकार है वो एक्सट्रीम राइटविंंग विचारधारा वाली सरकार है. लेकिन देश में ऐसे डायरेक्टर्स का प्रतिशत ज्यादा है जो सरकारों के खिलाफ बोलते हैं. जो लेफ्टिस्ट हैं और लोगों की बात करते हैं. और इस बात में फिलिस्तीनियों के हक की भी बात होती है.

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