Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Entertainment Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Tv Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गया ‘सास-बहू’ का जमाना, क्यों टीवी पर हिट हुआ नाग-नागिन का फसाना?

गया ‘सास-बहू’ का जमाना, क्यों टीवी पर हिट हुआ नाग-नागिन का फसाना?

क्यों ‘नागिन’ के सम्मोहन में कैद है पूरा देश?

आकांक्षा सिंह
टीवी
Updated:
क्यों हिट है नागिन?
i
क्यों हिट है नागिन?
(फोटो: ट्विटर)

advertisement

नागपंचमी का त्यौहार देश भर में मनाया जा रहा है. कोई सांपों की पूजा कर रहा है तो कोई उनके लिए दूध परोस रहा है. देश में नाग-नागिन पर आस्था की परंपरा रही है, फिर चाहे वो भगवान विष्णु के शेषनाग हों, या भगवान शिव के गले में लिपटे वासुकी नाग. वैसे नाग-नागिन आजकल आस्था के अलावा इंडियन टेलीविजन पर भी खूब पाए जाते हैं. और अब तो छिपकिली भी आ गई है. इन सीरियलों को छप्पर फाड़ टीआरपी मिलती है. आखिर क्या वजह है कि कल्पना की इस दुनिया में दर्शक खो जाते हैं?

नागिन के सम्मोहन में पूरा देश!

एक ‘नागिन’ ने कलर्स चैनल को नंबर 1 का ताज दे दिया. जब एकता कपूर ‘नागिन’ का सीजन वन लेकर आईं तो रातों रात एंटरटेनमेंट चैनलों का गणित बदल गया. कुछ ही समय पहले ‘नागिन’ ने तीसरा सीजन पूरा किया. इस सीरियल की लोकप्रियता का आलम ये है कि अब जल्द ही इसका चौथा सीजन भी आने वाला है.

नागिन का तीसरा सीजन, BARC (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया) रेटिंग में लगातार कई हफ्ते तक नंबर बन पर कुंडली जमाए रहा. टीवी पर आने वाले सभी सुपरनैचुरल शो में 'नागिन' को सबसे ज्यादा देखा और पसंद किया गया.

(BARC)

परदे पर अरसे से कुंडली जमाए हैं नाग-नागिन

वैसे ऐसा नहीं है कि ‘नागिन’ इकलौता शो है. नाग-नागिन भारतीय टीवी और सिनेमा के परदे पर एक अरसे से कुंडली मारे बैठे हैं. टीवी पर इसकी शुरुआत ड्रामा सीरियल 'ससुराल सिमर का' से हुई थी. सास-बहू का ड्रामा दिखाने वाले इस शो में जब सारा खान नागिन बन कर आईं थीं, तब शो की टीआरपी में बड़ा उछाल देखने को मिला था. इसके बाद ही टेलीविजन क्वीन एकता कपूर 'नागिन' शो लेकर आईं, और फिर इसके बाद तो जैसे टीवी पर इस तरह के शो की बाढ़ ही आ गई.

1986 में आई ऋषि कपूर और श्रीदेवी की फिल्म ‘नगीना’ और 1989 में श्रीदेवी और सनी देओल की फिल्म ‘निगाहें’ सुपरहिट हो चुकी हैं.
धारावाहिक ‘नागिन’ का पहला सीजन आते ही कलर्स बन गया था नंबर-1 एंटरटेनमेंट चैनल(फोटो: वीडियो स्क्रीनग्रैब)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

क्यों हिट है टीवी पर नाग-नागिन?

'हिटलर दीदी', 'एक मुट्ठी आसमान', '12/24 करोल बाग' और 'डिटेक्टिव दीदी' जैसे सीरियल लिख चुके मशहूर लेखक सत्यम त्रिपाठी के मुताबिक, 'नागिन' जैसे शो सिर्फ ग्रामीण ही नहीं, बल्कि शहरों में भी पसंद किए जाते हैं. ऐसे शो पूरी रिसर्च के बाद बनाए जाते हैं और खास टारगेट ऑडियंस के लिए होते हैं. इनकी अपनी ऑडियंस सेट है, जो शहर और गांव दोनों में है.

