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फिल्म “मी रकसम” में बाबा आजमी ने समाज, धर्म और सपने में उलझी मरियम और उसके पिता की खूबसूरत कहानी दिखाई है. लोग कहते हैं कि ऐसे नाचो जैसे कोई नहीं देख रहा हो. मरियम भी यही करना चाहती है. पास के भारतनाट्यम स्कूल से आने वाले संगीत की ताल और धुन के साथ मरियम के कदम अपने आप थिरकने लगते हैं.
नृत्य उसे अपनों के करीब महसूस करवाता है. वही मां जिनकी वजह से उसके दिल में कला को लेकर एक अलग जगह और प्यार बना हुआ है. लेकिन धर्म और संस्कृति के बिन बुलाए तथाकथित रखवाले उसे नीचा दिखाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ते.
“मी रकसम” फिल्म के निर्देशक बाबा आजमी हैं और प्रोड्यूसर हैं शबाना आजमी. अपने पिता और मशहूर शायर कैफ़ी आजमी को समर्पित ये फिल्म कैफ़ी आजमी की इंसानियत और भारत के संस्कृति की समझ पर आधारित है.
मरियम मिजवां की एक मुस्लिम लड़की है जो भरतनाट्यम सीखना चाहती है. लेकिन दोनों तरफ के लोग उसकी इस इच्छा पर नाक भौं सिकोड़ते हैं. लोग उसे “गैर मजहबी” कहते हैं, लोग उसकी इच्छा से आश्चर्य से भर जाते हैं. एक किरदार इनके जवाब में कहता है,
“मोह्मडन इंडियन नहीं होते क्या?”
सदफ मीर और हुसैन मीर की लिखी स्क्रिप्ट शानदार है और बिल्कुल भी बोझिल या प्रेडिक्टेबल नहीं होती. ना ही बहुत ज्यादा उपदेश देती हुई सी लगती है. संतुलन बरकरार रहता है.
वो किसी बड़े बयान, व्यक्तव्य , कुछ बड़ा बदलने नहीं निकलते हैं. उन्हें बस समाज से अपना एक सपना बचाना होता है.
एक सीन में मरियम बिल्कुल उम्मीद छोड़ चुकी होती है. वो अपने पिता को बताती होती है कि उसे कभी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसके एक पैशन की वजह से उन्हें इतना बड़ा खामियाजा भुगतना होगा. उस पर उसके पिता कहते हैं कि ये खामियाजा उन्हें मरियम के सपने के वजह से नहीं बल्कि इज्जत के जीने की जिद के वजह से भुगतना पड़ रहा है.
मुस्लिम समुदाय के नेता बने नसीरुद्दीन लगातार मरियम और उसके पिता को परेशान करते हैं. राकेश चतुर्वेदी एक बिजनेसमैन की भूमिका में हैं. वो भी मरियम और उसके पिता को धर्म के नाम पर ही परेशान करते हैं.
पूरी कास्ट में श्रद्धा कौल, फार्रुख जफर ने भी अपने-अपने किरदारों को साथ पूरा जस्टिस किया है. भले ही ये सुनने में काफी सामान्य लगे लेकिन “मी रकसम” कहीं भी अपना फ्लेवर नहीं छोड़ती. फिल्म में शोखी है, खूबसूरती है और काम भर की बहुत प्यारी शांति है.
डांस टीचर उमा की भूमिका में सुदीप्ता सिंह और संवेदनशील चचेरी बहन के किरदार में जुहैना एहसान की प्रेजेंस छोटी लेकिन जरूरी है. और फिल्म की खूबसूरती में चार चांद लगाती है. “मी रकसम” कट्टरतावाद और उसके खोखलेपन पर जोर डालती हुई फिल्म है. कुछ सीन शायद बहुत साधारण लगें लेकिन ये फिल्म दिल में जगह बना लेगी.
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