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राहुल देव बर्मन के बारे में बात करने पर सबसे पहले यही दिमाग में आता है कि वह अपने समय से बहुत आगे थे. उन्होंने संगीत सृजन को ही अपनी सोच बना लिया था. एक ऐसी सोच, जिसमें वे हमेशा कुछ हटकर करने की कल्पना करते थे और फिर उस कल्पना को पूरी शिद्दत से साकार भी करते थे.
बर्मन ने काफी प्रयोग किए. इन प्रयोगों को उन्होंने बिना किसी हिचक के फिल्म संगीत में उतारा भी. उन्होंने कई नए साउंड्स का इस्तेमाल किया और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में वे दबे पांव एक संगीत क्रांति ले आए. संगीत सृजन में जरा बोतल, कप, बर्तन या फिर गरारा करने की आवाज के इस्तेमाल की कल्पना कीजिए. आरडी बर्मन ने इन सब आवाजों को हिंदी गानों का हिस्सा बना दिया. ये सब गाने आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं. इस तरह की चीजों को करने के लिए आपको एक खास तरह की जहीनियत चाहिए होती है.
हिंदी फिल्मों का संगीत हमेशा आरडी बर्मन का ऋणी रहेगा, क्योंकि उन्होंने लेटिन अमेरिकी, अरबी और कई अन्य देशों के संगीत की खासियतों को हिंदी गानों में उतारा. अपने साथी संगीतकारों से अलग आरडी बर्मन का संगीत आज भी सामयिक है. सच तो यह है कि आज जितने भी लोग संगीत बना रहे हैं, वे किसी न किसी स्तर पर आरडी बर्मन से प्रभावित हैं.
अगर आपने ‘शान’ फिल्म का उनका गाया गीत ‘यम्मा यमां’ या फिर ‘शोले’ का ‘महबूबा महबूबा’ सुना होगा, तो आप जानते होंगे कि उनकी आवाज थोड़ी भारी थी. आमतौर पर कोई भी इस आवाज में गाने वाले पर आवाज उठाता. पर बर्मन ने न सिर्फ पूरे यकीन के साथ गाया, बल्कि उनके गाने सराहे भी गए. यही यकीन उनकी ताकत था. वे गाने कोई आकस्मिक सफलता नहीं थे. वे गाने कल भी हिट थे, आज भी हिट हैं.
कई बार वे अपनी धुनों को मोड़ देते थे या उनका हुक इस्तेमाल करते थे. यही चीजें उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करती थीं. वे एक गाने के लिए दुनिया भर के इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल भी करते थे, तो कभी बस मामूली से वाद्यों पर भी संगीत तैयार कर लेते थे. एक छोर से दूसरे छोर तक जाना उनके लिए बड़ी बात नहीं थी.
बर्मन के जादू का अंदाजा हम उनके गाने ‘मोनिका...’ से लगा सकते हैं. पुराना होने के बावजूद भी आपको यह गाना पुराना नहीं लगता. आप आज भी इसकी धुन पर आसानी से थिरक उठते हैं, क्योंकि आपको लगता है कि यह गाना आपकी पीढ़ी का ही है. बर्मन का संगीत कालजयी है.
वे जैसे हिंदी फिल्मों के संगीत के अमिताभ बच्चन हैं. जब आप अमिताभ की कोई फिल्म देखते हैं तो वे आपको किसी दूसरी पीढ़ी के नहीं लगते, वे आपको अपने समय के ही लगते हैं. आरडी बर्मन की क्षमता भी वही है.
अगर आप एक संगीतकार हैं, तो उनके प्रभाव से बचना आपके लिए बेहद मुश्किल है. यहां तक कि अगर आप उनकी धुनों और उनके साउंड्स की नकल नहीं भी कर रहे हैं, तो भी आप कहीं गहराई से उनसे प्रभावित हैं. आखिर हम सब उनका संगीत सुनकर बड़े हुए हैं.
मैंने बहुत कहानियां सुनी हैं उनकी दरियादिली की, उनकी जिंदादिली की, जिस तरह वे लोगों को खुश रखते थे, खाना पकाते थे... उनके सारे दोस्त बताते हैं. मैंने गुलज़ार साहब के साथ काम किया है, उन्होंने कई बार मुझसे कहा कि अगर आरडी बर्मन आज जिंदा होते, तो मुझसे मिलकर खुश होते. मेरे लिए यह सुनना ही बहुत बड़ी बात है. काश मैं उनसे मिल पाता और उन्हें बता पाता कि मैं उन्हें कितना ज्यादा पसंद करता हूं.
(रंजीब मजूमदार को जैसा बताया गया.)
Twitter: @RanjibMazumder
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