ये ताज्जुब करने वाली बात क्यों है, मेरी समझ नहीं आता. ये भी एक तरह का कंटेंट है. आपको ये मानना पड़ेगा कि यही उनका कंटेंट है, इसकी भी ऑडियंस है और मेजॉरिटी में है. इस कंटेंट में वो सारी चीजें हैं जो एक अच्छे शो में होनी चाहिए. ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ और नागिन शो की कहानियां एक ही हैं, ट्विस्ट और टर्न भी वही हैं, बस फर्क प्रोडक्शन लेवल का है.
सत्यम त्रिपाठी, राइटर

सत्यम कहते हैं कि इन शोज के चलने का बड़ा कारण ये भी है कि ये एस्केप (बचने) का एक जरिया हैं. ऐसे शो आपको एक अलग दुनिया में ले जाते हैं, जो आपकी रोजाना की जिंदगी से बहुत अलग हैं. सीमित दायरे में जीवन जीने वाले लोगों के लिए ये शोज एक अलग ही दुनिया हैं. इसके किरदार आम जीवन से काफी अलग हैं, जिससे दर्शक आकर्षित होते हैं.

‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ और नागिन शो की कहानियां एक ही हैं, ट्विस्ट और टर्न भी वही हैं(फोटो:Twitter)

हमारी अधूरी कहानी...

टेलीविजन की सबसे बड़ी ऑडियंस महिलाए हैं, और इस तरह के शो की भी. कहीं ऐसा तो नहीं कि समाज में दबाई जाने वालीं महिलाएं इन सीरियलों में अपनी आकांक्षाएं पूरी होती देखती हैं?

छोटे शहरों की ऑडियंस को ये कैरेक्टर अट्रैक्ट कर रहे हैं. महिलाएं इन किरदारों में अपनी आकांक्षाएं देख रही हैं, उन्हीं में अपनी कुंठित अभिलाषा भी देखती हैं.
सत्यम त्रिपाठी, राइटर
इन सीरियलों में जो हमारे अंदर के बेसिक इंस्टिंक्स होते हैं, उनको बढ़ावा मिलता है, तो वो कहीं न कहीं ऑडियंस को थ्रिल करता है.
अजय ब्रह्मात्मज, क्रिटिक

मशहूर फिल्म क्रिटिक अजय ब्रह्मात्मज का ये भी कहना है कि नाग-नागिन की कहानियां हमारे किस्से-कहानियां का हमेशा से हिस्सा रहे हैं. जब यहीं चीजें परदे पर शानदार ग्राफिक्स और एनिमेशन के साथ दिखती हैं तो रोमांच कई गुना ज्यादा हो जाता है.

हमारी पौराणिक कहानियों में, जिसे प्रचलित विश्वास या अंधविश्वास कहते हैं, नाग-नागिन की कथा और इस तरह की बहुत सारी किवदंतियां चलती रहती हैं. और हम उन चीजों के प्रति बहुत आकर्षित रहते हैं. नाग-नागिन बदला लेते हैं, उसका मानवीकरण हो जाता है. वो मनुष्य के तौर पर दिखाई पड़ते हैं. कथाओं में वो सांप ही रहते हैं, लेकिन जब टीवी-फिल्मों में आते हैं तो मनुष्य भी बन जाते हैं.
अजय ब्रह्मात्मज, क्रिटिक
साल 1986 में आई ऋषि कपूर और श्रीदेवी की फिल्म ‘नगीना’ सुपरहिट रही थी(फोटो: नगीना फिल्म पोस्टर)

अजय कहते हैं कि टीवी सीरियलों में मेकर्स भले नाग-नागिन का रूप गढ़ते हों, लेकिन उनकी कहानी वही छल-कपट और बदले वाली रहती है. 'आम जिंदगी और आम सीरियलों का मसाला यही है और इन्हीं पर कहानी चलती है, सिर्फ रूपक बदल दिया जाता है.'

टीवी पर सास बहू का झगड़ा, परिवार की पॉलिटिक्स सुपरहिट थीम रही है. नाग नागिन के सीरियलों में भी ये मोहब्बत, अदावत, नफरत, जलन और सस्पेंस होती है. फैमिली पॉलिटिक्स होती है, इमोशनल ड्रामा होता है. यानी पहले से ही एक हिट फॉर्मूले में माइथोलॉजी और हॉरर का मसाला भी डाल दिया जाता है. नतीजा बंपर टीआरपी.

रियल लाइफ में गलत, रील लाइफ में सही

साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक, अपनी आम दुनिया से कुछ भी अलग दिखने वाला, लोगों को पसंद आता है. लाइव मिंट की एक रिपोर्ट में, साइकैट्रिस्ट संजय चुघ कहते हैं कि इस तरह के शो में बदला, जलन, गुस्से की भावना दिखाई जाती है. ऐसी भावनाओं को हम दबा देते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि वो गलत है. लेकिन इस तरह के शो में जब इन भावनाओं को दिखाया जाता है, तो शायद वो हमारी उन दबी भावनाओं को बाहर निकलने का एक रास्ता दे देता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 04 Aug 2019,04:52 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT