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पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल होने वाली बस, सड़क पर कार की तुलना में दोगुनी जगह लेती है. लेकिन बस, कार के मुकाबले 40 गुणा ज्यादा यात्रियों को एक साथ सफर कराती है. बस की सवारी से ईंधन की बचत और काफी कम प्रदूषण का बोनस अलग है. लेकिन अपनी अनोखी दिल्ली इस मामूली जानकारी से भी बेखबर है. हर बार जब दिल्ली में प्रदूषण का ‘शोर’ मचता है, तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बेहतरी के लिए कितनी कवायदें की जाती हैं?
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जहां पिछले 5 साल के दौरान दिल्ली के पॉल्यूशन पर सबसे ज्यादा बहस हुई है उस दौरान पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपयोग करने वालों की संख्या में 10 फीसदी की कमी आई है. जहां 2012-13 ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिए रोजाना 66 लाख राइड पूरे होते थे, 2016-17 में यह घटकर 59 लाख. ध्यान देने की बात है कि इस दौरान दिल्ली और आसपास के इलाकों की आबादी बढ़ी है और लोग रोजाना ज्यादा सफर कर रहे हैं. तो इसका मतलब ये है कि पिछले 5 साल में प्राइवेट ट्रांसपोर्ट में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है.
अनुमान के मुताबिक पिछले 5 साल में टैक्सियों की संख्या में सालाना 10 परसेंट की रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है. इसमें एक बड़ा हिस्सा ओला और उबर जैसी टैक्सी एग्रीगेटर का है. करीब 2.5 करोड़ की आबादी वाली राजधानी को कम से कम 11 हजार पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बसों की जरूरत है, फिलहाल दिल्ली के पास 5,800 बसें हैं.
अच्छी बात ये है कि इस दौरान मेट्रो की सवारी में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन कुल पब्लिक ट्रांसपोर्ट में मेट्रो का हिस्सा अभी भी 50 फीसदी से कम ही है. ऐसे में मेट्रो की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम इस्तेमाल करने वालों की संख्या में कमी आई है.
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट में IIT दिल्ली के प्रोफेसर दिनेश मोहन वायु प्रदूषण की वजहों का जिक्र कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की हवा में 2.5 PM की मात्रा का 17 फीसदी ट्रांसपोर्ट की वजह से है. बता दें कि हवा में PM 2.5 की मात्रा 200 प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक होते ही ये खतरनाक हो जाती है. इसकी मात्रा 400 प्रति क्यूबिक मीटर या उससे ऊपर जाना स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर सकता है. ऐसे में साफ है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देकर प्रदूषण पर कुछ हद तक लगाम कसी जा सकती है.
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