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फिल्म में अक्षय कुमार यह डायलॉग बोलते हुए नजर आए हैं- “जिस दिन मैंने भूत देख लिया, कसम से उस दिन से मै चूड़ियां पहन लूंगा”. इस डायलॉग में साफतौर पर चूड़ियां पहनना एक कमजोर औरत की निशानी बताया गया है. आज के दौर मे जहां हर कोई औरत और मर्द के बीच की तुलना को खत्म करने को लगा है, वहीं बॉलीवुड की यह फिल्म इस मामले में काफी पीछे रह गई है. आज जहां हर कोई कमला हैरिस के अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति बनने का जश्न मना रहा है, वहीं बॉलीवुड की ये फिल्म औरतों को कमजोर दिखाती नजर आ रही है.
खैर, अगर हम इस फिल्म में हुए अपमानों की गिनती करने मे लग गए, तो शायद लिस्ट काफी लंबी बन सकती है. अगर जनता और अक्षय, अपनी मानसिक स्थिति पर असर नहीं पड़ने देना चाहते हैं तो उन्हे यह मान लेना होगा की ‘लक्ष्मी’ जैसी फिल्म कभी बनी ही नहीं थी. राघव लॉरेंस द्वारा डायरेक्ट की गई यह फिल्म मात्र 2 घंटे 20 मिनट मे आपका सिर घुमा देगी.
शुरुआत में फिल्म काफी अच्छी नजर आ रही है, लेकिन अंत आते-आते यह फिल्म एक बदबूदार ढेर की तरह प्रतीत होने लगती है. राजेश शर्मा, मनु ऋषि चड्ढा, आयशा रजा, और अश्विनी कलसेकर जैसे कई अनुभवी एक्टर्स इस फिल्म मे मात्र एक कार्टून किरदार बनकर रह गए हैं. फिल्म में अक्षय कुमार का ऐसा बेअदब अवतार काफी ज्यादा शर्मनाक दिख रहा है. और अगर बात करें कियारा आडवाणी की, तो इस फिल्म में उनका वैसा ही रोल है, जैसा कि इस साल की दिवाली में पटाखों का. कियारा का ‘बुर्ज खलीफा’ में डांस देख, तो देखने वाले की गर्दन में दर्द हो जाए.
शरद केलकर का कहना है कि एक किन्नर का रोल काफी ज्यादा अच्छे ढंग से पेश किया जा सकता है, लेकिन इस फिल्म में उस रोल को एक शर्मनाक रोल बना दिया गया है.
अगर हम इस फिल्म को बॉलीवुड के ‘ब्रेनलेस कॉमेडी' वाले स्टैन्डर्ड के नजरिए से भी देखते है, तो उसमे भी यह फिल्म बुरी ही नजर आती है. ना ही यह फिल्म कॉमेडी है, न ही इसमें कुछ प्रेरणादायी है. हां, थोड़ा बहुत डर वाला तड़का जरूर है इस फिल्म में, लेकिन इसके बावजूद भी यह फिल्म सिर्फ एक ‘मजाक’ बनकर रह गई है.
इस साल वैसे भी कई ऐसी घटनाएं हुई है, जिन्होंने पूरे देश को झकझोर दिया, और इसी बीच ‘लक्ष्मी’ जैसी फिल्म रिलीज हो गई. बॉलीवुड को, ऑडियंस को अब थोड़ा ब्रेक देना होगा, क्योंकि यह कहने में अब कोई संकोच नहीं की ‘लक्ष्मी’ 2020 की सबसे बुरी फिल्म है.
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