advertisement
Everything Everywhere All at Once के लिए बेस्ट सह कलाकार का ऑस्कर जीतने के बाद के ह्ई कुआन (Ke Huy Quan) ने एक इमोशनल स्पीच दी. उन्होंने कहा-''मेरी यात्रा एक नाव पर शुरू हुई. मैं एक साल तक रिफ्यूजी कैंप में रहा और पता नहीं कैसे मैं हॉलीवुड के सबसे बड़े स्टेज तक पहुंच गया. ऐसी कहानियां सिर्फ फिल्मों में ही मुमकिन हैं, मुझे भरोसा नहीं हो रहा कि ये मेरे साथ हो रहा है. यही है अमेरिकन ड्रीम.''
लेकिन ये सिर्फ अमेरिकन ड्रीम नहीं, पूरी मानवता का ख्वाब है, एक अधूरा ख्वाब. कुआन की कहानी एक नजीर है कि ये ख्वाब पूरा हो सकता है. 'कुआन कथा' कम है तो भारत में रह रही तस्मिदा और इंग्लैंड के गैरी लिनेकर की कहानियां भी हैं.
कुआन वियतनाम में जन्मे. 1978 में कुआन का परिवार वियतनाम के सागोन से नावों पर भागा था. कुआन आठ भाई बहन थे. एक नाव में तीन बच्चे और मां मलेशिया पहुंचीं. पिता के साथ पांच बच्चे हॉन्ग-कॉन्ग पहुंचे. फिर 1979 में एक शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम के तहत ये परिवार अमेरिका में जुटा.
यहां से कुआन की जिंदगी चल पड़ी. उन्होंने कैलिफोर्निया में स्कूली शिक्षा ली और फिर 1999 में USC स्कूल ऑफ सिनेमेटिक ऑर्ट्स से ग्रैजुएशन किया. यहीं उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'वूडू' शूट किया, जिसे कई अवॉर्ड मिले. इससे पहले 12 साल की उम्र में कुआन हैरिसन फोर्ड की फिल्म 'इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम' में बाल कलाकार के रूप में काम किया.
उसके बाद उन्होंने 'द गूनिज' और फिर 1986 में ताइवान की एक फिल्म 'इट टेक्स ए थीफ' में एक पॉकेटमार का रोल निभाया. लेकिन युवा होते एशियन कुआन को हॉलीवुड में काम मिलना मुश्किल होता गया. आखिर उन्होंने एक्टिंग छोड़ी. फिर कुछ फिल्मों में स्टंट कोरियोग्राफर का काम किया. करीब दो दशक बाद 2018 में कुआन एक्टिंग की तरफ लौटे. 'क्रेजी रिच एशियन्स' की कामयाबी ने उन्हें प्रेरित किया और अब तक हॉलीवुड में थोड़ा मौहाल भी बदल चुका था. और अब देखिए वो ऑस्कर जीत चुके हैं.
अभी इंग्लैंड में गैरी लिनेकर की खबर सुर्खियों में है. गैरी ने अंग्रेजी सरकार की नई शरणार्थी नीति में भेदभाव को लेकर आलोचना की तो उन्हें बीबीसी में स्पोर्ट्स शो 'मैच ऑफ द डे' को होस्ट करने से रोक दिया गया. एक फुटबॉलर रह चुके गैरी इस शो को 25 साल से होस्ट कर रहे थे. लेकिन गैरी के खिलाफ बीबीसी के एक्शन की जमकर आलोचना हुई. दूसरे शो के होस्ट, खिलाड़ी और सहकर्मियों ने काम का बहिष्कार किया और आखिरकार बीबीसी को झुकना पड़ा. गैरी फिर से अपना शो करेंगे.
म्यांमार की रोहिंग्या शरणार्थी तस्मिदा को ही लीजिए. 2005 में म्यांमार की हिंसा और उत्पीड़न से बचने के लिए भागकर बांग्लादेश पहुंचीं. तब उम्र थी महज 6 साल. फिर 2012 में बांग्लादेश से भी भागना पड़ा. तस्मिदा को दो बार नाम बदलना पड़ा, दो बार देश बदलना पड़ा. भारत में दसवीं की पढ़ाई की और फिर एक निजी स्कूल से 11वीं और 12वीं की पढ़ाई की. फिर तस्मिदा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. तस्मिदा पहली महिला रोहिंग्या ग्रैजुएट हैं.
मौका मिले तो क्या नहीं हो सकता है!
गैरी 'मैच ऑफ द डे' फिर 'खेल' सकते हैं.
तस्मिदा हिंसा के अंधकार से निकलकर शिक्षा की रौशनी देख और दिखा सकती हैं
जान बचाकर भागे कुआन ऑस्कर जीत सकते हैं.
बस थोड़ी सी नीयत, जुर्रत की जरूरत है.
बेहद सख्त जरूरत है, क्योंकि जिस वक्त मैं ये लिख रहा हूं उस वक्त UNHCR के मुताबिक दुनिया में 49 लाख लोग शरण मांग रहे हैं. 3.2 करोड़ लोग शरणार्थी हैं. इन जख्मी लोगों को मरहम देने के बजाय, सीरिया, वेनेजुएला, अफगानिस्तान और सूडान के पीड़ित-दमित लोगों की मदद करने के बजाय दुनिया नए-नए 'यूक्रेन' पैदा कर रही है. कोई देश एक धर्म से दूरी बनाने के चक्कर में रोहिंग्याओं से मुंह फेर लेता है तो कोई देश अपने ऐशो आराम में रत्ती भर कटौती के डर से दो निवाले साझा करने को तैयार नहीं.
तस्मिदा, कुआन की कहानी बताती है कि सियासी साजिशों और तानाशाहों की सनक से जो शरणार्थी बने हैं उनमें भी वही बात है जो किसी सर्व सुविधा संपन्न अमेरिकी परिवार के बच्चों में है. बस मौका मिलने की बात है. इन्हें मौका देना मानवता को मौका देना है. जिन देशों ने जरूरतमंद शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे बंद कर रखे हैं, वो अपने दिल और दरवाजे खोलकर तो देखें.
दुनिया में करीब दस करोड़ लोग इस वक्त जबरन विस्थापित बना दिए गए हैं, इनमें से हर शख्स कुआन बन सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)