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नन्ही गुंजन को आसमान में उड़ते प्लेन बहुत एक्साइट करते हैं, जब वो अपने भाई से कहती है कि वो बड़े होकर पायलट बनेगी, तो उसका भाई मजाक उड़ाते हुए उसे एयर होस्टेस बनने के लिए कहता है, क्योंकि “लड़कियां पायलट थोड़े ना बनती हैं”. ये सुनकर उनके पिता कहते हैं कि प्लेन चाहे लड़का उड़ाए या लड़की, दोनों को कहा 'पायलट' ही जाता है. तो बता यहीं खत्म होती है. गुंजन जो बनना चाहती है, वो बन सकती है. लेकिन असल दुनिया की अपनी चुनौतियां हैं.
ये फिल्म 1999 कारगिल युद्ध क्षेत्र में उड़ान भरने वाली भारत की पहली महिला एयरफोर्स ऑफिसर, गुंजन सक्सेना की जिंदगी पर आधारित है. फ्लाइट लेफ्टिनेंट श्रीविद्या राजन के साथ, उन्हें युद्ध के दौरान कैजुअल्टी इवैक्युएशन का काम सौंपा गया था.
कहानी अपने आप में काफी प्रेरणादायक है. इसलिए, ये चुनौती हमेशा बनी रही कि बड़े पर्दे पर ये कहानी कैसे उभरकर आएगी. फिल्म को लिखने और डायरेक्ट करने वाले नए-नए शरण शर्मा ने इस कहानी को बड़ी बखूबी से बयां किया है.
असल गुंजन सक्सेना केवल 24 साल की थीं, जब वो देश की पहली महिला लड़ाकू पायलट बनीं. जाह्नवी भी फिल्म में यंग और उम्मीदों से भरी हुई दिखती हैं. पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में अपनी चुनौतियों को पार करती लड़की के रोल में जाह्नवी ने सच्चाई दिखाई है. महिलाओं के लिए टॉयलेट या चेंजिंग रूम का न होना, संगठन में उनके साथ होने वाला भेदभाव, ऑडियंस को गुंजन की परेशानी से रूबरू कराता है कि उन्हें अकैडमी में मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
हालांकि, ये फिल्म गुंजन के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन फिल्म में सबसे यादगार सीन उनके परिवार के साथ हैं. ये फिल्म उतनी ही पंकज त्रिपाठी के इर्द-गिर्द है, जो हमेशा अपनी बेटी के सपनों को सपोर्ट करते हैं. फिल्म की सबसे प्रभावी लाइंस पंकज त्रिपाठी ने अपने ट्रेडमार्क स्टाइल में बोली हैं. पिता-बेटी के ऑडियंस की आंखों को नम कर देंगे.
फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट भी उतनी ही असरदार है. ओवर-प्रोटेक्टिव भाई के रोल में अंगद बेदी, यूनिट में गुंजन को शामिल किए जाने का विरोध करने वाले फ्लाइट कमांडर के रोल में विनीत कुमार सिंह, कमांडिंग ऑफिसर के रोल में मानव विज... हर कोई अपने रोल में एकदम फिट बैठता है. एसएसबी अफसर के रोल में मनीष वर्मा और गुंजन की मां के रोल में आयशा रजा मिश्रा को भी भूला नहीं जा सकता.
फिल्म में लड़ाई के सीन ज्यादा नहीं हैं. फिल्म जहां निखरकर सामने आती है वो हैं इसके भावुक सीन. बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है और फिल्म के मूड के साथ बैठता है. अच्छी तरह से बयां की गई गुंजन सक्सेना की ये कहानी हमारे दिल में घर बना लेती है.
‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल’ को 5 में से 4 क्विंट.
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