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मेरे पिता अमजद खान न केवल मेरे पिता थे बल्कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त भी थे. 27 जुलाई 1992 को उनका देहांत हो गया लेकिन लोगों के दिलों में वो आज भी गब्बर बनकर जिंदा हैं. एक तरह से फिल्म शोले के रिलीज होने के बाद अमजद का दोबारा नामकरण हो गया और लोग उन्हें गब्बर के नाम से ही जानने और पुकारने लगे.
उनका बेटा होने के नाते और उनका एक बहुत बड़ा प्रशंसक होने के नाते आज जबकि वो हमारे बीच मौजूद नहीं है मैं दुखी होकर उन्हें याद नहीं करना चाहता. न ही उनके साथ गुजरे मेरे बचपन के दिनों को याद करके. न ही उनके साथ गुजरे मेरे वक्त की कहानियां सुनाना चाहता हूं.
मैं उनके बारे में कुछ ऐसी बातें बताना चाहता हूं जो कम ही लोगों को पता होंगी. मैं आपको ये बताना चाहता हं कि वो कितने बेहतरीन इंसान थे. ये वाकया उन्हीं की एक फिल्म के सेट पर हुआ था. वो 80 का दौर था और अमजद खान का नाम खलनायकों की सूची में शीर्ष पर था.
ये बात 80 के दौर की है जब उस समय के एक नामचीन और बहुत बड़े निर्माता को एक मेगा बजट फिल्म का निर्देशन करने का काम सौंप दिया गया. इस फिल्म में उस दौर के लगभग सभी सुपरस्टार थे. एक नौसिखिया निर्देशक के लिए ये काफी मुश्किल की घड़ी थी.
फिल्म में काम कर रहे सभी कलाकार सुपरस्टार थे और वो ये जताने में कोई कसर भी नहीं रखते थे. शूट के टाइम से 5-6 घंटे लेट आना, संवाद बदल देना, अपने सीन भी खुद ही लिख देना.
डायरेक्टर और उसके कहे की कोई परवाह नहीं करना. बेचारा डायरेक्टर...बिल्कुल बेसहारा हो गया था.लगभग दो सप्ताह तक सबकुछ ऐसा ही चला.
डायरेक्टर बेचारा जितना कुछ झेल सकता था और चीजों को संभाल सकता था, उसने उतना किया. पर एक दिन उसकी हिम्मत जवाब दे गई और वो एक अंधेरे कोने में बैठकर आंसू बहाने की स्थिति में पहुंच गया.
मेरे पिता भी उस फिल्म का हिस्सा था और शायद एकमात्र ऐसे शख्स भी जिसने उस नए डायरेक्टर को किसी भी तरह से परेशान नहीं किया था. वो उस डायरेक्टर के पास पहुंचे और उसके रोने का कारण पूछा.
उसने रोते हुए ही मेरे पिता से कहा कि इन सुपरस्टार्स को संभाल पाना संभव ही नहीं हो पा रहा है.“मैं ये फिल्म छोड़ने जा रहा हूं अमजद भाई. मैं और ये सबकुछ नहीं संभाल सकता. मैं ये फिल्म छोड़ रहा हूं.”
हालांकि उस निर्देशक के मन में कई सवाल और चिंताएं थी फिर भी वो मेरे पिता की योजना के अनुसार काम करने के लिए तैयार हो गया. अगले दिन मेरे पिता सेट पर 7 घंटे लेट पहुंचे. उस वक्त तक बाकी कलाकर पहुंच चुके थे.
जैसे ही उन्होंने सेट पर कदम रखा निर्देशक ने योजना के अनुसार उन पर चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया. मेरे पिता जी सबके सामने सिर झुकाकर डायरेक्टर की फटकार सुनते रहे.
उसके अगले दिन और उसके बाद पूरी फिल्म बनने तक सारे कलाकर ठीक समय पर सेट पर पहुंच जाया करते थे और डायलॉग्स और सीन्स को भी निर्देशक के अनुसार ही निभाते थे. फिल्म रिलीज हुई और सुपरहिट साबित हुई. फिल्म के साथ ही उस निर्देशक की छवि सबसे कठोर निर्देशक की बन गई. साथ सिनेमा के जीनियस की भी.
वो अमजद खान के उस व्यवहार को कभी नहीं भूले कि कैसे एक नामचीन कलाकार ने एक नौसिखिये डायरेक्टर को सम्मान दिलाने के लिए खुद बेइज्जत होना स्वीकार किया था.उनकी जिन्दगी का ये एक और वाक्या है जो उनकी मौत के कुछ महीनों पहले ही घटा था.
एक चैरिटेबल संस्था द्वारा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया था. मैं और पापा वहीं एक ऑडिटोरियम में थे. इंडस्ट्री के ज्यादा कलाकार वहां मौजूद नहीं थे. कुछ एक ही थे. इसके अलावा दूसरी जगहों के गणमान्य लोग, राजनेता मौजूद थे.
वहीं एक कलाकार हमसे कुछ दूरी पर बैठा हुआ था. जोकि बहुत जल्दी ही इंडस्ट्री का चमकता हुआ सितारा बनने वाला था. उस वक्त तक उसकी फिल्म रिलीज नहीं हुई थी. कोई उसे पहचान नहीं रहा था जिस वजह से वो खुद को काफी असहज महसूस कर रहा था.
उस युवा कलाकर की इस परेशानी को वहां मौजजूद किसी शख्स ने शायद ही नोटिस किया हो लेकिन पिताजी ने ये बात देखी. उन्होंने उसकी मदद करने का फैसला किया. ऐसे में जब भी कोई पिता जी से ऑटोग्राफ लेने आता वो उन्हें उस युवा कलाकार की ओर इशारा करते हुए कहते मेरा ऑटोग्राफ लेने के बजाह उनका ऑटोग्राफ लीजिए.
ये शख्स बहुत जल्दी ही इंडस्ट्री का सुपरस्टार बनने वाला है. तब उनका ऑटोग्राफ लेना मुश्किल हो जाएगा. समारोह खत्म होने के करीब था और वो युवा कलाकर सौ से ज्यादा ऑटोग्राफ साइन कर चुका था.
उस समय का वो युवा कलाकार आज इंडस्ट्री के सुपरस्टार्स में से एक है लेकिन खुद उस शख्स को भी नहीं पता होगा कि उसने अपने पहले सौ ऑटोग्राफ डकैत गब्बर सिंह की वजह से साइन किए थे.
(लेखक शादाब खान अभिनेता अमजद खान के बेटे हैं)
ये आर्टिकल पहली बार 27 जुलाई को 2015 को पब्लिश हुआ था, आज अमजद खान के जन्मदिन के मौके पर दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.
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