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ये कहना जरूरी है- ‘साहो’ झेलने लायक भी नहीं है! तीन घंटे लंबी और 350 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म को आलसी एक्शन सीन और बचकानी राइटिंग बर्बाद कर देती है. आप पूछेंगे स्टोरी क्या है? कुछ नहीं!
वाजी में, रॉय खानदान का मुखिया (जैकी श्रॉफ) उन गुंडों का भी मुखिया है जिनके पास अपार पैसा है. रॉय को लेकिन और पैसा चाहिए. कुछ दूसरे गुंडे उसकी कुर्सी हथियाना चाहते हैं और फिर एक के बाद एक कैरेक्टर्स और ट्विस्ट-टर्न आते हैं. सच बताएं तो ये सब बहुत कंफ्यूजिंग लगता है.
और, फिल्म अपने लीड एक्टर प्रभास को लेकर अपनी दीवानगी बिल्कुल भी नहीं छुपाती. जैकी श्रॉफ शुरुआत के 10 मिनट में ही गायब हो जाते हैं. चंकी पांडे को थोड़ा चिल्लाने को मिलता है. नील नितिन मुकेश हांफ रहे हैं. प्रकाश बेलावेदी को सही रोल नहीं मिला है. मुरली शर्मा का कैमियो थोड़ा लंबा है. टिनू आनंद के तीन क्लोजअप शॉट्स हैं, वहीं महेश मांजरेकर के दो हैं.
लेकिन सबसे खराब सीन महिलाओं के हैं. फिल्म में कुल चार फीमेल कैरेक्टर्स हैं, और मैं इनमें उन बिकिनी मॉडल्स की बात नहीं कर रही हूं जो बर्बाद गानों में नजर आती हैं. श्रद्धा कपूर ने अमृता का रोल प्ले किया है, एक पुलिस अफसर जो एक केस की जांच कर रही होती है. प्रभास उससे पूछते हैं, 'तुम जैसी सुंदर लड़की पुलिस में क्या कर रही है? तुम्हारी क्या कहानी है?' पूरी फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे प्रभास उनसे बात करने की कोशिश करते हैं, जबकि दिखता है कि श्रद्धा का मन नहीं है. ये देखकर निराशा होती है कि कैसे फिल्म अपनी लीड हिरोइन के साथ सम्मान से पेश नहीं आ रही है.
दूसरी महिला हैं मंदिरा बेदी. उन्होंने कल्कि का रोल प्ले किया है और अधिकतर जरूरी सीन में वो इन्हेलर पकड़े दिखती हैं, जैसे भगवान से उम्मीद कर रही हों कि कोई तो लाइन दे दी होती बोलने को! तीसरी हैं एवलिन शर्मा, जो पांच मिनट की कैटवॉक करती हैं और फिर हैं जैकलीन फर्नांडिज- जो अधिकतर गानों में दिखती हैं.
साहो टैलेंट, पैसे और हमारे समय और उम्मीदों की बर्बादी है. बेहद बेकार है फिल्म!
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