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राफेल सौदे को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने सनसनीखेज खुलासा किया है. उन्होंने कहा है कि भारत सरकार ने राफेल डील के दौरान राफेल मैन्यूफैक्चरिंग में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को पार्टनर बनाने के लिए कहा था. ओलांद के खुलासे के कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को मोदी सरकार के खिलाफ एक नया हथियार हाथ लग गया है. मोदी सरकार विपक्ष के उन आरोपों से इनकार करती रही है कि पीएम मोदी ने राफेल सौदे में रिलायंस को फायदा पहुंचाया है.
संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राफेल सौदे में सरकार को तथ्यों को छिपाने का आरोप लगा. राहुल गांधी ने कहा था कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभाव में आकर सौदे को लेकर झूठ बोला. राहुल ने कहा कि इस सौदे में पीएम मोदी ने अपने एक ऐसे मित्र उद्योगपति को फायदा पहुंचाया, जिनकी कंपनी के पास राफेल विमान बनाने का कोई अनुभव ही नहीं था. आइए जानते हैं क्या है राफेल सौदा और क्यों इसे लेकर सरकार और विपक्ष के बीच घमासान मचा है.
एनडीए सरकार ने फ्रांस से 36 फाइटर प्लेन खरीदने के लिए 7.87 अरब यूरो यानी 59 हजार करोड़ में सौदा किया था. इसके तहत फ्रांस को कुछ ऑफसेट ऑब्लिगेशन निभाने थे. यानी फ्रांसीसी कंपनियों को सौदे की 50 फीसदी राशि भारतीय निजी और सरकारी डिफेंस कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर में लगानी थी. इस सौदे के तुरंत बाद अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप और राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन के बीच ज्वाइंट वेंचर का ऐलान किया और कहा कि ऑफसेट कांट्रेक्ट में इनकी बड़ी हिस्सेदारी होगी. इसी पर कांग्रेस को आपत्ति है.
कांग्रेस ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया. आखिर ऑफसेट डील के तुरंत बाद ज्वाइंट वेंचर कैसे बन गया. उस पर से अनिल की कंपनी को फाइटर प्लेन बनाने का कोई अनुभव नहीं है. विमान बनाने का ठेका हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से लेकर अनिल के रिलायंस ग्रुप को दे दिया गया.
राफेल के लिए चूंकि यूपीए सरकार यह डील फाइनल नहीं कर पाई थी इसलिए यह कहना मुश्किल है कि यूपीए ने अच्छा सौदा किया था या एनडीए ने. 2011 की रिपोर्टों में कहा गया है कि दसॉ ने एक फाइटर प्लेन की कीमत 740 करोड़ लगाई थी. कांग्रेस का दावा है कि उसने प्रति प्लेन 526.1 करोड़ रुपये में सौदा पक्का किया था. लेकिन एनडीए ने 300 फीसदी ज्यादा कीमत यानि प्रति प्लेन 1570.8 करोड़ रुपये पर सौदा किया. इसे सरकारी खजाने को 40,000 करोड़ रुपये की चपत लगी.
सरकार का कहना है कि इस सौदे को लेकर फ्रांस सरकार के साथ उसका करार है.
फ्रांस सरकार के साथ 2016 में इस सौदे के बाद सरकार इसके तथ्यों को गोपनीयता करार की वजह से जाहिर नहीं कर रही है. जबकि कांग्रेस का कहना है कि ऐसा कोई गोपनीयता करार नहीं था. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दावा किया कि वह खुद फ्रांस के राष्ट्रपति एमेनु्अल मैक्रो से मिले, जिन्होंने ऐसी किसी गोपनीयता करार से इनकार किया.
फ्रांस ने गोपनीयता करार पर खास तौर पर बयान दिया. फ्रांस की ओर से कहा गया कि इस सौदे की कुछ कानूनी बारीकियां हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है. फ्रांस ने 2008 में भारत के साथ जो सिक्योरिटी एग्रीमेंट किया था, जिसमें कहा गया गया था दोनों देश एक दूसरे को दी गई गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं करेंगे.
इससे भारत या फ्रांस के रक्षा उपकरणों की सिक्योरिटी और ऑपरेशनल क्षमता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित हो सकती है. इस समझौते के प्रावधानों पर Inter-Governmental Agreement कोड लागू होते हैं. इसलिए 23 सितंबर 2016 को हुए इस समझौते पर ये प्रावधान लागू होते हैं. इसके तहत इसकी गोपनीयता की रक्षा करनी होगी.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एनडीए सरकार ने फ्रांस से प्रति प्लेन 9.17 करोड़ यूरो के हिसाब से सौदा किया यह यूपीए सरकार के दौरान किए गए सौदे की दर 10.08 करोड़ यूरो से नौ फीसदी कम है. उन्होंने कहा था कि यूपीए ने संसद में पहले कभी भी रक्षा सौदों की कीमतों के बारे में संसद को इस दलील के साथ नहीं बताया कि यह देश हित में नहीं है. इसमें अमेरिका और इजराइल से रक्षा उपकरणों और मिसाइल आयात के सौदे शामिल हैं. जबकि एनडीए सरकार की ओर से एयरक्राफ्ट के बेसिक मूल्य के बारे में लोकसभा को 18 नवंबर 2016 और राज्यसभा को 12 मार्च और 19 मार्च 2018 में बताया गया.
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Published: 12 Sep 2018,07:50 PM IST