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फिल्म ‘सोनचिड़िया’ की शुरुआत वहां से होती है, जहां एक मरे हुए सांप पर सैकड़ों मक्खियां भिनभिना रही हैं. कुछ देर तक दर्शक इसी सीन पर थमे रहते हैं कि अचानक कैमरा पैन होता है और डाकुओं का एक झुंड दिखाई देता है, जो सांप के डर से अपना रास्ता बदलना चाहते हैं.
डाकुओं के झुंड के मुताबिक मरा हुआ सांप देखना एक बुरे शगुन की आहट होती है. लेकिन गिरोह का सरदार इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए सांप को अपनी बंदूक की नोंक से एक कोने में कर देता है.
बॉलीवुड की ‘शोले’, ‘बैंडिट क्वीन’ और ‘पान सिंह तोमर’ ने दर्शकों के दिल में खास जगह बनाई है. डायरेक्टर अभिषेक चौबे और राइटर सुदीप शर्मा एक बार फिर दर्शकों को वही मसाला परोस रहे हैं, जिसमें डाकू कानून से अपने हक की लड़ाई लड़ते हुए नजर आ रहे हैं. लेकिन फिल्म के कुछ सींस को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस कहानी की कई पर्तें खुलनी बाकी हैं.
फिल्म में शुरू से ही एक निराशा भरी हवा दिल को भारी कर देती है. पुराने रेडियो पर चल रही कर्कश इमरजेंसी की अनाउंसमेंट जिसे सुनकर सभी डाकुओं में अफरातफरी की स्थिति बन जाती है. मान सिंह (मनोज बाजपेयी) और उसके साथी लूट, डकैती की जिंदगी से उकता गए हैं और इस तरह के जीवन से मोक्ष चाहते हैं.
फिल्म का सेट वास्तविकता से काफी मिलता जुलता है. यही नहीं फिल्म बहुत कुछ बताना चाहती है समाज में जातिवाद, ऊंच नीच, नैतिकता, नारीवाद जैसे मुद्दों को उठाया जरूर है. लेकिन दर्शकों की उम्मीद पर ये फिल्म खरी उतरेगी इस बात की उम्मीद काफी कम है.
भूमि पेडनेकर ने एक युवा लड़की का किरदार निभाया है जो हाल ही में डकैतों के झुंड की सदस्य बनी है. आशुतोष राणा फिल्म में पुलिस ऑफिसर का किरदार निभा रहे हैं. जिसका एक ही मिशन है बागियों की गिरफ्तारी.
इन सब किरदारों की बेहतरीन परफॉर्मेंस के बाद अनुज राकेश धवन की सिनेमोटोग्राफी कमाल की है.
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