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अमेजन मिनी टीवी की एक दम नई और ताजा सीरीज है 'इश्क एक्सप्रेस'. जैसा कि नाम से लगता है कि आप समझ ही रहे होंगे ये कुछ इश्क-मोहब्बत की एक्सप्रेस स्टोरी है. अगर आपने कभी ट्रेन से सफर किया है या फिर आप एक सिंपल लव स्टोरी को पसंद करते हैं तो निश्चित तौर पर ये कहानी आपको खुद से जुड़ी हुई लगेगी.
एक यंगस्टर के तौर पर लंबी दूरी के ट्रैवल, खासकर ट्रेन के सफर में हर कोई चाहता है कि उसका को-ट्रैवलर यानी हमसफर अच्छा मिल जाए, तो सफर सुहाना हो जाए, लेकिन यहां कहानी दो अजनबियों के एक सीट पर सफर करने और फिर दोस्त बनने से आगे बढ़कर एक-दूसरे को पसंद करने की कहानी है. कुछ खट्टी-मीठी, छुई-अनछुई और रुमानी लव स्टोरी.
ये कहानी है आरव और एक्सप्रेसिव तान्या की, जो शुरू होती है मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से चली एक ट्रेन से. आरव थोड़ा कन्फ्यूज्ड किस्म का है. उसे मुंबई से अपने घर जमशेदपुर यानी टाटानगर जाना है. वो झल्लाया हुआ ट्रेन में जाता है. उसके पास RAC टिकट है. सीट पर एक खूबसूरत लड़की को बैठा देखकर वो अकबका जाता है.
नेचर से शर्मीला आरव अपनी टिकट दिखाकर और फिर अपनी सीट पर थोड़ा तिरछा होकर बैठ जाता है. तान्या कुछ मॉर्डन और कॉन्फिडेंट गर्ल है. आरव सोचता ही रहता है बातचीत कैसे हो कि तान्या पहल कर देती है. इसके साथ ही दोनों में फास्ट और इंस्टेंट कनेक्शन बन जाता है,
बाद में आरव भी तड़पकर तान्या से मिलने की कोशिश करता है पर मिल नहीं पाता. हां चलते-चलते एक झटके में फिल्मी स्टाइल में तान्या, आरव को अपना इंस्टा ID बता देती है. यहीं से कनेक्शन आगे बढ़ता है. फिर दोनों में कुछ-कुछ, फील्स लाइक इश्क जैसा होता है और दोनों आखिर में इश्क एक्सप्रेस पर साथ-साथ सवार हो जाते हैं. बस इतनी सी है 'इश्क एक्सप्रेस' की एक सिंपल लव स्टोरी.
अगर स्टोरी, कैरेक्टर और सेटिंग को देखें तो ये एक बढ़िया प्रॉमिस है. सिंपल स्टोरी ज्यादा ट्विस्ट नहीं. अगर आप हल्के-फुल्के मूड में कुछ रुमानी देखना चाहते हैं तो ये सीरीज अच्छी है. कहानी निश्चित तौर पर थोड़ी प्रिडिक्टिव है, लेकिन अगर आपने कभी ट्रेन का सफर किया है और ऐसे क्षणों से गुजरे हैं या फिर अपने कॉलेज के दिनों में थोड़े रोमांटिक रहे हैं या फिर अभी हैं तो निश्चित तौर पर ये कहानी आपको खुद से जुड़ी हुई लगेगी.
सीरीज के राइटर और डायरेक्टर सौरव जॉर्ज स्वामी और डायरेक्टर तन्मय रस्तोगी ने अपना नैरेटिव बहुत सिंपल और बिना लाग-लपेट के रखा है.
तान्या के किरदार में गायत्री भारद्वाज जमी हैं. वो काफी एक्सप्रेसिव हैं. वहीं, स्मॉल टाउन ब्वॉय आरव के किरदार में रित्विक सहोरे भी बढ़िया काम कर गए हैं.
वैसे तो कहानी को कहने में फ्लैशबैक टेक्नीक का भी इस्तेमाल किया गया है, जो स्टोरीटेलिंग को थोड़ा ग्रिपिंग बनाता है, लेकिन इसमें वॉयस-ओवर की जगह ऑल्टर इगो टेक्नीक का इस्तेमाल किया गया है. इसमें उसके मन की बात वॉयस-ओवर की जगह नायक के ही एक इमेज से बताई जाती है.
सीरीज पूरी तरह से कन्वर्सेशनल है. कहानी इसी से आगे बढ़ती है. ऐसे में इस तरह की कहानी में डॉयलॉग्स बहुत अहम हो जाते हैं. लेकिन लेखक आजकल मेट्रो में जिस तरह की भाषा युवा बोलते हैं, उन्हें पकड़ने में बहुत हद तक कामयाब हुए हैं, मगर उनके कन्फ्यूजन, एंबीशन और इमोशन को ठीक से फिल्म में दिखा नहीं पाएं हैं. साथ ही इस तरह की रोमांटिक कहानी में बैकग्राउंड स्कोर और लाइफ फिलॉस्फी थोड़ी जरूर होती है, वो सीरीज से गायब है.
डायरेक्टर और राइटर ने अपना लेंस पूरी तरह से आरव और तान्या पर फोकस कर दिया है, इसलिए डिटेलिंग की कुछ-कुछ कमी रह जाती है. जैसे कोलकाता, जमशेदपुर और मुंबई तीन शहरों को फिल्म में शूट किया गया है, लेकिन तीनों ही शहर सिर्फ रेफरेंस की तरह ही आ पाते हैं. अगर विजुअली शहर को और कैप्चर किया जाता तो सीरीज विजुअल ट्रीट भी बन सकती थी.
सीरीज पूरी ट्रेन के इर्द गिर्द है और RAC, CNF और WL ऐसे टाइटिल का इस्तेमाल एपिसोड्स को समझाने के लिए हुए हैं, जो कि थोड़ा दिलचस्प है. लेकिन ट्रेन को कैप्चर करने, ट्रेन के भीतर की डिटेलिंग में कुछ-कुछ चूक सी लगती है, जैसे 100 रुपये की चाय... इसपर यकीन नहीं हो पाता. इसके अलावा RAC में सफर करने का स्ट्रेस और स्ट्रगल थोड़ा मिसिंग है.
आरव और तान्या मॉडर्न टाइम्स के लव रिलेशनशिप को एक्सप्लोर करते हैं. आखिर में तान्या एक जगह बोलती है कि, "बोलोगे नहीं तो जानेंगे कैसे..." फिर आरव तान्या को पसंद करने और दोस्त से अलग मानने के बारे में बताता है और तान्या भी अपनी फील्स लाइक इश्क को बताती है.
अगर आपको ट्रैवल, ड्रामा और लव पसंद है और आप थोड़ा रुमानी होना चाहते हैं और आपको लगता है कि कुछ कह नहीं पाने की वजह से कुछ चीजें छूट गई, तो आप 'इश्क एक्सप्रेस' में सवार हो सकते हैं.
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