Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Entertainment Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Movie review  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019सपनों को पूरा करने की कहानी और कट्टरवाद पर चोट करती है ‘मी रकसम’

सपनों को पूरा करने की कहानी और कट्टरवाद पर चोट करती है ‘मी रकसम’

सदफ मीर और हुसैन मीर की लिखी स्क्रिप्ट शानदार है

स्तुति घोष
मूवी रिव्यू
Updated:
(फोटो: TheQuint)
i
null
(फोटो: TheQuint)

advertisement

फिल्म “मी रकसम” में बाबा आजमी ने समाज, धर्म और सपने में उलझी मरियम और उसके पिता की खूबसूरत कहानी दिखाई है. लोग कहते हैं कि ऐसे नाचो जैसे कोई नहीं देख रहा हो. मरियम भी यही करना चाहती है. पास के भारतनाट्यम स्कूल से आने वाले संगीत की ताल और धुन के साथ मरियम के कदम अपने आप थिरकने लगते हैं.

नृत्य उसे अपनों के करीब महसूस करवाता है. वही मां जिनकी वजह से उसके दिल में कला को लेकर एक अलग जगह और प्यार बना हुआ है. लेकिन धर्म और संस्कृति के बिन बुलाए तथाकथित रखवाले उसे नीचा दिखाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ते.

“मी रकसम” फिल्म के निर्देशक बाबा आजमी हैं और प्रोड्यूसर हैं शबाना आजमी. अपने पिता और मशहूर शायर कैफ़ी आजमी को समर्पित ये फिल्म कैफ़ी आजमी की इंसानियत और भारत के संस्कृति की समझ पर आधारित है.

आजमी के पैतृक गांव मिजवां की ये कहानी मरियम की कहानी है. मरियम की इस कहानी में बस उसके नृत्य सीखने की ललक नहीं बल्कि समाज कैसे उसे पग-पग पर रोकता है, वो भी दिखाया गया है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

सपनों के आड़े आतीं समाज की बेड़ियां

मरियम मिजवां की एक मुस्लिम लड़की है जो भरतनाट्यम सीखना चाहती है. लेकिन दोनों तरफ के लोग उसकी इस इच्छा पर नाक भौं सिकोड़ते हैं. लोग उसे “गैर मजहबी” कहते हैं, लोग उसकी इच्छा से आश्चर्य से भर जाते हैं. एक किरदार इनके जवाब में कहता है,

“मोह्मडन इंडियन नहीं होते क्या?”

सदफ मीर और हुसैन मीर की लिखी स्क्रिप्ट शानदार है और बिल्कुल भी बोझिल या प्रेडिक्टेबल नहीं होती. ना ही बहुत ज्यादा उपदेश देती हुई सी लगती है. संतुलन बरकरार रहता है.

‘मी रकसम’ की कोर कहानी में एक पिता और बेटी का रिश्ता है. रिश्ते के दोनों सिरों पर धार्मिक कट्टरता है जिसे रिश्ते पर हावी नहीं होने देना ही दोनों का संघर्ष है. कहानी की अपील अभिनय में बसती है. सलीम ने दानिश हुसैन का किरदार, अदिति सुबेदी ने मरियम का किरदार बेहतरीन निभाया है. उन्हें शायद खुद भी अपनी प्रतिभा का अंदाजा अभी नहीं है.

वो किसी बड़े बयान, व्यक्तव्य , कुछ बड़ा बदलने नहीं निकलते हैं. उन्हें बस समाज से अपना एक सपना बचाना होता है.

एक सीन में मरियम बिल्कुल उम्मीद छोड़ चुकी होती है. वो अपने पिता को बताती होती है कि उसे कभी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसके एक पैशन की वजह से उन्हें इतना बड़ा खामियाजा भुगतना होगा. उस पर उसके पिता कहते हैं कि ये खामियाजा उन्हें मरियम के सपने के वजह से नहीं बल्कि इज्जत के जीने की जिद के वजह से भुगतना पड़ रहा है.

खोखले कट्टरवाद पर चोट करती फिल्म

मुस्लिम समुदाय के नेता बने नसीरुद्दीन लगातार मरियम और उसके पिता को परेशान करते हैं. राकेश चतुर्वेदी एक बिजनेसमैन की भूमिका में हैं. वो भी मरियम और उसके पिता को धर्म के नाम पर ही परेशान करते हैं.

पूरी कास्ट में श्रद्धा कौल, फार्रुख जफर ने भी अपने-अपने किरदारों को साथ पूरा जस्टिस किया है. भले ही ये सुनने में काफी सामान्य लगे लेकिन “मी रकसम” कहीं भी अपना फ्लेवर नहीं छोड़ती. फिल्म में शोखी है, खूबसूरती है और काम भर की बहुत प्यारी शांति है.

डांस टीचर उमा की भूमिका में सुदीप्ता सिंह और संवेदनशील चचेरी बहन के किरदार में जुहैना एहसान की प्रेजेंस छोटी लेकिन जरूरी है. और फिल्म की खूबसूरती में चार चांद लगाती है. “मी रकसम” कट्टरतावाद और उसके खोखलेपन पर जोर डालती हुई फिल्म है. कुछ सीन शायद बहुत साधारण लगें लेकिन ये फिल्म दिल में जगह बना लेगी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 21 Aug 2020,03:30 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT