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पीएनबी घोटाले में आरोपी हीरा कारोबारी नीरव मोदी पासपोर्ट रद्द होने के बावजूद भी महीनों तक कई देशों की यात्रा करता रहा. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब विदेश मंत्रालय ने उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया था, तो फिर वह कैसे एक देश से दूसरे देश की यात्रा करता रहा? इंटरपोल की ओर से नोटिस जारी होने के बावजूद आखिर उसे कहीं भी रोका क्यों नहीं गया?
11 जून को सीबीआई ने कहा था कि उसने इंटरपोल को नीरव मोदी के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने को कहा है. हीरा कारोबारी नीरव मोदी बैंक घोटाला मामले में वांटेड है. 18 जून को सीबीआई के एक प्रवक्ता ने बताया कि इंटरपोल ने 15 फरवरी को नीरव मोदी के खिलाफ एक डिफ्यूजन नोटिस जारी किया था.
रेड कॉर्नर नोटिस में वैधानिक शक्तियां होती हैं. यह अरेस्ट वारंट की ही तरह होता है. एक बार इंटरपोल से इस नोटिस के जारी होने के बाद सभी देश भगोड़े शख्स को पकड़ने के लिए बाध्य होते हैं. जिसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी हुआ है, वह अगर किसी देश से भागने की कोशिश करता है तो उसे वहां की एजेंसी गिरफ्तार कर लेती है.
किसी भी व्यक्ति के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कराना एक लंबी प्रक्रिया है. सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के बाद रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की अपील की थी. लेकिन इंटरपोल ने अब तक नीरव मोदी के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी नहीं किया है.
डिफ्यूजन नोटिस इंटरपोल की ओर से कथित भगोड़े पर नजर रखने के लिए विभिन्न देशों से एक अपील होती है. इस नोटिस के जरिए देशों से संबंधित व्यक्ति की गतिविधियों पर नजर रखने की अपील की जाती है. कानूनी तौर पर डिफ्यूजन नोटिस किसी भी देश को इसके लिए बाध्य नहीं करता है.
विदेश मंत्रालय ने 23 फरवरी को नीरव मोदी का पासपोर्ट रद्द कर दिया था. 18 जून को सीबीआई ने बताया कि नीरव मोदी का पासपोर्ट रद्द होने की जानकारी इंटरपोल के सेंट्रल डेटाबेस में दर्ज करा दी गई है.
5 जून को खबर आई की इंटरपोल ने भारतीय जांच एजेंसियों को नीरव मोदी के विदेशों में घूमने की जानकारी दी. इंटरपोल ने भारतीय जांच एजेंसियों को बताया कि नीरव मोदी ने 15 मार्च से 31 मार्च के बीच भारतीय पासपोर्ट पर अमेरिका, ब्रिटेन और हॉन्गकॉन्ग की यात्राएं की. उसने इस पासपोर्ट पर चार बार 15 मार्च, 28 मार्च, 30 मार्च और 31 मार्च को यात्राएं की. वह ऐसा इसलिए कर पाया क्योंकि सूत्रों के मुताबिक, पासपोर्ट पर कोई इंटरनेशनल कॉमन डेटाबेस नहीं है.
इंटरपोल और इमिग्रेशन डिपार्टमेंट के सूत्रों के मुताबिक, केवल रेड कॉर्नर नोटिस जारी होने की स्थिति में ही संबंधित व्यक्ति को किसी भी देश में रोका जा सकता है. ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि इंटरपोल का सेंट्रल डेटाबेस सिस्टम बड़े देशों के इमिग्रेशन डिपार्टमेंट से लिंक होता है. जैसे ही किसी बड़े देश में एयरपोर्ट के इमिग्रेशन काउंटर पर किसी भगोड़े व्यक्ति का पासपोर्ट स्कैन होता है, तो ऑटोमेटिकली सिस्टम में उस व्यक्ति के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी होने की जानकारी नजर आने लगती है.
उन देशों में जहां इंफॉर्मेशन सीधे इमिग्रेशन डेटाबेस से लिंक नहीं होती है, उन देशों में इंटरपोल सुनिश्चित करता है कि नेशनल सेंट्रल ब्यूरो इमिग्रेशन डिपार्टमेंट के डेटाबेस में इस जानकारी को दर्ज करें.
नेशनल सेंट्रल ब्यूरो नोडल एजेसिंया होती हैं, जिन्हें इंटरपोल विभिन्न देशों में संचालित करता है. ये इंटरपोल द्वारा स्थापित नहीं होती हैं, लेकिन नेशनल एजेंसियां, इंटरपोल की अपील पर काम करने के लिए अधिकृत होती हैं. भारत में इंटरपोल का नेशनल सेंट्रल ब्यूरो सीबीआई है. सीबीआई की एक डिवीजन इंटरपोल के निर्देशों पर काम करती है.
नीरव मोदी के खिलाफ इंटरपोल ने डिफ्यूजन नोटिस जारी किया है. लेकिन इस तरह के नोटिस से संबंधित इंटरपोल का डेटा इमिग्रेशन डेटाबेस के साथ सीधे लिंक नहीं होता है. ऐसे में जब तक सभी देशों के नेशनल सेंट्रल ब्यूरो अपने देश के इमिग्रेशन डिपार्टमेंट में यह डेटा अपडेट नहीं करते हैं, तब तक पासपोर्ट स्वाइप होने पर नोटिस से संबंधित जानकारी नजर नहीं आती है. ऐसा ही नीरव मोदी के मामले में भी हुआ.
सीबीआई के हाथ में तब तक कुछ नहीं है, जब तक भगोड़ा देश के कानूनी दायरे से बाहर है. सीबीआई केवल उम्मीद कर सकती है कि इंटरपोल नीरव मोदी के खिलाफ जल्द ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी करेगा, जिसके बाद नीरव मोदी जिस भी देश में होगा, उसे वहां हिरासत में लिया जा सकेगा. इसके बाद ही भारत उस देश से नीरव मोदी के प्रत्यर्पण का आग्रह करेगा और उसे वापस लाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ेगा.
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Published: 21 Jun 2018,02:06 PM IST