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ऐसा लगता है कि इन स्पाई थ्रिलर्स से हाल-फिल्हाल में तो छुटकारा नहीं मिलने वाला है. इमरान हाशमी की डेब्यू वेब सीरीज 'बार्ड ऑफ ब्लड' नेटफ्लिक्स पर 27 सितंबर यानी आज स्ट्रीम हो रही है . इस वेब सीरीज को बिलाल सिद्दीकी, जिन्होंने इसी नाम की किताब लिखी है (जिसपर सीरीज आधारित है) ने मयंक तिवारी के साथ मिलकर लिखा है और रिभु दासगुप्ता ने डायरेक्ट किया है.
ये एक स्पॉलयर फ्री रिव्यू है, इसलिए हम सिर्फ ऊपरी प्लॉट के बारे में बात करेंगे. तालिबान ने चार भारतीयों को बंधक बना लिया है और उन्हें छुड़ाने के रेस्क्यू मिशन पर एक भारतीय जासूस को भेजा जाता है.
लेकिन ये कौन है? इस बार ये एडोनिस है- कबीर आनंद यानी कि इमरान हाशमी का कोड नेम. लेकिन हम ये सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि उनका नाम एडोनिस क्यों है? इस सीरीज में शेक्सपियर का काफी जिक्र है, फिर चाहे वो एडोनिस नाम हो, उनकी कविताएं या फिर एपिसोड्स के नाम. बल्कि... कबीर आनंद जब लोगों को बचा नहीं रहा होता है उस समय में वो बच्चों को शेक्सपियर पढ़ा रहा होता है.
कबीर की मां को शेक्सपियर पढ़ना कितना पसंद है, इसके अलावा कबीर के परिवार और बैकग्राउंड के बारे में व्यूअर को कोई जानकारी नहीं दी जाती.
'बार्ड ऑफ ब्लड' की खासियत उसकी कास्टिंग में है. कबीर आनंद के तौर पर इमरान हाशमी की परफॉर्मेंस शानदार है. अपने दोस्त को बचाने में नाकाम हो रहे आनंद के तौर पर अपनी दुख और तकलीफ को इमरान ने काफी अच्छे से बयां किया है. अपने देश वापस जाने को बेताब एक अंडरकवर एजेंट के रूप में विनीत कुमार और बलोच फ्रीडम फाइटर के रूप में कीर्ति कुल्हाड़ी ने बहुत अच्छी परफॉर्मेंस दी है. जयदीप अहलावत, सोहम शाह, शिशिर शर्मा और दानिश हुसैन ने भी अपने-अपने रोल के साथ जस्टिस किया है.
सीरीज जहां बोर करती है वो है उसकी कहानी. कई बार इसकी कहानी एकदम फिल्मी हो जाती है. हालांकि आखिरी 3 एपिसोड्स में सारा एक्शन होता है. आखिरी एपिसोड से साफ है कि इसका अगला सीजन भी आएगा. अच्छी परफॉर्मेंस और आखिरी एपिसोड्स के एक्शन के लिए 'बार्ड ऑफ ब्लड' देखी जा सकती है.
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