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अर्जुन रामपाल की आने वाली फिल्म 'डैडी' आजकल खूब सुर्खियां बटोर रही है. यह फिल्म गैंगस्टर अरुण गवली की लाइफ पर आधारित है.
ऐसे में गवली के बारे में उत्सुकता पैदा होना स्वाभाविक है. ऐसा क्या खास था गवली में कि उस पर फिल्म बना दी गई. चलिए, आपको मुंबई के डॉन अरुण गवली से मिलवाते हैं, जो आगे चलकर नेता बन गया.
1990 में जब मुंबई में गैंगवार जोरों पर था, तब इन गैंगस्टरों के बीच अरुण गवली ही था, जो मुंबई छोड़कर नहीं गया. गवली का जन्म 4 सितंबर, 1955 को कोपारगांव में हुआ था. अरुण के पिता मिल में काम करते थे. जब अरुण थोड़ा बड़ा हुआ, तो उसने अपने पिता की मदद करने का फैसला किया और फैक्ट्री में नौकरी करने लगा.
लेकिन कुछ समय बाद गवली को यह अहसास हुआ कि वो यह काम करने के लिए नहीं पैदा हुआ है. यह एहसास होते ही वह वापस घर आ गया.
चॉल वापस आते ही गवली की दोस्ती दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन से हुई. इनकी दोस्ती कुछ समय तक तो ठीक चली, लेकिन फिर गवली के पिता और भाई एक गैंगवार का शिकार हो गए. इसके बाद उसने अपना गैंग बनाने का फैसला किया. इसके साथ ही दाऊद और गवली की दुश्मनी का दौर शुरू हो गया.
अरुण गवली को एक 'नपा-तुला' गैंगस्टर माना जाता था. गवली बिजनेसमैन और नेताओं को टारगेट बनाता था.
खबरों की मानें, तो जब मुंबई पुलिस ने गैंगवार से तंग आकर सभी गैंग का सफाया करने की सोची, तब दाऊद तो दुबई भाग गया, मगर गवली मुंबई में ही रहा. गवली ने 'अखिल भारतीय सेना' नाम से अपनी पार्टी बनाकर चिंचपोकली से इलेक्शन लड़कर विधायक बन गया.
एक समय था, जब शिवसेना गवली का सपोर्ट करती थी. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने एक रैली में यहां तक कह दिया था कि अगर पाकिस्तान के पास दाऊद है, तो भारत के पास गवली है. लेकिन गवली की ताकत बढ़ने के बाद शिवसेना और गवली के रिश्तों में दरार आ गई.
फिर एक दिन गवली के गैंग ने शिवसेना के कॉरपोरेटर कमलाकर की हत्या कर दी. इस तरह शिवसेना ने गवली के साथ अपने सारे संबंध तोड़ दिए. इस हत्याकांड में गवली अभी भी जेल में सजा काट रहा है.
देखें 'डैडी' का ट्रेलर
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