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देश के सियासी गलियारों में स्वदेशी जागरण मंच (SJM) का नाम अक्सर सुर्खियों में आता रहा है. हाल में एक बार फिर ये नाम खबरों में था. बताया गया कि सुभाष चन्द्र गर्ग का करियर समय से पहले खत्म करने में इस मंच का हाथ था. गर्ग, मार्च से जुलाई 2019 तक, यानी सिर्फ पांच महीने भारत के वित्त सचिव रह पाए. इसके बाद उनका तबादला ऊर्जा मंत्रालय में हो गया.
कहा जाता है कि RSS और SJM अधिकारियों ने सलाह-मशविरा करने के लिए सरकार से मुलाकात की. मुद्दा था कि भारत को विदेशी मुद्रा हासिल करने के लिए देश से बाहर बॉन्ड बेचने चाहिए या नहीं. पुराने समय में RBI के गवर्नरों ने हमेशा इस प्रस्ताव को खारिज किया था.
पहले इस योजना का समर्थन कर रही बीजेपी सरकार ने इसपर “दोबारा विचार” करने का फैसला किया है.
SJM के राष्ट्रीय संयोजक अश्विनी महाजन ने मीडिया को उस बैठक के बारे में बताने से इनकार कर दिया. बॉन्ड के जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने के बारे में उन्होंने कहा, “ये खतरा मोल नहीं लिया जा सकता. ये एक मूर्खतापूर्ण विचार है.”
इस घटना को छोड़ भी दें, तो पिछले ही साल SJM ने सरकार से एयर इंडिया का विनिवेश न करने को कहा था. उन्होंने RBI से कहा था कि सरकार को इसके फायदे मिलते हैं. इसके अलावा उन्होंने वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट समझौता न करने को कहा था. दूसरी मांगों के साथ प्रधानमंत्री को ये भी लिखा था कि चीन को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा खत्म किया जाए.
आखिर स्वदेशी जागरण मंच क्या है? सरकार पर उनका असर क्यों है, जबकि आर्थिक मामलों में सीधे तौर पर मंच का कोई दखल नहीं है? आइए जानते हैं.
1991 में स्थापित SJM को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का आर्थिक विभाग कहा जाता है. ठीक उसी प्रकार, जैसे बीजेपी, संघ का राजनीतिक विभाग है.
संगठन खुद को स्वदेशी जागरण का वंशज मानता है, जो भारत की आजादी की जंग का अहम हिस्सा था और जिसका मकसद भारतीय राष्ट्रीयता का विकास करना था.
स्वदेशी आंदोलन और इसकी विचारधारा के समर्थक बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी जैसे दिग्गज थे. इस विचारधारा में घरेलू उत्पादन पर जोर दिया जाता था और ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार किया जाता था.
आजादी के बाद आर्थिक रूप से भारत की हालत नाजुक रही और 1991 में तो सरकार करीब-करीब दिवालिया हो गई. एक समझौते के तहत IMF ने भारत को 500 मीलियन अमेरिकी डॉलर दिये और बदले में समाजवादी विचारधारा के अनुरूप चलने वाली अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोलना पड़ा.
बैठक में शामिल होने वाले संगठन थे - भारतीय मजदूर संघ (BMS), RSS का युवा मोर्चा एबीवीपी, भारतीय किसान संघ (BKS), अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत (ABGP) और सहकार भारती. नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति डॉ. एमजी बोकारे को मंच का पहला राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया.
SJM ने नई आर्थिक उदारीकरण की नीति और भारतीय बाजार में नए-नए आने वाले बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कथित आर्थिक साम्राज्यवाद का विरोध करना शुरू कर दिया. इनमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों का बहिष्कार भी शामिल था. बहिष्कार की नीति अब भी अपनाई जाती है.
अपने मकसद के प्रचार के लिए संगठन ने अपना साहित्य छापना और बांटना शुरु किया. RSS के तहत SJM फलता-फूलता रहा और उसे विद्या भारती और राष्ट्रीय सेविका समिति जैसे हममिजाज संगठनों का साथ मिलने लगा.
2014 के आम चुनावों में बीजेपी के सत्ता आने के बाद सरकार पर SJM का असर पहले से काफी बढ़ गया. संगठन को RSS की छत्रछाया मिलने के कारण उसे इस काम में फायदा पहुंचा.
अपने स्वदेशी जड़ों के अनुरूप SJM की आर्थिक विचारधारा को संरक्षणवाद के रूप में परिभाषित किया जा सकता है.
