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'साहेब, बीवी और गैंगस्टर 3' में पिछली दो फिल्मों का जो जादू था वो खत्म हो गया है. एक राजपरिवार की जो आन बान और शानो शौकत वाला माहौल था वो इसमें नहीं है. 'साहेब, बीवी और गैंगस्टर' में तिग्मांशु धूलिया ने जो षडयंत्र, लालच और हवस को राजपरिवार में दिखाया था वो यहां नहीं दिखा.
कहानी है देवगढ़ के पूर्व-राजपरिवार के आदित्य प्रताप सिंह (जिम्मी शेरगिल) की जो जेल से बाहर आता है और अपनी विरासत वापस पाना चाहता है. वो चाहता है कि पहले की तरह लोग उन पर ध्यान दें और सब कुछ दोबारा उसकी मुट्ठी में आ जाए.
फिल्म को हम बड़ा ही टिक कर देखते हैं और फिर पता चलता है कि बड़ी ही चतुराई से बनाने वाले प्लान नकली थे और इन कैरेक्टर्स के बारे में तो हमें पता ही है.
संजय दत्त एक गैंगस्टर हैं जो रूस के एक खेल रूले में एक्सपर्ट है. वो खेल जिसे हम कसीनों में देखते हैं. इस गैंगस्टर का लंदन में एक पब भी है 'हाउस ऑफ लॉर्ड्स' और ये भी शादी शुदा है, लेकिन इसे शादी में चित्रांगदा सिंह से प्यार नहीं मिलता.
वो और रूसी रूले खेलने देश वापस आता है और डैडी कबीर बेदी और भाई दीपक तिजोरी से प्रोपर्टी में अपना हिस्सा मांगता है. जब भी संजय दत्त फ्रेम में आते हैं, 'बाबा' थीम का गाना प्ले होता है. लेकिन बाबा इस कैरेक्टर में फिट नहीं हो पाते.
सबसे ज्यादा राइटिंग निराश करती है, जिसमें एक नहीं दो लोग जुड़े हैं. तिग्मांशु धूलिया और संजय चौहान. फिल्म में गाने भी ऐसे हैं जिन्हें आप गुनगुनाएंगे नहीं. स्क्रिप्ट तो कई जगह ऐसे लगती है जैसे फेक हो. ये कहना थोड़ी ट्रेजडी होगा, लेकिन ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर 3’ को आसानी से भुला दिया जाएगा.
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