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राफेल सौदे को लेकर विवाद बढ़ने के बीच फ्रांस से 58000 करोड़ रुपये की लागत से भारत के 36 लड़ाकू विमानों को खरीदने के पूरे मामले को समझते हैं.
राफेल डबल इंजन से लैस फ्रांसीसी लड़ाकू विमान है. इसे डसॉल्ट एविएशन ने डेवलेप किया है. राफेल विमानों को दुनियाभर में सबसे ज्यादा सक्षम लड़ाकू विमान माना जाता है.
भारत ने साल 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी.
इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंड का एफ/ए-18 एस और डसॉल्ट एविएशन का राफेल शामिल था. लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई. डसॉल्ट एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाला निकला. मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे, जबकि 108 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे.
यूपीए सरकार और डसॉल्ट के बीच कीमतों और टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण पर लंबी बातचीत हुई थी. अंतिम बातचीत 2014 की शुरुआत तक जारी रही, लेकिन सौदा नहीं हो सका. प्रति राफेल विमान की कीमत का विवरण आधिकारिक तौर पर घोषित नहीं किया गया था, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने संकेत दिया था कि सौदा 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा. कांग्रेस ने प्रत्येक विमान की दर एवियोनिक्स और हथियारों को शामिल करते हुए 526 करोड़ रुपये (यूरो विनिमय दर के मुकाबले) बताई थी.
फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी. घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया.
मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद के बीच बातचीत के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए.
भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9, 000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए. विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी.
कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है. उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी. पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया.
कांग्रेस ने विमान की कीमत और कैसे प्रति विमान की कीमत 526 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,670 करोड़ रुपये की गई यह भी बताने की मांग की है. सरकार ने भारत और फ्रांस के बीच 2008 समझौते के एक प्रावधान का हवाला देते हुए विवरण साझा करने से इंकार कर दिया है.
लगभग दो साल पहले, रक्षा राज्य मंत्री ने संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि प्रत्येक राफेल विमान की लागत लगभग 670 करोड़ रुपये है, लेकिन संबंधित उपकरणों, हथियार और सेवाओं की कीमतों का विवरण नहीं दिया.
बाद में, सरकार ने कीमतों के बारे में बात करने से इनकार कर दिया. साथ ही यह कहा जा रहा है कि 36 राफेल विमानों की कीमत की "डिलिवरेबल्स" के रूप में 126 लड़ाकू विमान खरीदने के मूल प्रस्ताव के साथ "सीधे तुलना" नहीं की जा सकती है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को एक फेसबुक पोस्ट लिखकर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी पर सौदे के बारे में झूठ बोलने और दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार द्वारा हस्ताक्षरित सौदा यूपीए सरकार के तहत 2007 में जिस सौदे के लिये सहमति बनी थी उससे बेहतर है.
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