Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Entertainment Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मिर्जापुर-2: अपराध ही नहीं, बाप-बेटे की मोहब्बत-अदावत की भी कहानी

मिर्जापुर-2: अपराध ही नहीं, बाप-बेटे की मोहब्बत-अदावत की भी कहानी

सीरीज देखकर कई बार ऐसा लगेगा कि ये मुन्ना-गुड्डू वही हैं जो हमारे मुहल्लों, कस्बों, जिलों में भी होते हैं.

अभय कुमार सिंह
एंटरटेनमेंट
Updated:
मिर्जापुर-2: अपराध ही नहीं बाप-बेटे की मुहब्बत-अदावत की भी कहानी
i
मिर्जापुर-2: अपराध ही नहीं बाप-बेटे की मुहब्बत-अदावत की भी कहानी
null

advertisement

'मिर्जापुर-2' नाम जेहन में आते ही तस्वीर सी बन जाती है, एक ऐसी वेब सीरीज की जिसमें गोली है, गाली है और बदला है- हिंसा की भरमार है. चाहे तो आप इन्हीं सब चीजों की बुराई-भलाई कर फिल्म का रिव्यू पढ़ या कर दीजिए. लेकिन इन सबसे थोड़ा आगे बढ़ते हैं और पाते हैं कि इस सीरीज में कई 'पिता और बेटे' हैं, पिता की बेटों से आकांक्षाएं हैं तो बेटों की पिता से खीझ और नाराजगी है.

‘’तुम हमेशा गद्दी की तलाश में रहे...और हम बेटे की...’’

- मुन्ना त्रिपाठी से अखंडानंद त्रिपाठी (कालीन भइया)

इस सीरीज में बाप-बेटे के रिश्तों के जो रंग दिखाए गए हैं, आखिरी एपिसोड की ये लाइन उनके बारे में सब कुछ कह देती है. बात करते हैं दो पिताओं की. पहले बाहुबली अखंडानंद त्रिपाठी/कालीन भईया (पंकज त्रिपाठी) हैं तो दूसरे वकील रमाकांत पंडित (राजेश तैलंग). दोनों ही पिता, अपने बेटों (मुन्ना-गुड्डू) के भविष्य और उनके बर्ताव को लेकर परेशान दिखते हैं और इसी परेशानी का नतीजा नाराजगी के तौर पर भी दिखता है.

सीरीज देखकर कई बार ऐसा लगेगा कि ये मुन्ना-गुड्डू वही हैं जो हमारे गांव, मुहल्लों, कस्बों, जिलों में भी होते हैं. नाम बनाने के चक्कर में बदनामी का टैग ले लेते हैं. (हालांकि यहां कुछ मामलों में पिता बेटे को अपराध में आराम से चलने की ट्रेनिंग दे रहे हैं) पिता की हर बात इन्हें नसीहत लगती है, जब ठोकर लगती है तो समझ आता है कि ‘बाप तो बाप’ होता है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

पहले बात कालीन भईया-मुन्ना त्रिपाठी की

डायलॉग डिलीवरी में महारत रखने वाले पंकज त्रिपाठी इस पूरी सीरीज में कई बार मुन्ना त्रिपाठी की हरकतों पर कुछ ऐसा कह जाते हैं, जो दर्शकों के लिए एंटरटेनिंग तो होता ही है साथ ही उसमें भर-भरकर एक पिता का दर्द भी छलकता है, जिसका बिगड़ैल बेटा कभी अपने आप को 'अमर’ समझने लगता है तो कभी बेवजह हिंसा पर उतारु हो जाता है. जैसे पहले ही एपिसोड में पिटकर-गोली खाकर मरणासन्न अवस्था से बाहर आए मुन्ना त्रिपाठी कहते हैं- अब हमको मरने का डर नहीं लगता.

इस पर अखंडानंद कहते हैं- 'मकबूल (नौकर) विंध्यवासिनी देवी के यहां चढ़ावा भिजवा देना, मरने का डर खत्म हो गया है इनका &%*$$ (गाली)'

एक बाहुबली जो अपने बेटे की हरकतों के सामने आम और निरीह है, यहां अखंडानंद के चेहरे पर मिक्स रियक्शन भी साफ दिखता है- 'बेटे को बेपरवाह होते देखने का दर्द और ऐसी बचपने वाली बात करते हुए देख गुस्सा'. पंकज त्रिपाठी ऐसे सीन्स में चेहरे से जबरदस्त एक्सप्रेशन देते दिखते हैं.

