advertisement
संजय लीला भंसाली का कैनवास और आलिया भट्ट की जानदार एक्टिंग! 2011 में आई हुसैन जैदी की किताब 'माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई' पर बनी, भंसाली की फिल्म गंगुबाई काठियावाड़ी जैसे उनकी कहानी को बड़े पर्दे पर जिंदगी दे देती है.
फिल्म का स्क्रीनप्ले संजय लीला भंसाली ने उत्कर्षिनी वशिष्ठ के साथ मिलकर लिखा है, जो किताब की तरह ही तीन हिस्सों में चलता है- गंगा, गंगू और गंगुबाई. जब हम पहली बार आलिया को देखते हैं, तो वो गंगा होती हैं... मासूम और चहकती गंगा जिसकी आंखों में फिल्म स्टार बनने जैसे बड़े सपने हैं.
आलिया को कमाठीपुरा की बेबस गंगू बनते हुए देखना दिल तोड़ने वाला है. इसके बाद फिल्म तीसरे चैप्टर की ओर बढ़ती है, जब गंगू अपनी और कमाठीपुरा की बाकी महिलाओं की जिंदगी सुधारने के लिए हक की लड़ाई लड़ती है.
सीन के मुताबिक उनकी आवाज कभी तेज होती है तो कभी कमांडिंग, लेकिन उनके चेहरे पर वो मासूमियत दिखाई देती है. ये उस खोई हुई मासूमियत की एक दर्दनाक याद है कि अगर ये दुनिया इतनी क्रूर न होती, तो वो आज भी गंगा हो सकती थी.
हर बार की तरह इस बार भी संजय लीला भंसाली ने कहानी को अपने नजरिये से बयां किया है और फिल्म का हर फ्रेम परफेक्शन की एक मिसाल है. फिल्म में एक सीन है, जिसमें कमाठीपुरा में लड़कियां एक बेंच पर बैठकर अपने चेहरों को रंग रही हैं. इन लड़कियों के चेहरों पर टूटे विश्वास और वादों की बेबसी साफ देखी जा सकती है.
वहीं, एक सीन में गंगू एक लड़की की तरफ से उसके पिता को एक खत लिख रही होती है. वहां की बाकी लड़कियां भी अपना दर्द बयां करती हैं. ये इन सभी लड़कियों का साझा दर्द है, जिसकी चीख वो अपने परिवारों तक पहुंचाना चाहती हैं.
फिल्म की कास्टिंग शानदार है. सीमा पाहवा, छाया कदम, इंदिरा तिवारी, जिम सार्भ और हमेशा ही शानदार रहने वाले विजय राज ने बढ़िया काम किया है. करीम लाला जैसे रोल में अजय देवगन हमेशा ही बढ़िया लगते हैं, लेकिन फिल्म में एक बार को लगता है कि उनका किरदार गंगू की कहानी आगे बढ़ाने के लिए केवल एक रणनीति थी.
आलिया अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करती हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि ये उनकी अब तक की बेस्ट परफॉर्मेंस में से एक है.
गंगूबाई काठियावाड़ी को 5 में से 3.5 क्विंट!
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)