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मुंबई में एक ठंडा दिन और जुहू में संजय लीला भंसाली के ऑफिस की खिड़की से आती ताजा धूप... और क्या चाहिए, जब खुद संजय आपके सामने, अपनी फिल्मों के पीछे की कहानी साझा करने के लिए बैठे हों.
आप खुश नजर आ रहे हैं?
संजय लीला भंसाली: बिलकुल. मैं सातवें आसमान पर हूं. सोशल मीडिया पर लगातार बधाई संदेश आ रहे हैं. मेरा फोन तो फोन की रिलीज के बाद से बजना ही बंद नहीं हुआ है.
जब आप फिल्म को शूट कर रहे थे, क्या तब आप जानते थे कि फिल्म वैसी ही बनेगी, जैसी यह बन पड़ी है?
भंसाली: नहीं. मुझे नहीं लगता कि किसी भी फिल्ममेकर को यह पहले से पता होता है. हम सब परफेक्शन चाहते तो हैं, पर जरूरी नहीं कि हम परफेक्शन हासिल कर ही लें. पर हां, यहां जुनून हमेशा रहा, हर शॉट और हर सीन में. मैंने हर दिन एक शॉट पर काम किया और बिना किसी समझौते के अपना बेस्ट दिया. मैं तब तक एक सीन में उलझा रहा, जब तक मुझे यकीन नहीं हो गया कि मैं अब इससे बेहतर कुछ नहीं कर सकता. इस तरह मुझे खुद पर और अपनी टीम पर भरोसा था कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ कर रहे हैं.
आप हर फिल्म में अपनी टीम कैसे चुनते हैं?
भंसाली: मुझे जो अच्छा लगता है, मैं उसे चुनता हूं. मैं उनकी आंखों का यकीन देखता हूं. मैंने सिनेमेटोग्राफर सुदीप चटर्जी के साथ ‘गुजारिश’ में काम किया, तो उन्हें दोबारा ले लिया. ‘हम दिल दे चुके सनम’ में मैने आर्ट डायरेक्टर नितिन चंद्रकांत देसाई के साथ काम किया था. इस बार उसके असिस्टेंट्स ने मेरे साथ काम करना चाहा, तो मैंने उत्साह देखकर उनको मौका दिया. कॉस्ट्यूम डिजाइनर अंजू मोदी के साथ मैंने ‘राम लीला’ में काम किया था, मस्तानी के लिए मैंने दोबारा उन्हें लिया.
प्रकाश कपाड़िया ने ‘बाजीराव मस्तानी’ का स्क्रीनप्ले 12 साल पहले लिखा था. क्या आपको इसे दोबारा लिखना पड़ा?
भंसाली: बिलकुल नहीं. सिवाय फिल्म की लंबाई थोड़ी कम करने के, हमने स्क्रिप्ट से कोई छेड़छाड़ नहीं की.
फिल्म के सेट पर तीन सुपरस्टार्स को एक साथ संभालना कितना मुश्किल?
भंसाली: तीनों को ही कहानी पहले ही दे दी गई थी और शूटिंग शुरू होने से पहली ही सभी अपने-अपने कैरेक्टर को जानते थे. फिल्म के सितारों में किसी तरह का कोई तनाव या दुश्मनी नहीं थी. हमने हमेशा एक साथ काम किया, एक साथ बैठकर खाया. कभी किसी ने कोई शिकायत नहीं की, कभी कोई परेशानी नहीं हुई. एक तरीके से ‘बाजीराव मस्तानी’ एक ब्लैस्ड प्रोजेक्ट था.
एक बार आपने कहा था कि आप अपने सेट को टूटते हुए नहीं देख सकते. क्या आप अब भी वैसा ही महसूस करते हैं?
भंसाली: पूरे क्रिएटिव प्रोसेस का यह सबसे मुश्किल हिस्सा होता है. जब ‘हम दिल दे चुके सनम’ का सेट टूटा था, तो मेरा दिल टूट गया था. पर अब मैं बदल रहा हूं, निर्लिप्त होना सीख रहा हूं. जो चीज मेरे बस मेें नहीं, उस पर नाराज होना छोड़ दिया है मैंने.
अपने अभिनेताओं के साथ आपके रिश्ते कैसे हैं, क्या आपको उनसे प्रेरणा मिलती है या फिर वो आपके दोस्त हैं?
भंसाली: इस बारे में मैं कहूंगा कि अच्छे दिमागों के साथ काम करने से मुझमें और बेहतर करने की इच्छा जागती है. इस पूरी प्रक्रिया में जब आप एक-दूसरे के साथ को सहेजते हैं, तो यह और खूबसूरत हो जाता है. मैंने शाहरुख (देवदास), अमिताभ-रानी (ब्लैक) और रितिक रोशन (गुजारिश) के साथ एक फिल्म और सलमान (खामोशी, हम दिल दे चुके सनम), रणवीर-दीपिका (रामलीला, बाजीराव मस्तानी) के साथ दो फिल्में और एश्वर्या (हम दिल दे चुके सनम, देवदास, गुजारिश) के साथ तीन फिल्में की हैंं. इन सबके साथ मैं हमेशा के लिए जुड़ गया हूं.
आप काफी शांत लग रहे हैं?
भंसाली. हां मैं पहले से शांत महसूस करता हूं. मुझे लगता है जिंदगी अपना चक्कर जरूर पूरा करती है. जैसे ‘ब्लैक’ बनाने के लिए ‘खामोशी’ बनना जरूरी था और ‘रामलीला’ बनाने के लिए ‘हम दिल दे चुके सनम’ बनाना.
देवदास का दर्द, गुजारिश के दर्द से अलग था. और अगर मेरे पिता ने मुझे 18 बार मुगल-ए-आज़म न दिखाई होती, तो मैं ‘बाजीराव मस्तानी’ नहीं बना सकता था. मैं अब इस खुशबू से बाहर निकलकर नई फिल्म बनाने के लिए तैयार हूं. नए कैरेक्टर्स और नई दुनिया को दर्शकों के सामने रखने को तैयार हूं.
(भावना सोमाया पिछले तीन दशकों से सिनेमा के बारे में लिख रही हैं. वे 12 किताबों की लेखिका भी हैं.)
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