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मुझे याद है, वो साल 1991 था. मैं स्कूल में पढ़ता था और डॉक्टर प्रणव रॉय का टीवी शो, ‘The World This Week,’ जरूर देखता था. इसी शो में मैंने पहली बार ‘टर्मिनेटर 2: जजमेंट डे’ के विजुअल देखे और फैन हो गया. शो में उस फिल्म के क्लिप्स दिखाए गए थे, जिनमें एक विजुअल रॉबर्ट पैट्रिक का लिक्विड मेटल-मैन के रूप में बदलना और पिघलना दिखाया गया था. मैं टर्मिनेटर 2 में T-1000 का आकार बदलना देखता ही रह गया था. जेम्स कैमेरून के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में मुख्य किरदार अर्नोल्ड श्वार्जनेगर और लिंडा हैमिल्टन ने निभाया था. इतनी बेहतरीन एक्शन फिल्म मैंने पहले कभी नहीं देखी थी. ये फिल्म एक्टर और नेता अर्नोल्ड की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म थी.
टर्मिनेटर सीरीज की लेटेस्ट फिल्म ‘टर्मिनेटर: डार्क फेट’ की सबसे बड़ी खासियत है कि इसके साथ सबसे लोकप्रिय फिल्म सीरीज का जादू एक बार फिर पर्दे पर लौटा है. अर्नोल्ड श्वार्जनेगर, लिंडा हैमिल्टन और जेम्स कैमेरून (को-प्रोड्यूसर और शेयर स्टोरी क्रेडिट के साथ) की तिकड़ी 28 सालों बाद एक बार फिर साथ है. दिलचस्प बात है कि इस फिल्म का डायरेक्शन ‘डेडपूल’ जैसी मशहूर फिल्म बना चुके टिम मिलर ने किया है.
कई मायने में ‘टर्मिनेटर: डार्क फेट’ , ‘द टर्मिनेटर’ और ‘टर्मिनेटर 2: जजमेंट डे’ की झलक है. फिल्म की कहानी पुराने ढर्रे पर है. एक टर्मिनेटर (गैब्रियेल लूना) को भविष्य से वापस भेजा जाता है. उसका मिशन है डैनियेला रामोस (नतालिया रेयेस) की हत्या करना, ताकि वो विरोध करने वाले नेता को जन्म न दे सके. डैनियेला की सुरक्षा के लिए ग्रेस (मैकेंजी डेविस) को भी समय से पीछे भेजा जाता है. इसी बीच सारा कोनर (लिंडा हैमिल्टन) की भी टर्मिनेटर हंटर के रूप में वापसी होती है. ये सभी T-800 (अर्नोल्ड श्वार्जनेगर) को नए टर्मिनेटर से मुकाबला करने के लिए रिटायरमेंट से वापस लाते हैं.
हमें ये भी पता चलता है कि सारा के बच्चे को एक टर्मिनेटर ने ढूंढ कर मौत के घाट उतार दिया था. इसके बाद फिल्म में लगातार और सांस थामकर देखने वाला एक्शन शुरु होता है, जिसमें आमने-सामने लड़ाई, आकार बदलने वाला टर्मिनेटर, एक साइबॉर्ग इंसान, ट्रक से पीछा करना, अंधाधुंध गोलीबारी शामिल है. काफी कुछ ये ‘टर्मिनेटर 2’ की नकल लगता है. इसमें सारा कोनर का पहला डायलॉग है, ‘I’ll be back,’ जो 1984 में रिलीज हुई पहली फिल्म में भी था.
नई फिल्म में तीन महिलाएं लगभग न रुकने वाले एक किलिंग मशीन को रोकने के लिए जमकर लोहा लेती हैं. कार्ल के रूप में अर्नोल्ड श्वार्जनेगर को अब भी ये अहसास है कि उसने सारा के बच्चे को मार डाला था. फिल्म में महिलाओं का साथ देने के लिए उसकी एंट्री काफी देर से होती है. फिल्म की कहानी सामान्य है, फिर भी ऑडियंस को बांधे रखने के लिए इसमें कई एक्शन पीस शामिल किए गए हैं. खास बात है कि टिम मिलर की फिल्म में सबकुछ गंभीर नहीं है. सारा और कार्ल के बीच भावनात्मक रिश्ते और हंसी-मजाक के सीक्वेंस ऑडियंस का मूड बदलते रहते हैं.
यहां इंसान के रूप में बदला हुआ साइबोर्ग, ग्रेस, शरणार्थियों को जेल से छुड़ाता है, ताकि इंसानियत को बनाए रखने की इकलौती उम्मीद मेक्सिको की डेनियेला के साथ वो खुद भी भाग सके. तो कौन कहता है कि आप अर्नोल्ड श्वार्जनेगर की मुख्यधारा से हटकर बनी फिल्म पर राजनीतिक टिप्पणी नहीं कर सकते?
‘टर्मिनेटर: डार्क फेट’ की कहानी का अनुमान लगाना आसान है, लेकिन फिल्म का नैरेटिव और सांस रोककर देखने वाला एक्शन सीक्वेंस ऑडियंस को बांधे रखता है. टर्मिनेटर सीरीज की लेटेस्ट फिल्म अगर आपको अब तक की सबसे असरदार एक्शन फिल्म देखने का अहसास दिलाए, तो बेजा नहीं होगा.
मैं ‘टर्मिनेटर: डार्क फेट’ को 5 में से 3 क्विंट दूंगा. अगर आप टर्मिनेटर के फैन हैं, तो इसे बड़े पर्दे पर देखने का मौका मिस मत करिए.
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