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‘तांडव’ रिव्यू:  औसत दर्जे की है राजनीतिक षड्यंत्र की ये कहानी

ऐसी बहुत सारी ऐसी घटनाओं को दिखाने की कोशिश की है जो हमारे देश की हाल की राजनीति में देखने को मिले हैं

स्तुति घोष
मूवी रिव्यू
Published:
(Photo: Amazon Prime Video/Altered by The Quint)
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(Photo: Amazon Prime Video/Altered by The Quint)

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तांडव सीरीज की शुरुआत में ही ये चेतावनी दी जानी चाहिए- ट्रेलर दिखाई गई कहानी सीरीज में और ज्यादा साफ होती है." . मैंने तेजी से तांडव सीरीज के शुरुआती 5 एपिसोड देखे, लेकिन जैसा कि लग रहा था कि सीरीज के आखिरी में कुछ अलग होगा, वैसा कुछ नहीं था.

ट्रेलर से हम समझ गए हैं कि इस सीरीज में पॉलिटिकल ड्रामा. और जहां राजनीति पर बात हो रही है, वहां चाणक्य नीति का जिक्र जरूर होता ही है. राजा, मंत्री, चोर, सिपारी, षड्यंत्र, शह-मात ये सब चलता है. लेखक गौरव सोलंकी ने ऐसी बहुत सारी ऐसी घटनाओं को दिखाने की कोशिश की है जो हमारे देश की हाल की राजनीति में देखने को मिले हैं.

सीरीज में वीएनयू नाम की एक यूनिवर्सिटी दिखाई है, इसके जरिए छात्र राजनीति पर बहुत फोकस दिया गया है. आजादी के नारे लगाए गए हैं, किसान प्रदर्शन हो रहे हैं, इलेक्शन नतीजों को गहमागहमी, पॉलिटिकल आईटीसेल का कामकाज, लेफ्ट से लेकर राइट की राजनीति को दिखाया गया है. एक दो एपिसोड को देखते हुए लगता है कि ये सारी घटनाओं को दिखाने की कोशिश की गई है.

पहले ही एपिसोड में समर प्रताप सिंह (सैफ अली खान) के किरदार को दिखाया गया है जो कि बहुत ही सख्त और रौबदार छवि लिए हुए हैं. लेकिन धीरे-धीरे उनसे फोकस हट जाता है और शो से भी हमारा ध्यान हटता चला जाता है. सीधी बात है कि पहले 5 एपिसोड देखने के बाद यही लगता है कि 'और अच्छा किया जा सकता था.'

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राजनीति में जो षड्यंत्र रचाते हुए दिखाया गया है वो सब खुल्लमखुल्ला होता है. हमें पहले से ही पता है. जो भी आगे होने वाला होता वो किरदार पहले ही बातचीत में बता देते हैं इसलिए बाद में ऐसा कोई अचंभा नहीं होता है.

डिंपल कपाड़िया स्क्रीन पर खूबसूरत दिखती हैं, जब भी उनकी तरफ कैमरा आता है वो स्क्रीन पर छा जाती हैं. मोहम्मद जिशान अयूब एक कॉलेज स्टूडेंट के किरदार में हैं, रियल लाइफ की ही तरह उनका किरदार स्क्रीन पर भी एक्टिविज्म करता दिखता है.

कुछ किरदार बिल्कुल नहीं जंचे

इस शो में कुछ ऐसे एक्टर भी थे जो सीरीज में अपने किरदार में बिलकुल नहीं जंच रहे थे. ऐसा लग रहा था कि उन्हें जबरदस्ती ये रोल दे दिया गया हो. अब तक OTT के शो में एक चीज खास दिखती रही है कि हर किरदार का चयन बिलकुल सटीक दिखता है लेकिन इस शो में ऐसा नहीं है. इस सीरीज में कई ऐसे किरदार हैं, जो लगता ही नहीं कि इस शो का हिस्सा हैं, कभी कभी तो ऐसा लगता है कि वो किटी पार्टी में हैं.तांडव के डायरेक्टर अली अब्बास जफर हैं, जो सुल्तान, टाइगर जिंदा है जैसी ‘लार्जर देन लाइफ’ बनाने के लिए मशहूर हैं, लेकिन यहां पर कमी दिखती है. बहुत से किरदार ऑथेंटिक नहीं दिख रहे थे.गौहर खान एक खास लुक में नजर आई हैं. 5 एपिसोड देखने के बाद ऐसा लगता है कि ये सीरीज उतनी भी भी अच्छी नहीं है जितना अनुमान लगाया गया था.

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