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2007 में 4 लाख रुपये के इंवेस्टमेंट से शुरू की गई फ्लिपकार्ट कंपनी की कुल कीमत अब करीब 1 लाख 30 हजार करोड़ आंकी गई है. 9 मई को अमेरिकी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट की 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा कर दी. ये सौदा 1 लाख 5 हजार 360 करोड़ रुपये में किया गया. 6800 कर्मचारियों वाली फ्लिपकार्ट की शुरुआत 2 दोस्तों ने अपने फ्लैट से की थी. अब फ्लिपकार्ट के को-फाउंडर सचिन बंसल अपना स्टेक बेचकर कंपनी से बाहर हो गए हैं. करीब 11 साल में फ्लिपकार्ट देश की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी बनी और कई दूसरी कंपनियों का अधिग्रहण भी किया.
2005 में IIT दिल्ली में सचिन और बिन्नी बंसल की मुलाकात हुई थी. एक वक्त था जब सचिन-बिन्नी दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी और भारत में फ्लिपकार्ट की प्रतिद्वंदी कंपनी अमेजन में साथ काम किया करते थे.
2007 में दोनों ने नौकरी छोड़कर अपने अपार्टमेंट से ही सपने, स्किल और कंप्यूटर के दमपर फ्लिपकार्ट की स्थापना की. पहले इसे प्रोडक्ट्स की कीमत की तुलना करने वाली साइट बनाने की तैयारी थी. लेकिन उस वक्त कम ही ई-कॉमर्स साइट होने के कारण सचिन-बिन्नी ने अपना खयाल बदल दिया. सचिन-बिन्नी ने फ्लिपकार्ट को ऑनलाइन किताब बेचने वाली वेबसाइट के तौर पर शुरू किया. सोचा गया कि ये किताबें कस्टमर को डाक के जरिए भेजी जाएंगी.
पहले साल इस कंपनी को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया. लोगों को लग रहा था कि ये कॉन्सेप्ट हमारे यहां चल नहीं पाएगा जहां लोग हर चीज को ठोक बजा कर, परख कर खरीदने में विश्वास रखते हैं. पहले साल कंपनी को सिर्फ 20 आर्डर मिले. 2-3 साल के शुरुआती संघर्ष के बावजूद कंपनी चलती रही. 2010 इस कंपनी के लिए पासा पलटने वाला रहा जब उसने दूसरे प्रोडक्ट के साथ साथ इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट और मोबाइल भी ऑनलाइन बेचने शुरू किए.
ऐसा भी दौर आया जब ऑनलाइन शॉपिंग का मतलब ही फ्लिपकार्ट बन गया था. ये दिन दोगुनी रात चौगुनी बढ़ोतरी देखकर कई दूसरी कंपनियों ने भी इस सेक्टर में हाथ आजमाए और सफलता भी हासिल की. इस दौरान भारत का ई-कॉमर्स बाजार बढ़कर 30 अरब डॉलर का हो गया और 2026 तक इसके बढ़कर 200 अरब डॉलर होने की उम्मीद की जा रही है
अगस्त 2017 में फ्लिपकार्ट में जापान के सॉफ्टबैंक ग्रुप ने $1.4 अरब डॉलर निवेश का एलान किया था. इससे फ्लिपकार्ट करीब $14 अरब की कंपनी बन गई थी. 2007 में लॉन्च के बाद इस सौदे से पहले तक इसमें $6 अरब का निवेश हो चुका है.
फ्लिपकार्ट ने कई दूसरी कंपनियों का अधिग्रहण भी किया, फैशन पोर्टल मायंत्रा-जबॉन्ग, पेमेंट एप फोनपे और लॉजिस्टिक फर्म एकार्ट भी फ्लिपकार्ट का ही हिस्सा हैं.
ऐसा नहीं है कि फ्लिपकार्ट हमेशा फायदे में ही रही है. इस बीच कई बार ऐसे दौर आए जब कंपनी को नुकसान उठाना पड़ा. लगातार कंपीटिशन से भी कंपनी को चुनौती मिल रही थी. बता दें कि भारतीय ई-कॉम मार्केट में 40 फीसदी हिस्सेदारी अब भी फ्लिपकार्ट के पास है. 2016 में जब कंपनी को हर तरफ से निराशा मिल रही थी, अमेजन तेजी से भारत में पहुंच बढ़ा रही थी. तब माना जा रहा था कि फ्लिपकार्ट के पास उस मुकाबले की कोई स्ट्रैटेजी नहीं थी. फिर कंपनी ने अपने नेतृत्व में बदलाव किया और 2017 में कृष्णमूर्ति दोबारा कंपनी के सीईओ बने. कृष्णमूर्ति ने आक्रामक तरीके से अमेजन का मुकाबला शुरू किया.
अब 9 मई 2018 को कंपनी के 77 फीसदी शेयर वॉलमार्ट के पास हैं.
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