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अल्लू अर्जुन (Allu Arjun) की फिल्म पुष्पा, प्रशांत नील की केजीएफ (KGF) से लेकर कमल हासन की विक्रम और रजनीकांत की जेलर तक, गैंगस्टर फिल्में दक्षिण भारत में धूम मचा रही हैं. इसी पर आधारित हाल ही में एक और नई फिल्म रिलीज हुई - अभिलाष जोशी द्वारा निर्देशित दुलकर सलमान की किंग ऑफ कोठा और लोकेश कनगराज द्वारा निर्देशित विजय की फिल्म लियो.
इन फिल्मों का फैन बेस लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि इन फिल्मों की कहानी, एक्शन सीन और फिल्म के दिलचस्प पात्रों को लोग पंसद कर रहे हैं. इसी पर क्विंट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की है.
लगातार रीलीज हो रही गैंगस्टर फिल्मों पर बात करते हुए ट्रेड एनालिस्ट रमेश बाला ने क्विंट हिंदी से कहा कि, "गैंगस्टर फिल्मों की हालिया सफलताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अंडरवर्ल्ड की कहानियों में लोगों की रुचि बढ़ रही है. गैंगस्टर फिल्में दर्शकों को अंडरवर्ल्ड के बारे में बता रही हैं, ये फिल्में अंडरवर्ल्ड की झलक बताती हैं. अंडरवर्ल्ड में पावर, वफादारी और विश्वासघात कैसे होता है ये सब बताया जाता है. इन फिल्मों में जो पात्र हैं उन्हें आप अच्छा या बुरा पात्र नहीं बता सकते हैं. वो कहीं न कहीं बीच में हैं. साथ ही, फिल्मों में दिखाए जाने वाले दमदार एक्शन सीन और ऐसे पात्र जो असाधारण हैं, वे लोगों को हकीकत से दूर ऐसी जगह ले जाते हैं जहां लोग जाना चाहते हैं."
फिल्म इंडस्ट्री को करीब से जानने वाले श्रीधर पिल्लई ने कहा,
उन्होंने आगे कहा, "समय के साथ, गैंगस्टर फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ने लगी है. धनुष की पुधुपेट्टई से लेकर हाल की फिल्में जैसे कि पुष्कर और गायत्री की 'विक्रम वेधा', लोकेश कनगराज की 'कैदी', एटली की 'बिगिल' और गौतम वासुदेव मेनन की 'वेंधु थानिन्धधु कादु' - इन फिल्मों में साउथ की फिल्मों का तड़का तो रहता ही है. साथ ही आज की सामाजिक समस्याओं को भी इसमें शामिल किया जाता है ताकी लोग कहानी से जुड़े रहे."
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि दक्षिण की गैंगस्टर फिल्में अक्सर उस इलाके की सांस्कृतिक ताने-बाने को भी शामिल करती हैं, जो अक्सर दर्शकों को पसंद आता है. इसके अतिरिक्त, ये फिल्में दर्शकों को उन पात्रों से परिचित कराती हैं जो अपने आप में लोक कथाएं बन जाती हैं.
इन फिल्मों में पात्र काफी जटिल दिखाए जाते हैं, ये फिल्में नायक के प्रति सहानुभूति और तिरस्कार दोनों के लिए जगह छोड़ती हैं. पिल्लई ने कहा, "गैंगस्टर फिल्में नायकों और खलनायकों के बीच की रेखाओं को धुंधला कर देती हैं, ताकी निर्णय दर्शकों के हाथ में हो कि ये पात्र अच्छा है या बुरा."
गैंगस्टर फिल्मों में कहानी कहने के कई तरीके हो सकते हैं - इसका लाभ निर्माताओं को मिलता है, इन फिल्मों में केवल गैंगस्टर से जुड़े सीन ही नहीं होते बल्कि कॉमेडी, रोमांस, इमोशन का तड़का भी देखने को मिलता है. कार्तिक सुब्बाराज की जिगरथंडा, नयनतारा की कोलामावु कोकिला और शिवकार्तिकेयन की डॉक्टर जैसी डार्क कॉमेडी इसके आदर्श उदाहरण हैं.
इसके अतिरिक्त, इन फिल्मों की सीक्वल की संभावना भी बहुत अधिक होती है. अगर दर्शकों को प्रीक्वल पसंद नहीं आया तो निर्माता पुष्पा-2 या केजीएफ-2 क्यों लेकर आएंगे? वहीं हाल ही में इन गैंगस्टर फिल्मों की पहुंच पूरे भारत में बढ़ी है क्योंकि इसमें दक्षिण के इतर भारत के बाकी हिस्सों से भी एक्टर्स को लिया जा रहा है. इससे पहुंच और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन दोनों में बढ़ोतरी हुई है.
फिलहाल, इस शैली (गैंगस्टर फिल्म) के प्रति आकर्षण कम होने का कोई संकेत नहीं दिखता है. पिल्लई ने कहा, "जब तक कहानी शानदार रहेगी लोगों की दिलचस्पी बनी रहेगी."
फिल्म निर्माताओं को भी रुचि बरकरार रखने के लिए कुछ नया करते रहना होगा.
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