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महाभारत धारावाहिक में अब तक के एपिसोड में आपने देखा, श्रीकृष्ण, द्रौपदी और पांडवों के बीच संवाद होता है. कृष्ण कहते हैं पांडवों से, अब निर्णय लेना है. द्रौपदी कहती है कि ये क्या निर्णय लेंगे. इन्हें तो मेरे खुले कैश दिखाई नहीं देते निर्णय तो मैं लूंगी. ऐसा कहकर द्रौपदी युद्ध का शंख बजाती है.
भीम के क्रोध करने पर कृष्ण उनसे कहते हैं कि अभी ये क्रोध करने का समय नही है आप सेनापति हैं तो सेनापति जैसा व्यवहार करें. आप ये सोचिए की दुर्योधन की सेना आपकी सेना से काफी बड़ी हैऔर आपको ये सोचकर तो थोड़ा और गंभीर हो जाना चाहिए कि उनकी सेना का मार्गदर्शन गंगापुत्र भीष्म कर रहे हैं.
द्रौपदी को वो सारे पल याद आ रहे हैं जब दुर्योधन के कहने पर उसके बाल पकड़कर उसे जबरन राजसभा में लाया गया था. द्रौपदी पुरानी बातों को याद कर काफी ज्यादा भावुक हो जाती है और कौरवों के प्रति उसके गुस्से की आग को और ज्वाला मिलती है.
दुर्योधन, शकुनि, दु:शासन, कर्ण और गांधार नरेश उलूक के बीच युद्ध को लेकर चर्चा होती है. शकुनि की सलाह पर पांडवों के पास उलूक को दूत बनाकर भेजा जाता है. दूत दुर्योधन का संदेश सुनाता है और कहता है कि युद्ध में मायावी नहीं बाहुबल काम आता है. वह कहता है कि तुम लोग नपुंसक हो नपुंसक. वह संदेश सुनाते हुए कहता है कि अज्ञातवास भंग होने पर तुम लोगों को फिर से वनवास चले जाना चाहिए.
श्रीकृष्ण दूत के माध्यम से कौरवों को संदेश भिजवाते हैं. संदेश के माध्यम से कृष्ण कहलवाते हैं कि तुम दुर्योधन से जाकर कहना कि तुम क्षत्रिय के भांति जी तो नहीं सके किंतु क्षत्रिय के भांति वीरगति को प्राप्त होने का उसके पास मौका है. वहीं दुर्योधन अपनी माता से आशीर्वाद मांगने जाता है.
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