इनके बदले संगठन ने घरेलू उत्पादों को समर्थन, तुलनात्मक दृष्टि से बंद अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सहयोग में सावधानी बरतने और आत्महित पर जोर दिया.
SJM के मुताबिक सामाजिक-सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था की सबसे छोटी इकाई व्यक्ति नहीं, परिवार है.
SJM की विचारधारा में आधुनिक पूंजीवादी बाजार के लिए भी जगह नहीं है.
“बाजार का आकार जितना छोटा होगा, एक उपकरण के रूप में वो उतना ही असरदार होगा. स्वदेशी विचारधारा में बाजार का आकार छोटा रखना है, और साम्यवाद की तरह उसे पूरी तरह खत्म करना नहीं है.” ये मंच की वेबसाइट पर लिखा है.
संगठन का नजरिया है – “हजार बाजारों को फलने-फूलने दो. इन्हें एक वैश्विक बाजार में मत बांधो.”
संगठन उपभोग के आधार पर अर्थव्यवस्था का भी विरोधी है. संगठन के मुताबिक “जरूरत के अनुसार” उपभोग होना चाहिए.
एक खांटी दक्षिणपंथी संगठन होने के बावजूद आर्थिक मामलों में SJM की सोच आश्चर्यजनक रूप से वामपंथी विचारधारा से मिलती-जुलती है.
हो सकता है कि ऐसा भारतीय दक्षिणपंथ के कारण हो. अमेरिका और यूरोप में आमतौर पर दक्षिणपंथी रूढ़ीवादी होते हैं और व्यापारिक नीतियों को संरक्षण देते हैं. लेकिन भारतीय दक्षिणपंथी सामाजिक रूप से रूढ़ीवादी, लेकिन आर्थिक रूप से उदार हैं.
बीजेपी को लगातार दो बार चुनावों में जीत हासिल हुई. जीत का कारण मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था में तेज विकास और मोदी के सुधारवादी और उदारवादी विचार कहे जा सकते हैं. पार्टी ने समाजवादी विचारधारा की ‘लाइसेंस राज’ मॉडल की भी काफी आलोचना की. कांग्रेस इस नीति का पालन उदारवादी अर्थव्यवस्था से पहले दशकों तक करती रही थी.
साम्यवाद की तरह SJM भी असमानता का विरोधी है, जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है. “सबसे ज्यादा आमदनी वाले 20 फीसदी और सबसे कम आमदनी वाले 20 फीसदी का अनुपात 10:1 से ज्यादा नहीं होना चाहिए.” संगठन का मानना है.
स्वदेशी जागरण मंच को वामपंथी विचारधारा के साथ अपनी समानता का अहसास है. लिहाजा वेबसाइट में फिलॉसॉफी भाग के अंतिम कुछ पाराग्राफ में वामपंथी वाचारधारा के साथ असमानता पर जोर दिया गया है. “स्वदेशी विचारधारा में बाजार का आकार सीमित रखना है, वामपंथी विचारधारा के मुताबिक बाजार खत्म करना नहीं है.”
“जरूरत के मुताबिक” उपभोग की वकालत करते हुए मंच तर्क देता है कि आधुनिक अर्थव्यवस्था को पूरी तरह नहीं नकारा गया है.
हालांकि SJM और लेफ्ट के बीच सबसे उजागर असमानता उसकी हिन्दू-राष्ट्रवादी सोच है, जो RSS के साथ उसके रिश्तों से बिलकुल साफ है.
मौजूदा बीजेपी सरकार पर स्वदेशी जागरण मंच का भरपूर असर है. विदेश में सरकारी बॉन्ड जारी करने के बारे में सलाह के लिए बुलाया जाना इसका स्पष्ट सबूत है. लेकिन ये नजदीकियां कुछ ही समय से शुरू हुई हैं.
अगले साल जून में टेलिकॉम मंत्रालय ने SJM की शिकायत पर टिकटॉक और हैलो एप को नोटिस भेजे. शिकायत के मुताबिक ये एप भारत के बाहर डेटा संग्रह कर रहे थे.
ये थे कुछ उदाहरण, जब स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश की.
SJM सरकार से मुलाकात करने की परम्परा का अगुवा है. इस परम्परा को अब पूरा RSS परिवार अपना रहा है. नतीजा ये निकला है कि सरकारी नीतियों पर उसका असर बढ़ता जा रहा है.
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