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लिपस्टिक अंडर माय बुर्का: सिर्फ सपने नहीं हकीकत दिखाती है फिल्म

बदलते समय के साथ हमारी सोच क्यों नहीं बदल सकती?

मुस्कान शर्मा
एंटरटेनमेंट
Updated:
सपने जरुर देखो वो भी लपिस्टिक वाले
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सपने जरुर देखो वो भी लपिस्टिक वाले
फोटो: The Quint

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अगर आप भी मेरी तरह एक लड़की हैं तो शायद आपको भी बचपन से लड़की होने का मेन्यूस्क्रिप्ट थमा दिया गया होगा. जी हां, वही जिसमें आपको अपनी जिंदगी दूसरों की शर्तों पर कैसे जीनी है, सिखाया जाता है.

मेरी जिंदगी के कई सालों तक मैं ये सुनती रही कि लड़की हो ये मत करो. यहां मत जाओ...भीड़ में ज्यादा हंसो मत... हां, वो बात अलग है कि मुझे कभी भी कपड़े पहनने के लिए नहीं टोका गया. लेकिन आज की इस सदी में भी जहां डायनासोर की हड्डियां सिर्फ म्यूजियम में पाई जाती हैं कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें लड़कियों की आजादी से डर लगता है. हर लड़की की जिंदगी के इन्हीं पहलुओं को लेकर बनी है ये फिल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्का.

नाम से ही फिल्म काफी क्रांतिकारी लगती है

लेकिन लिपस्टिक इस फिल्म में कोई क्रांति नहीं बल्कि हर लड़की के दिल में पल रहा एक एक्सप्रेशन है. वो क्या कहते हैं बोल्ड लिप्स फॉर बोल्ड चिक्स. मैं खुद को काफी बोल्ड समझती थी. लेकिन आज एक चीज का एहसास हुआ कि अकेले फिल्म देखने जाने के लिए काफी हिम्मत चाहिए. जो लोग मुझे जानते हैं वो इस बात को शायद कभी पचा भी न पाएं कि मैंने आज तक एक भी फिल्म अकेले नहीं देखी.

अब कुछ फिल्म की बात हो जाए. जितना भी मैंने फिल्म देखने से पहले फिल्म के बारे में पढ़ा वो सब सही था. फिल्म और उसके किसी भी किरदार में कोई भी कमी नहीं है. एक्टर्स ने अच्छी एक्टिंग की है, डायरेक्टर ने अच्छी डायरेक्शन. लेकिन एक बात है जो के फिल्म को देखने के समय मेरे मन में आई. जब ये बात मैंने सोची तो मुझे खुदपर काफी अफसोस हुआ.

दरअसल, फिल्म में कुछ भी नया नहीं है जिसके लिए पहलाज निहलानी इसे रिलीज नहीं होने देना चाहते थे. ये सब तो किसी न किसी लड़की के जीवन में होता ही है. वो क्या कहते हैं रुटीन है. किसी लड़के से वो छुप-छुपकर प्यार करती है, अपने मां-बाप से छुपकर पार्टी करती है, इतना ही नहीं अपने पति को बिना बताए छुपकर नौकरी भी करती है.

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क्या आपने ऊपर लिखी लाइनों पर गौर किया? उनमें कई बार छुपकर शब्द का इस्तेमाल किया गया है. इस देश की कई लड़कियां या महिलाएं अपने परिवार से दूर सभी को बिना बताए छुपकर एक अलग जिंदगी जीती हैं.

मेरा इस सोसायटी से बस एक ही सवाल है कि सबकुछ छुपाकर करने की नौबत ही क्यों आई? बदलते समय के साथ हमारी सोच क्यों नहीं बदल सकती?

अगर लड़की अपनी पसंद के लड़के से शादी करना चाहती है तो इसमें दिक्कत क्या है? क्या दूसरे धर्म के होने से वो लड़का दूसरे ग्रह का हो जाता है?

लड़की, चाहे वो आपकी बहू हो या बेटी, घर से बाहर जाकर काम करना चाहती है, अपने परिवार में योगदान देना चाहती है तो उसमें गलत क्या है?

आखिर क्यों इस समाज के लोगों को एक औरत की आजादी से डर लगता है. अगर हमारे देश में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल है तो उसकी आजादी की क्यों नहीं?

ऐसे क्यों है कि पुरुष अपनी यौन इच्छाओं के बारे में बात कर सकते हैं और उन्हें पूरा करने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन महिलाओं को ऐसी सोच रखने की भी आजादी नहीं है.

दरअसल, बात सिर्फ इतनी है जनाब कि अपनी सोच के दायरे को बढ़ाएं. वरना अपनी ही सोच की चार दीवारी में घुटकर रह जाएंगे. महिलाएं हारकर भी लिपस्टिक वाले सपने देखना नहीं छोड़ेंगी. वो क्या है न कि भले ही वो सपने साकार न हों लेकिन जिंदगी जीने की हिम्मत जरूर दे जाते हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 21 Jul 2017,09:01 PM IST

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