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बॉलीवुड के ट्रैक रिकॉर्ड पर नजर डालें तो, हॉरर फिल्में डराती कम, हंसाती ज्यादा हैं. डायरेक्टर पवन कृपलानी, जो पहले 'रागिनी एमएमएस' और 'फोबिया' जैसी थ्रिलर फिल्में बना चुके हैं, 'भूत पुलिस' के साथ हॉरर-कॉमेडी जॉनर में उतरे हैं और इन्होंने वाकई अच्छा काम किया है. 'भूत पुलिस' खुद को बहुत गंभीरता से नहीं लेती और इसी कारण फिल्म आपको हंसाती है.
फिल्म की दूसरी बढ़िया बात हैं- सैफ अली खान. विभूति नाम के किरदार के लिए वो एकदम पर्फेक्ट च्वाइस हैं. उनके बोलने का अंदाज ऑडियंस को पसंद आता है. एक जगह पर जब वो वाकई में भूत को देखते हैं, तो जोर से चिल्लाते हैं 'गोश्त'; इस सीन को मजाकिया केवल सैफ अली खान ही बना सकते हैं.
"जागरामन भास्करम्, आरोग्यम सेतुयम" हमारे दो घोस्टबस्टर्स का मंत्र है. यहां तक कि वो एक भटकती आत्मा को भगाने के लिए पैकेज के हिस्से के रूप में जीएसटी भी लेते हैं, और उसके माता-पिता से कहते हैं कि उसकी पढ़ाई बंद न करें, क्योंकि "बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ."
जहां विभूति इस अंधविश्वास को मानने वालों का मजाक उड़ाता है, उसका भाई चिरौंजी इसके बिल्कुल उलट हैं. अर्जुन की ईमानदारी सैफ की स्ट्रीट-स्मार्टनेस के लिए एकदम सही है. ये खानदानी घोस्टबस्टर्स हैं, और एक समय पर उनकी प्रतिभा की कमी और नेपोटिज्म के लिए उनका मजाक भी बनाया जाता है. एक "स्पिरिट कार्निवल 2021" चल रहा है, जहां माया (यामी गौतम) उलट बाबा के दो बेटों से मिलती है और उन्हें धर्मशाला के पास अपने सिलावर टी फैक्टरी में ले जाती है. उन्हें एक भयानक किचकंडी से छुटकारा पाने का काम सौंपा जाता है. फिर विभूति ग्रामीणों को "गो किचकंडी, जाओ" का नारा देता है!
ऐसा नहीं है कि 'भूत पुलिस' में खामियां नहीं हैं. फिल्म बढ़िया चलती है, लेकिन पूरी फिल्म में भूत-प्रेत का मजाक उड़ाने के बाद आखिर में भटक जाती है. यामी गौतम और जैकलीन फर्नांडीज एडिशन हैं. जावेद जाफरी का रोल छोटा है, लेकिन मजेदार है. फिल्म में सैफ अली खान शानदार लगते हैं.
'भूत पुलिस' को 5 में से 3 क्विंट!
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