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अमेरिका के केंद्रीय बैंक- फेडरल रिजर्व (America Federal Reserve) ने 2018 के बाद पहली बार अपनी नीतिगत ब्याज दर को 0.25% (25 बेसिस प्वाइंट) से बढ़ा दिया है. फेडरल रिजर्व इस साल छह बार अपने ब्याज दरों में बढ़ाएगा.
इस आर्टिकल में हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिरकार अमेरिकी केंद्रीय बैंक को ब्याज दर में बढ़ोतरी के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा? इससे अमेरिकी लोगों, वहां की राजनीति और वैश्विक वित्तीय बाजार (ग्लोबल फाइनेंसियल मार्केट) पर क्या प्रभाव पड़ेगा? हमारे लिए सबसे अहम सवाल- फेडरल रिजर्व के इस नीतिगत फैसले से RBI की पॉलिसी पर क्या असर पड़ेगा?
आसान भाषा में कहें तो पॉलिसी इंटरेस्ट रेट वह ब्याज दर है जिसे किसी देश का केंद्रीय बैंक उस देश की अर्थव्यवस्था को जरुरत के मुताबिक नियंत्रित करने के लिए प्रयोग करता है.
अगर केंद्रीय बैंक महंगाई को नियंत्रित करने के लिए बाजार से पैसे को निकालना चाहता है तो वह पॉलिसी इंटरेस्ट रेट को बढ़ा देगा. बढ़े पॉलिसी इंटरेस्ट रेट के कारण उधार लेने की लागत में वृद्धि होती है और इसके कारण उपभोक्ता और व्यावसायिक खर्च हतोत्साहित होती है.
अमेरिका में फरवरी 2022 में महंगाई दर बढ़कर 7.9% हो गयी जो पिछले 40 सालों में सबसे अधिक है. जहां कोरोनोवायरस के कारण अभी भी विश्व की कई अर्थव्यवस्था जूझ रही है वहीं अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से ट्रैक पर लौट आई है. अमेरिका का जॉब मार्केट महामारी से उबर गया है.
फेडरल रिजर्व ने रूस-यूक्रेन युद्ध को भी बढ़ती महंगाई के लिए जिम्मेदार बताया है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने ग्लोबल सप्लाई चेन को चोट पहुंचाई है इसके कारण वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि हुई है.
फेडरल रिजर्व द्वारा पॉलिसी इंटरेस्ट रेट बढ़ाने से अब निजी बैंकों को महंगे दर पर ओवरनाइट लोन मिलेगा और इसके कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं के लिए कई उधार लागतें बढ़ जाएंगी.
अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन के कार्यालय के पहले वर्ष के दौरान ही देश की अर्थव्यवस्था रिकॉर्ड महंगाई देख रही है. फेडरल रिजर्व का यह फैसला बाइडेन के लिए राजनीतिक आलोचना का नया दरवाजा भी खोलता है.
नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनाव से पहले अमेरिकी पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है. जहां बाइडेन प्रशासन महंगाई के लिए कोरोना महामारी, सप्लाई चेन की समस्याओं और यूक्रेन में युद्ध को वजह बता रहा है वहीं रिपब्लिकन का तर्क है कि इसके पीछे डेमोक्रेटिक सरकार की नीति जवाबदेह है.
बाजारों ने दुनिया के सबसे बड़े केंद्रीय बैंक- फेडरल रिजर्व के इस नीतिगत फैसले पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. जहां अमेरिकी बाजार 2 प्रतिशत की तेजी के साथ बंद हुआ वहीं भारतीय शेयर बाजार गुरुवार को 1 प्रतिशत से अधिक के बढ़त के साथ खुला.
फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम एच पॉवेल ने कहा है कि हमें लगता है कि अर्थव्यवस्था बढ़े ब्याज दरों में वृद्धि को संभाल सकती है और वित्तीय बाजार इसे स्वीकार करते भी नजर आएं.
फेडरल रिजर्व द्वारा पॉलिसी रेट बढ़ाने के फैसले और भारत के खुदरा बाजार में बढ़ी महंगाई दर का भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समीक्षा पर 6 अप्रैल से 8 अप्रैल के बीच होने वाली मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक में सीधा असर पड़ेगा.
अमेरिकी केंद्रीय बैंक के विपरीत मौद्रिक नीति पर RBI का उदार रुख बरकरार है. इसका एक कारण भारत में खुदरा महंगाई दर ने RBI के निर्धारित लिमिट का उल्लंघन नहीं किया है.
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