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आतंकवादी और पुलिस अफसर की लड़ाई की एक और बोरिंग कहानी है ‘ब्लैंक’

‘ब्लैंक’ शब्द का इस्तेमाल करण कपाड़िया के एक्सप्रेशंस बयां करने के लिए भी किया जा सकता है

स्तुति घोष
मूवी रिव्यू
Published:
पुलिस अफसर के रोल में हैं ‘ब्लैंक’
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पुलिस अफसर के रोल में हैं ‘ब्लैंक’
(फोटो: द क्विंट)

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बेहजाद खंबाटा के डायरेक्शन में बनी ब्लैंक, ‘आतंकवादी बनाम ईमानदार पुलिस अफसर’ की एक और कहानी है. फिल्म में सनी देओल, नए एक्टर करण कपाड़िया, करणवीर शर्मा और इशिता दत्ता लीड रोल में हैं. और हां, फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर.

बैकग्राउंड स्कोर को अलग से मेंशन करने की इसलिए जरूरत है, क्योंकि पूरी फिल्म में ये हावी है. इस तेज आवाज से भी जिसकी आवाज भारी पड़ी है, वो हैं अपने सनी देओल.

सनी देओल फिल्म में एटीएस चीफ के रोल में हैं, जो आतंकवादी को पकड़कर शहर में बम धमाके होने से रोकना चाहता है. लेकिन प्रैक्टिकल होकर देखें तो ऐसा लगता है कि वो अपना लार्जर देन लाइफ 'ढाई किलो का हाथ' वाला रोल निभा रहे हैं.

एक प्वाइंट पर, जब उनके जूनियर उन्हें बताते हैं कि एक संदिग्ध जानकारी देने से मना कर रहा है, तो वो बेवजह चिल्लाते हैं- 'उसका बाप भी बताएगा'. एक सीन में आतंकवादी तीन कारों में बंदूकें लेकर आते हैं, और इधर सनी पाजी हैं, सिर्फ एक बंदूक के साथ. यहां उन्हें खरोंच तक नहीं आती.

हानिफ (करण कपाड़िया) के दिल से बम जुड़ा हुआ है. उसे इसके बारे में कुछ नहीं याद! फिल्म को अपना नाम ‘ब्लैंक’ ऐसे ही मिला, लेकिन इसका इस्तेमाल करण कपाड़िया के एक्सप्रेशंस बयां करने के लिए भी किया जा सकता है.

एटीएस के ऑफिसर के रोल में करणवीर शर्मा और आतंकी हमलों के पीछे मास्टरमाइंड का रोल निभाने वाले जमील खान अपने रोल में जमे हैं. बाकी 'ब्लैंक' CID का एक हाई बजट एपिसोड लगता है. 111 मिनट की होने के बावजूद, फिल्म लंबी और बोरिंग लगती है.

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