Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Entertainment Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019आखिर बॉलीवुड को गोरे रंग पर ही इतना गुमान क्‍यों हैं?

आखिर बॉलीवुड को गोरे रंग पर ही इतना गुमान क्‍यों हैं?

रंगभेद के मुद्दे पर ही एक्टर-डायरेक्टर अक्षय कुमार सिंह ने एक फिल्म बनाई थी

स्मिता चंद
एंटरटेनमेंट
Published:
फिल्मों में हीरो-हीरोइन गोरे ही क्यों?
i
फिल्मों में हीरो-हीरोइन गोरे ही क्यों?
(फोटो: फिल्म स्टिल)

advertisement

अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के एक ट्वीट ने बॉलीवुड में फैले रंगभेद की सच्चाई को एक बार फिर सामने ला दिया है. नवाज ने हाल ही में अपने एक ट्वीट में लिखा, ‘शुक्रिया मुझे याद दिलाने के लिए कि मैं गोरे और हैंडसम लोगों के साथ काम नहीं कर सकता, क्योंकि मैं गुड लुकिंग नहीं हूं.’

ये सिर्फ बॉलीवुड की ही कहानी नहीं है. कई बार ऐसे किस्से सामने आते हैं, जिससे पता चलता है कि अब भी हमारा देश इस असमानता से उबर नहीं पाया है. जाहिर है, बॉलीवुड भी इससे अछूता नहीं है.

ऐसे में सवाल ये है कि आखिर बॉलीवुड के लिए गोरा होना इतना जरूरी क्यों हैं? नवाज के इस ट्वीट की वजह ये बताई जा रही है कि डायरेक्टर संजय चौहान ने कहा था कि हम नवाजुद्दीन के साथ किसी गुड लुकिंग एक्टर को कास्ट करेंगे, तो बेहद अजीब लगेगा. 

नवाज जैसा एक्टर, जिसने लगातार अपनी दमदार अदाकारी से ये साबित कर दिया है कि रंग कोई मायने नहीं रखता, उसे ऐसे भेदभाव का सामना करना पड़ा.

स्टार कल्चर में बसा है रंगभेद?

बॉलीवुड के तमाम बड़े स्टार्स फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन करते हैं और लोगों को एक हफ्ते में गोरा होने का नुस्खा बताते हैं. क्या ये जायज है? इस पर बहस होती आई है, लेकिन इन बहसों का उन स्टार्स पर कोई असर नहीं पड़ा.

रंगभेद के मुद्दे पर ही एक्टर-डायरेक्टर अक्षय कुमार सिंह ने एक फिल्म बनाई थी पिंकी ब्यूटी पार्लर. इस फिल्म को कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. फिल्म की कहानी दो बहनों की है, दोनों का रंग अलग-अलग है. एक दूसरे को जान से भी ज्यादा प्यार करने वाली बहनों के बीच में उनका रंग ही मुसीबतों का तूफान लेकर आता है और उनकी जिंदगी ही बदल जाती है.

क्विंट हिंदी ने बॉलीवुड में रंगभेद पर अक्षय कुमार सिंह से खास बातचीत की.

बॉलीवुड में खासतौर से अभिनेत्रियों का गोरा होना जरूरी माना जाता है. हम लोग सदियों से एक रंग के गुलाम हो गए हैं. हमें लगता है कि गोरा रंग ही सुंदरता का प्रतीक है. इसलिए फिल्मी पर्दे पर हीरो-हिरोइन को भी गोरा ही दिखाने की कोशिश की जाती है. फिल्में ऐसी चीजों को बढ़ावा दे रही हैं, जिसका नतीजा है कि हमारे देश में अरबों का फेयरनेस क्रीम का कारोबार चल रहा है.  
अक्षय कुमार सिंह 

नजर का ऑपरेशन हो सकता है, नजरिए का नहीं

अक्षय अपनी फिल्म के डायलॉग नजर का ऑपरेशन हो सकता है, नजरिए का नहीं को दोहराते हुए कहते हैं कि हमें अपना नजरिया बदलना पड़ेगा.

अक्षय बताते हैं कि किस तरह से जूनियर आर्टिस्ट के साथ रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है. अगर किसी सीरियल या फिल्म में किसी पार्टी के लिए जूनियर आर्टिस्ट की जरूरत होती है, तो रिच लुकिंग आर्टिस्ट बुलाए जाते हैं और रिच लुकिंग का मतलब होता है गोरा रंग. गोरे रंग वाले को ज्यादा पैसे दिए जाते हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

‘हमें फिल्म के लिए गोरी लड़की चाहिए’

अभिनेत्री खुशबू गुप्ता फिल्म पिंकी ब्यूटी पार्लर में लीड एक्ट्रेस हैं. अपनी दमदार अदाकारी के दम पर उन्होंने ये बता दिया कि एक्टिंग के लिए रंग मायने नहीं रखता. खुशबू खुद कई बार रंगभेद की शिकार हो चुकी हैं.

