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देश को आजाद हुए कुछ महीने ही बीते थे. देश बदल रहा था, समाज बदल रहा था. मुंबई में एक शाम एक नौजवान कवि सम्मेलन में अपनी कविताएं सुना रहा था. कार्यक्रम खत्म होते ही पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा. उसी भीड़ में से निकलकर सुपरस्टार राज कपूर उस नौजवान के पास पहुंचे और उससे अपनी फिल्म के लिए गाना लिखने की फरमाइश कर डाली.
लेकिन उस नौजवान ने तुरंत ये कहकर प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि मैं अपनी कविताओं का कारोबार नहीं करता. वो नौजवान था शंकरदास केसरीलाल, जो बाद में महान गीतकार शैलेंद्र नाम से चर्चित हुआ.
शैलेंद्र का जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में 30 अगस्त, 1923 को हुआ था. उनका असली नाम था शंकरदास केसरीलाल. उनका परिवार रावलपिंडी छोड़कर मथुरा आ बसा था. विस्थापन का दर्द दिल में लिए पहले मथुरा और फिर काम की तलाश में वो मुंबई पहुंचे, जहां उन्होंने रलवे में एक छोटी सी नौकरी कर ली.
शैलेंद्र के गीतकार बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. कहा जाता है कि राजकपूर को वो पहले इनकार कर चुके थे. लेकिन बीमार पत्नी के इलाज के लिए जब पैसों की तंगी आई, तो वो उनसे पैसे उधार मांगने गए. राजकपूर ने उनको पैसे दे दिए और जब कुछ महीनों के बाद शैलेंद्र उन्हें पैसे वापस करने गए, तो राज कपूर ने उनसे कहा कि अगर आप कर्जमुक्त होना चाहते हैं, तो मेरे लिए गाने लिखें. उसके बाद शैलेंद्र ने राजकपूर की फिल्म बरसात के लिए गाना लिखा.
बरसात के बाद शैलेंद्र, राज कपूर और शंकर जयकिशन की ऐसी जोड़ी जमी, जो सालों तक चली. राज कपूर की करीब हर फिल्म के गीतकार शैलेंद्र ही हुआ करते थे, उन्होंने एक से नायाब गीत लिखे, जो जिंदगी की सच्चाई से भी रूबरू कराते हैं. इसके बाद तो शैलेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
शैलेंद्र के शब्द और शंकर जयकिशन के संगीत ने उस दौर में बॉलीवुड को ऐसे नगमे दिए, जो सदियों तक याद रखे जाएंगे.
जीवन की सच्चाई हो या प्रेम के तराने, बॉलीवुड में शैलेंद्र का सिक्का चलने लगा था. साधारण शब्दों में बड़ी-सी बात कर देना शैलेंद्र की खासियत थी. उनके गाने ना सिर्फ हिंदुस्तान में गूंजे, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों ने उनके गानों को पसंद किया. उनका गाना आवारा हूं, भारत में ही नहीं बल्कि रूस के लोगों के लिए भी एंथम जैसा बन गया था.
सैकड़ों गानों में शैलेंद्र की कलम का जादू चला. उनके गानों की वजह से फिल्में अमर हो गईं. आसान शब्दों में वो ऐसी बातें कह जाते थे, जो बड़े-बड़े भाषणों में भी नहीं समझाया जा सकता. मेरा जूता है जापानी... सिर पर लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी.. इस गाने के जरिए शैलेंद्र ने लाखों-करोड़ों देशवासियों को अपने हिंदुस्तानी होने पर गर्व का एहसास कराया.
देवानंद की फिल्म गाइड के सफल होने के पीछे इसके गानों का अहम रोल था. गाइड के गीतों ने नई पीढ़ी की तमन्नाओं को पंख लगा दिए थे.
सालों तक गाने लिखने के बाद शैलेंद्र कुछ नया करना चाहते थे. अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने फणीश्वर नाथ 'रेणु' की कहानी पर तीसरी कसम फिल्म बनाने का फैसला किया. फिल्म निर्माण से उनका पहली बार वास्ता पड़ा था. तीसरी कसम बनाने में करीब 5 साल लग गए, इस फिल्म के निर्माण की वजह से वो कर्ज में डूब गए.
फिल्म तो बेहतरीन बनी थी और इसके गाने एक से बढ़कर एक थे, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर नाकाम हो गई. विफलता से शैलेंद्र इतने आहत हुए कि वो ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए. फिल्म के रिलीज के एक साल बाद 14 दिसंबर, 1966 को सिर्फ 43 साल की उम्र में ये दुनिया छोड़ गए.
(नोट: ये आर्टिकल पहली बार 30 अगस्त 2017 को पब्लिश हुआ था.)
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