बेटे को अपना धंधा सौंपने से पहले उसे मैच्योर बनाने की शिद्दत, संस्कार भी डालने की चाहत और बिगड़ैल बेटे की अजीबोगरीब हरकतों पर लगाम कसने की जद्दोजहद वाले किरदार को पंकज त्रिपाठी ने बेहतरीन तरीके से निभाया है. वहीं दिव्येंदु शर्मा ने भी अभिनय में कोई कसर नहीं छोड़ी है, ऐसे किरदार में जो पूरी सीरीज में पिता को अपनी अहमियत साबित करने के लिए जूझता दिखता है और साथ ही मिर्जापुर की गद्दी हासिल करना चाहता है.

हमारे आसपास कई ऐसे किस्से होते हैं जिनमें बाप-बेटे में नाराजगी, कम बातचीत दिखती है. पिता की नसीहत को डांट समझा जाता है और ये दिखाने की कोशिश होती है कि आपका बेटा अब जवान हो गया है. ये सारे रंग आपको मुन्ना त्रिपाठी और अखंडानंद त्रिपाठी के कैरेक्टर में नजर आएंगे.

रमाकांत पंडित और गुड्डू पंडित - वकील पिता और अपराधी बेटा

दूसरे बाप-बेटे की जोड़ी है रमाकांत पंडित और गुड्डू पंडित की (राजेश तैलंग- अली फजल). एक मध्यम वर्गीय परिवार के मुखिया रमाकांत वकील हैं. असली जिंदगी की तरह रमाकांत पंडित की चाहत भी थी कि बेटा पढ़ लिखकर 'नौकरी' करने लगे, समाज में इज्जत मिले कोई कुछ गलत न कह दे गलती से. लेकिन गुड्डू पंडित इस सीरीज में भगोड़ा अपराधी है, जिस पर कई तरह के मुकदमे हैं. ऐसे में कानून पर भर-भरकर भरोसा करने वाले रमाकांत पंडित चाहते हैं कि बेटा सरेंडर कर दे. उन्हें डर है कि ऐसा नहीं करने पर गुड्डू का एनकाउंटर न हो जाए. अब नियम-कानून के दायरे में रहकर काम करने वाले रमाकांत पूरी सीरीज में एक बेटे की हत्या के इंसाफ के लिए लड़ते और दूसरे बेटे को जेल भिजवाकर उसे जिंदा रखने के जुनून में ही दिखते हैं.

वहीं अली फजल, गुड्डू पंडित नाम के ऐसे बेटे बने हैं जो पिता से मोहब्बत तो करते हैं लेकिन जताते-बताते नहीं है. वो मान बैठे हैं कि अब वो अपने पिता की चाहतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं और उनका मकसद अब सिर्फ अपराध और भाई-बीवी की जान का बदला है.

दूसरे एपिसोड के एक सीन में गुड्डू पंडित अपने पिता को नाराज देखते हुए कहता है-

आप बबलू के जाने से उतना दुखी नहीं हैं जितना हमारे जिंदा रहने से. आप खुश होते कि बबलू की जगह हम मरे होते. वही सही होता, बिलकुल सही होता.

इन दोनों पिता-पुत्र की जोड़ियों के अलावा फिल्म में एक और बेटे हैं-शरद शुक्ला (अंजुम शर्मा). वो अपनी पिता की मौत और अपमान का बदला लेने के लिए घूम रहे हैं, जिन्हें गुड्डू-बबलू पंडित ने मार डाला था. शरद की चाहत भी अपने पिता के सपने को पूरा करने यानी मिर्जापुर की गद्दी पर राज करने की है.

एक पिता और बेटे की जोड़ी है- सत्यानंद त्रिपाठी (कुलभूषण खरबंद) और अखंडानंद त्रिपाठी (पंकज त्रिपाठी) की. सत्यानंद त्रिपाठी अक्सर अपने बेटे अखंडानंद के फैसलों में बदलाव तो नहीं करते हैं लेकिन राय जरूर रखते हैं और अखंडानंद उन्हें बखूबी मानते भी हैं. एक कहानी बिहार के एक अपराधी दद्दा और उनके दो हमशक्ल बेटों (विजय वर्मा) की भी है. जो पिता के साथ अपना कारोबार बढ़ाने में जुटे हैं, छोटा बेटा अलग और नया करने की चाहते में ऐसे उधेड़बुन में फंस जाता है कि पिता की नजर में वो गलत बन जाता है.

जिन एक्टर्स की बात हुई है सबने अपने-अपने किरदार को बखूबी निभाया है और कास्टिंग भी बेहतरीन है. कुल मिलाकर ये सीरीज रिश्तों के भी कई रंग दिखाता है. कुछ रिश्तों के खूबसूरत चेहरे हैं तो कुछ बेहद कुरूप.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 26 Oct 2020,06:53 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT