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COP27 (Conference of the Parties) मिस्र (Egypt) में आयोजित होने जा रहा है. जहां दुनियाभर के नेता जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और इसके समाधान के मुद्दे पर चर्चा करेंगे. 21वीं सदी में क्लाइमेट चेंज पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. पिछले कुछ सालों में हमें इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिले हैं. कहीं जरूरत से ज्यादा बारिश से बाढ़ आ गई तो कहीं तापमान के रिकॉर्ड टूट गए. कई देशों को सूखे का भी सामना करना पड़ा है.ऐसे में चलिए हम आपको बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन क्या है? COP27 का क्या मतलब है? इस साल COP27 में किन मुद्दों पर चर्चा होगी? और भारत की क्या मांगें रहेंगी?
COP27 पर बात करने से पहले समझते हैं कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन क्या है. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हर साल होता है. इसमें दुनियाभर की सरकारें वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा करती हैं.
साल 1992 में ब्राजील के रियो डी जनेरियो में पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) के दौरान, जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ्रेमवर्क पारित की गई, और इसके लिए समन्वय संस्था - UNFCCC स्थापित की गई.
COP27 संयुक्त राष्ट्र की जलवायु के मुद्दे पर 27वीं सालाना बैठक है. COP यानी कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (Conference of Parties) का संक्षिप्त रूप है. यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के ढांचे यानी UNFCCC में शामिल सदस्यों का सम्मेलन है. इस वक्त COP में 192 पार्टीज हैं. सीओपी का पहला सम्मेलन मार्च, 1995 में बर्लिन में आयोजित हुआ था.
दुनिया कुछ ऐसी चीजें देख रही है, जो कल्पना से परे हैं. 2022 में इंग्लैंड और पूरे यूरोप में इतनी गर्मी की लोग बेहाल. पाकिस्तान में अप्रत्याशित बारिश. भारत में पहले हीटवेव से फसलों को नुकसान, फिर बारिश न होने के कारण धान की बुवाई नहीं हो पाई और आखिर में जब मानसून का वक्त खत्म हो गया तो अप्रत्याशित बारिश हो गई. माना जा रहा है इस सबके पीछे जलवायु परिवर्तन है.
गर्मी: दुनियाभर में अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र से लेकर अंटार्कटिका तक तापमान में बढ़ोतरी हुई है. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, प्रदूषण, जंगल की कटाई सहित वो सभी भयानक चीजें जो हम कर रहे हैं उसकी वजह से धरती के तापमान में वृद्धि हुई है.
सूखा: WHO के मुताबिक विश्व स्तर पर अनुमानित 55 मिलियन लोग हर साल सूखे से प्रभावित होते हैं. सूखा दुनिया के लगभग हर हिस्से में पशुधन और फसलों के लिए सबसे गंभीर खतरा है. सूखे से लोगों की आजीविका को खतरा है, बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है और बड़े पैमाने पर पलायन होता है.
पानी की किल्लत: पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन के साथ ही दुनिया के कई हिस्सों में जलसंकट की भी समस्या देखने को मिली है. केपटाउन को 2017 और 2018 में भारी जलसंकट से जूझना पड़ा था. ऐसी ही समस्या से चेन्नई के लोगों को भी दो चार होना पड़ा था. 2015 में बाढ़ के बाद 2019 में चेन्नई में सूखा पड़ने से जलसंकट गहरा गया था.
बाढ़: 2022 में दुनिया के कई देशों में बाढ़ ने कहर बरपाया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान में बाढ़ से 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. वहीं नाइजीरिया के 18 राज्य भीषण बाढ़ की चपेट में आ गए, जिसमें 600 से अधिक लोग मारे गए और 10 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए. ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में बाढ़ की ऐसी मार पड़ी कि लोगों का जीना मुहाल हो गया है. हजारों लोगों को घर-बार छोड़ना पड़ा.
खाद्य संकट: जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक चारागाहों का बनना, जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण पृथ्वी की 40 फीसदी जमीन की दशा खराब हो चुकी है. दुनिया भर के सभी महाद्वीपों में सिंचाई योग्य भूमि का 20 से 50 प्रतिशत हिस्सा इतना नमकीन हो गया है कि वो पूरी तरह से उपजाऊ नहीं बचा है, जिसके कारण उन जमीनों में अपनी फसलें उगाने वाले लगभग डेढ़ अरब लोगों के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हो गई हैं.
COP27 मिस्र के शर्म अल-शेख में 6 से 18 नवंबर के बीच आयोजित हो रही है. आयोजन के लिए दो मुख्य स्थल हैं: ब्लू जोन और ग्रीन जोन. ब्लू जोन-शहर के केंद्र के दक्षिण में शर्म अल-शेख इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर है, जहां आधिकारिक वार्ता आयोजित की जाएगी. इस स्थान का प्रबंधन संयुक्त राष्ट्र की ओर से किया जाएगा और यह अंतरराष्ट्रीय कानून के अधीन होगा.
वहीं शर्म अल-शेख स्थित बॉटनिकल गार्डन में ग्रीन जोन बनाया गया है. यह क्षेत्र मिस्र सरकार की ओर से संचालित किया जाएगा और जनता के लिए खुला रहेगा.
जलवायु परिवर्तन के लिहाज से अफ्रीका दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस समय पूर्वी अफ्रीका में सूखे की वजह से 1.7 करोड़ लोग खाद्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. ऐसे में किसी अफ्रीकी देश में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन होने से क्लाइमेट चेंज के प्रभावों की तरफ वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित होगा. बता दें कि ये पांचवीं बार है जब अफ्रीका के किसी देश में जलवायु सम्मेलन हो रहा है.
चलिए अब आपको बताते हैं कि इस साल COP27 के एजेंडे में क्या है. तीन मेन एजेंडा है, जिसपर सम्मेलन में चर्चा होगी.
कार्बन उत्सर्जन
अनुकूलन
क्लाइमेट फाइनेंस
कार्बन उत्सर्जन में कटौती: देश अपने उत्सर्जनों में किस प्रकार से कटौती कर रहे हैं?
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाना या उनकी रोकथाम करना (Mitigation) है. इसका मतलब है, नई टेक्नोलॉजी और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग करना, पुराने उपकरणों की ऊर्जा दक्षता बेहतर बनाना, प्रबंधन के तौर-तरीकों और उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव लाना.
अनुकूलन: देश किस तरह अनुकूलन प्रयास करेंगे और दूसरे देशों की मदद करेंगे?
दुनियाभर में क्लाइमेट चेंज दस्तक दे चुका है. ऐसे में इससे अनुकूलन के साथ ही बचवा के उपायों पर चर्चा शुरू हो गई है. COP27 में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और वैश्विक तापमान वृद्धि की गति धीमी करने के प्रयासों से इतर बेहतर सुरक्षा उपायों पर चर्चा होगी ताकि लोगों को बचाया जा सके.
इसके साथ ही देशों के बीच बचाव उपायों और तकनीक के आदन-प्रदान पर भी चर्चा होगी, ताकि दुनिया को एक बेहतर भविष्य की दिशा में बढ़ने में मदद मिल सके.
क्लाइमेट फाइनेंस: कैसे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराई जाए?
COP27 में क्लाइमेट फाइनेंस बड़ा और अहम मुद्दा है. सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आर्थिक मदद को लेकर भी चर्चा होगी. विकासशील देशों ने पर्याप्त और उपयुक्त फंडिंग सुनिश्चित करने के लिए विकसित देशों से आग्रह किया है. सम्मेलन में विकसित देशों द्वारा प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर मुहैया कराए जाने का वादा चर्चा के केंद्र में रहेगा, जिसे अभी पूरा नहीं किया जा सका है.
COP27 से पहले भारत के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करने के लिए विकसित देशों से जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के मामले में ‘कार्रवाई’ की मांग करेगा. उन्होंने कहा,
यादव ने कहा कि COP27 में भारत का समग्र दृष्टिकोण मजबूत, महत्वाकांक्षी और निर्णायक जलवायु कार्रवाइयों, जलवायु न्याय के आह्वान और पीएम मोदी द्वारा शुरू किए गए LiFE आंदोलन के माध्यम से स्थायी जीवन शैली पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर देना होगा.
पिछले कुछ COP के मुकाबले COP27 के कई मायनों में अलग होने की संभावना जताई जा रही है. पिछले साल COP26 के दौरान 'ग्लासगो जलवायु समझौते' (Glasgow Climate Pact) पर सहमति बनी, जिसमें वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक युग की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात कही गई.
पेरिस समझौते (Paris Agreement) को वास्तविक रूप से लागू करने की दिशा में प्रगति हुई और व्यावहारिक उपायों के लिए पेरिस रूल बुक (Paris Rule book) को अंतिम रूप दिया गया. इसके साथ ही देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मजबूत संकल्प सुनिश्चित करने पर भी समहमित जताई थी, जिसके तहत राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं को अधिक महत्वाकांक्षी बनाया जाना भी है. हालांकि, 193 में से केवल 23 देशों ने अब तक अपनी योजनाएं UN में पेश की है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि पेरिस रूल बुक को लागू किए जाने पर चर्चा के अलावा सम्मेलन के दौरान उन बिन्दुओं पर भी चर्चा होगी, जिन पर ग्लासगो में बातचीत का निष्कर्ष नहीं निकल पाया था.
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Published: 04 Nov 2022,08:14 PM IST