खुशबू कहती हैं कि मैं कई बार ऑडिशन के लिए गई तो मुझे साफ कह दिया गया कि हमें फिल्म के लिए गोरी लड़की चाहिए. अगर गोरा रंग नहीं होने पर भी सलेक्शन होता है तो निगेटिव किरदार दिए जाते हैं या हॉट रोल ऑफर किया जाता है.

कई बार तो ऐसा होता है कि अगर सलेक्ट कर भी लिया जाए, तो उसे निगेटिव किरदार दिया जाता है या हॉट रोल ऑफर किया जाता है.
अपने ‘रंग’ की वजह से कई बार रिजेक्ट हुईं खुशबू (फोटो: फेसबुक/खुशबू
फिल्म हो, सीरियल हो, या कोई एड हो हर जगह गोरी लड़की की ही डिमांड होती है. कई बार तो मेकर्स ये बोलकर रिजेक्ट कर देते हैं कि हमें पंजाबी लड़की का रोल चाहिए. मैं उन लोगों से बोलती हूं क्या मेरे रंग की लड़कियां एक्टिंग नहीं कर सकती हैं? दिक्कत हमारे समाज में है, जो गोरे लोगों को ही सुंदर मानते हैं.
खुशबू गुप्ता

बॉलीवुड-टेलीविजन इंडस्ट्री में ‘रंगभेद’ के हैं कई उदाहरण

कुछ महीने पहले ही कलर्स चैनल के शो कॉमेडी नाइट्स बचाओ में अपनी फिल्म पार्च्ड के प्रमोशन के लिए गई तनिष्ठा चटर्जी का शो में उनके कलर को लेकर मजाक बनाया गया. अपनी सशक्त अदाकारी के लिए तारीफ बटोर रहीं तनिष्ठा को शो पर ‘रंगभेदी टिप्पणियों’ तक का सामना करना पड़ा.

बाद में तनिष्ठा ने खुद फेसबुक पोस्ट के जरिए अपनी नाराजगी शेयर करते हुए बताया था कि कैसे शो में कॉमेडी के नाम पर उनके रंग का मजाक बनाया गया.

तनिष्ठा चटर्जी ने एक रिएलिटी शो में उड़ाया गया था मजाक(फोटो: फेसबुक)

हम आगे बढ़ रहे हैं मानसिकता पीछे जा रही है

बॉलीवुड में तमाम ऐसी अभिनेत्रियां हैं जिन्हें 'गोरी अभिनेत्रियां' नहीं कहा जा सकता. काजोल, शिल्पा शेट्टी, लारा दत्त ऐसी ही अभिनेत्रियां हैं, लेकिन इन्होंने अपनी अदाकारी के दम पर बॉक्स ऑफिस पर नाम कमाया और कई सुपरहिट फिल्में दी हैं.

ऐसे में बॉलीवुड अब भी सबक लेता नजर नहीं आ रहा है, मेकअप और लाइट्स के जरिए ‘गोरा चेहरा’ दिखाने की भूख इस इंडस्ट्री में कम नहीं हुई है. यहां तक कि काजोल, शिल्पा शेट्टी जैसी अभिनेत्रियों की शुरुआती फिल्मों से तुलना करें, तो इनके रंग में भी काफी फर्क नजर आता है.

काजोल की 1993 में आई फिल्म बाजीगर और साल 2015 में आई फिल्म दिलवाले की तुलना करें, तो उनके चेहरे का रंग आपको बदला-बदला नजर आएगा.

काजोल(फोटो: फेसबुक)

कुछ ऐसा ही हाल आपको बिपाशा बसु का भी देखने को मिल सकता है.

बिपाशा बसु(फोटो: फेसबुक)

मतलब साफ है कि समय आगे बढ़ रहा है, लेकिन मानसिकता के लिहाज से या तो हम वही रंगभेद और पुरातनपंथ के साथ खड़े हैं या तो थोड़ा और पीछे चले गए हैं.

(हमें अपने मन की बातें बताना तो खूब पसंद है. लेकिन हम अपनी मातृभाषा में ऐसा कितनी बार करते हैं? क्विंट स्वतंत्रता दिवस पर आपको दे रहा है मौका, खुल के बोल... 'BOL' के जरिए आप अपनी भाषा में गा सकते हैं, लिख सकते हैं, कविता सुना सकते हैं. आपको जो भी पसंद हो, हमें bol@thequint.com भेजें या 9910181818 पर WhatsApp करें.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT