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जुवेनाइल जस्टिस बिल 22 दिसंबर को राज्यसभा में ध्वनिमत के साथ पारित हो गया. यह बिल दिल्ली गैंगरेप मामले के तीन साल बाद पास हुआ है. इस विधेयक में जघन्य अपराधों में लिप्त 16 से 18 आयुवर्ग के किशोरों के लिए सजा का प्रावधान वयस्क व्यक्ति के समान किए जाने का प्रावधान है. लोकसभा में कुछ संशोधनों के बाद यह विधेयक मई 2015 में ही पास हो चुका है.
नए बिल के मुताबिक, नाबालिग अपराधियों की उम्र-सीमा 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष की गई. इस बिल में जघन्य अपराधों के मामले में न्यूनतम 3 साल से लेकर 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है, जबकि सामान्य अपराधों के लिए न्यूनतम सजा 3 साल कैद होगी.
आइए, जानते हैं इस बिल और इससे जुड़े कुछ खास बिंदुओं के बारे में.
जुवेनाइल उस व्यक्ति को माना जाता है, जिसकी उम्र 18 साल से कम है. भारतीय दंड संहिता के मुताबिक एक बच्चे को किसी भी अपराध के लिए तब तक सजा नहीं दी जा सकती, जब तक कि उसकी उम्र कम से कम 7 साल न हो.
सरकार ने अगस्त 2014 में लोकसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल को पेश किया था. इसमें कहा गया था कि मौजूदा जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 के कार्यान्वयन में कई दिक्कतें थीं और इससे जुड़ी चीजों में प्रक्रियागत देरी का सामना करना पड़ रहा था.
इसके अलावा सरकार ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा था कि नाबालिगों, विशेषकर 16-18 वर्ष के आयु वर्ग के नाबालिगों द्वारा अंजाम दिए गए अपराधों में वृद्धि देखने को मिली है.
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, कुल अपराधों में जुवेनाइल अपराधियों द्वारा किए गए अपराध 2003 के 1 प्रतिशत से बढ़कर 2013 में 1.2 प्रतिशत हो गए थे. इसी अवधि में जुवेनाइल अपराधियों द्वारा किए गए कुल अपराधों में 16-18 वर्ष के जुवेनाइल अपराधियों द्वारा अंजाम दिए गए अपराधों का प्रतिशत 54 से बढ़कर 66 हो गया था.
वर्तमान में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 इस बात की रूपरेखा तय करता है कि जो बच्चे कानून को अपने हाथ में लेते हैं और जिन्हें देखभाल और संरक्षण की जरूरत है, उनके साथ किस तरह से पेश आया जाए. नया बिल जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट 2000 की जगह लेने वाला है, जिसमें दोनों तरह के बच्चों से जुड़े मामलों की प्रक्रियाओं में बदलाव की बात कही गई है.
इस बिल में दो ऐसे निकायों पर जो दिया गया है, जो इन बच्चों से जुड़े मामले देखेंगे. ये दोनों निकाय हर जिले में स्थापित किए जाएंगे और ये हैं: जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी). इसके अलावा इस बिल में कानून के तहत गोद लेने की प्रक्रियाओं और सजा के प्रावधानों के बारे में जानकारी दी गई है.
इस बिल में प्रावधान है कि जघन्य अपराधों में शामिल 16-18 वर्ष के बच्चों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाए. बिल में जिन तीन तरह के अपराधों का जिक्र किया गया है वे हैं:
2000 के ऐक्ट के मुताबिक, यदि कोई बच्चा कानून तोड़ता है, चाहे वह किसी भी तरह का अपराध हो, उसे ज्यादा से ज्यादा तीन साल के लिए बाल सुधार गृह में रखा जा सकता है. बच्चे को तीन साल से ज्यादा की सजा किसी भी हालत में नहीं दी जा सकती, न ही उसपर किसी वयस्क की तरह मुकदमा चलाकर वयस्कों की जेल में भेजा सकता है.
प्रस्तावित बिल में भी 18 साल से कम के अपराधियों के लिए यही बात कही गई है, लेकिन उसमें एक बदलाव है. इस बिल के मुताबिक जघन्य अपराध करने वाले 16-18 वर्ष के आयु वर्ग के जुवेनाइल पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
जुवेनाइल जस्टिस बिल बच्चे की मानसिक और शारीरिक क्षमता का, अपराध के परिणामों को समझने की क्षमता आदि का भी आंकलन करेगा. इस आंकलन के आधार पर चिल्ड्रन्स कोर्ट यह निश्चित करेगा कि क्या किसी बच्चे पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
इस बिल को पेश करने का सबसे बड़ा कारण जुवेनाइल क्राइम में हो रही वृद्धि बताया गया, जैसा कि एनसीआरबी के आंकड़ों से जाहिर हुआ है.
इस बिल का परीक्षण करने वाली मानव संसाधन विकास की स्थायी समिति ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ें भ्रामक हैं क्योंकि ये एफआईआर पर आधारित हैं न कि अभियुक्तों को दोषी करार दिए जाने पर. समिति ने यह भी पाया कि यह बिल कुछ संवैधानिक प्रावधानों का भी उल्लंघन करता है और कहा कि बाल अपराधियों के प्रति दृष्टिकोण सुधारात्मक और पुनर्वास केंद्रित होना चाहिए.
लोकसभा में पेश किया गया बिल संविधान के अनुच्छेद 14, 20(1) और 21 का उल्लंघन करता है. बिल को लोकसभा में पेश करते हुए संविधान का उल्लंघन करने वाले बिंदुओं को हटा दिया गया.
भारत ने 1992 में यूएनआरसी पर अपनी सहमति दी थी और कन्वेंशन द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करने के लिए सन 2000 में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लागू किया था.
प्रस्तावित बिल में इसके लक्ष्य को ध्यान में रखा गया है और 2000 के एक्ट के सिर्फ कार्यान्वयन और प्रक्रियागत देरी से जुड़े मुद्दों में सुधार करने पर जोर दिया गया है. यूएनआरसी के मुताबिक हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र 18 वर्ष से कम आयु के हर बच्चे के साथ एक ही तरह से पेश आएंगे और उनपर वयस्कों की तरह मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा.
2000 का अधिनियम तो इस आवश्यकता की पूर्ति करता है, लेकिन बिल नहीं. हालांकि कई अन्य देश, जिन्होंने इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं, कुछ विशेष अपराधों के मामले में नाबालिग अपराधियों के साथ भी वयस्कों की तरह ही पेश आते हैं. इनमें यूके, फ्रांस और जर्मनी जैसे तमाम देश शामिल हैं. अमेरिका ने यूएनआरसी पर हस्ताक्षर नहीं किया है और वह भी कुछ निश्चित अपराधों में जुवेनाइल्स पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाता है.
यह बिल देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चों के लिए है. यदि कोई बच्चा अनाथ हो जाता है या उसे त्याग दिया जाता है तो उसे 24 घंटे के अंदर किसी बाल कल्याण समिति के सामने लाया जाता है.
इसके बाद बच्चे के लिए एक सामाजिक जांच रिपोर्ट तैयार की जाती है, फिर समिति फैसला करती है कि बच्चे को किसी बाल संरक्षण गृह में रखा जाए या उसे किसी को गोद दिया जाए या कोई अन्य ऐसा उपाय किया जाए जो बच्चे के लिए सही हो.
बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए इस बिल में विभिन्न सजाओं का जिक्र किया गया है. इसमें बच्चों को नशीले पदार्थ देने, बच्चों की खरीद-फरोख्त, बच्चों के खिलाफ क्रूरता आदि से जुड़ी सजाएं शामिल हैं.
किसी बच्चे को नशीला पदार्थ देने पर सात साल कैद और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. वहीं बच्चों की खरीद-फरोख्त से जुड़े अपराधों में पांच साल की सजा और एक लाख रुपये तक के जुर्माने की बात कही गई है.
अब यह देखना बाकी है कि यह बिल कानून तोड़ने वाले नाबालिगों से जुड़े मुद्दों से निपटने में किस हद तक कामयाब होता है.
(लेख की सामग्री पीआरएस लेजिस्लेटिव से ली गई है)
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